रविवार, 22 जुलाई 2012

रात्री

रात के घने अंधेरे में
पशु पक्षी तक सहम जाते हैं
चुपके से दुबक कर सो जाते हैं
अगर किसी आहट से कोई पक्षी
अपने पंख फड़फड़ाता है
तो मन सिहर उठता है
वातावरण की नीरवता
मृत्यु की शांति का एहसास कराती है
क्यूँ कि, जीवन तो
सहम गया हो जैसे
दुबक कर सो गया हो जैसे ।
ऐसे भयावने वातावरण में
झींगुरों की आवाज़े ही
सन्नाटे का सीना चीरती हैं
यह जीवन का द्योतक है
कि कल सवेरा हो जाएगा
जीवन एक बार फिर
चहल पहल करने लगेगा।
फिलहाल तो हमे
सन्नाटे को घायल करना है
जुगनुओं की रोशनी में
भटके हुए मनुष्य को
उसके गंतव्य तक पहुंचाना है।

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

राजा हरिश्चंद्र

अगर आज
राजा हरिश्चंद्र होते
सच की झोली लिए
गली गली भटकते रहते
कि कोई परीक्षा ले उनके सच की
लेकिन
यकीन जानिए
उन्हे कोई नहीं मिलता
परीक्षा लेने वाला
जो मिलते
वह सारे
श्मशान के डोम होते
जो उनकी झोली छीन लेते
उनके ज़मीर की
चिता लगवाने से पहले ।

बेकार

तुमने मुझे
बेकार कागज़ की तरह
फेंक दिया था ज़मीन पर।
गर पलट कर देखते
तो पाते कि मैं
बड़ी देर तक हवा के साथ
उड़ता रहा था
तुम्हारे पीछे।
 
कभी हवाओं से पूछो कि क्यूँ देती है आवाज़ पीछे से
बताएगी कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया तेरा पीछे।

रविवार, 15 जुलाई 2012

न्याय

ग़रीब  की झोपड़ी में
इतने और ऐसे छेद !
कि उनसे
झाँकने में झिझकती हैं सूरज की किरणें
चाँदनी भी असफल रहती है अपनी चमक फैलाने में
झोपड़ी के अंदर
गर्मी को कम करने अंदर नहीं आ पाती
ठंडी बयार ।
ऐसा क्यूँ होता है
सिर्फ ग़रीब की झोपड़ी के साथ कि
बारिश का पानी चू चू कर
ताल बना देता है टूटी चारपाई के नीचे
सर्द हवाएँ तीर की तरह चुभती हैं
आंधी तूफान में सबसे पहले
झोपड़ी ही ढहती है।
क्यों नहीं करती पृकृति भी
गरीब की झोपड़ी के साथ
न्याय ?

कल

तीव्र गति से बढ़ती रात को
संसार की बागडोर सौंपने के लिए
शाम बन कर ढलता दिन
संसार के विछोह से म्लान
पीला पड़ गया है
रात समेटना चाहती है
दिन है कि जाना ही नहीं चाहता ।
तब, दिन के कान में
फुसफुसाती है हवा-
मोह छोड़ो आज का और संसार का
रात को समेत लेने दो आज करने
ताकि संसार कर सके
थोड़ा सा विश्राम ।
अगले सूर्योदय के साथ तो 
लोग करेंगे तुम्हें ही प्रणाम
क्योंकि
संसार के मोह से उबरने के बाद दिन
कल तुम्हारा ही होगा  !

शनिवार, 7 जुलाई 2012

तुक्का फिट

भागता हुआ पहुंचा उठाने को चिलमन उनकी
मालूम न था कि वो कफन ओढ़े लेते हैं।

रहते हैं वह मेरे हमराह तब तक
रास्ता जब तलक नहीं मुड़ता।

मेरे आँगन में शाम बाद होती है
पहले उनके घर अंधेरा उतरता है।

देखा मैं रास्ते पे गिरा रुपया उठा लाया हूँ।
पर वहाँ इक बच्चा अभी भी पड़ा होगा।

मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं।
सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।

खुशी के आँसू

पिता जी मर रहे थे
घर में अफरा तफरी मच गयी
जल्दी से गंगाजल लाओ
पंडितजी के मुंह में डालो
सीधे स्वर्ग जाएंगे।
रोना पीटना शुरू हो गया
लेकिन माँ की आंखो में
एक बूंद आँसू नहीं थे
बुजुर्गों ने कहा- बहू सदमे में है
उसे रुलाओं ।
सहेलियों ने झकझोरा-
कमला, तू रोती क्यूँ नहीं, रो ?
माँ ने कुछ सुना नहीं
वह तो उधेड़बुन में थीं।
कैसे होगा दाह संस्कार
और बाद के काम काज
घर में इतने पैसे कहाँ।
इनकी तनख्वाह तो रोजमर्रा की जरूरतों के लिए
काफी नहीं थी, बचत क्या खाक होती।
पिता शायद मर गए थे
आवाज़ें आने लगी
भाई कफन दाह संस्कार के इंतज़ाम करो
शव को घर में ज़्यादा देर रखना ठीक नहीं।
माँ की परेशानी ज़्यादा बढ़ गयी
कि तभी कुछ लोग अंदर आए
पिता के ऑफिस के लोग थे
उनमे से एक बुजुर्ग ने
बेटे के हाथ में
ऑफिस में एकत्र हुए कुछ रुपये रख दिये।
वह बोला- बेटा अभी यह रखो
पिताजी का काम करवाओ
हम जीपीएफ़ आदि के पैसे जल्द भेज देंगे।
सदमे में जाती लग रही माँ
सब देख और सुन रही थी।
यह सुनते ही माँ
दहाड़ मार कर रोने लगी।
सब कहने लगे- चलो रोई तो
अब सदमे में नहीं जाएगी।
पर माँ के अलावा कोई नहीं जानता था कि
इस विलाप में
खुशी के आँसू ज़्यादा थे
कि इज्ज़त बच गयी ।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...