शुक्रवार, 1 जून 2012

पसीना

रिक्शावाला
रिक्शा खींच रहा है
सिर से पैर तक
पसीने से नहाया है वह
नहाया तो मैं भी हूँ
बुरी तरह पसीने से
क्यूंकि रिक्शावाला ने
हुड नहीं लगाया है।
मैं डांट लगाता हूँ
हुड लगा होता तो
मुझे गर्मी न लगती
पैसा खर्च कर भी
पसीना पसीना न होना पड़ता ।
रिक्शावाला कुछ नहीं बोलता
सुनता रहता है मेरी भुनभुनाहट ।
गंतव्य तक पहुँच कर
मैं दस का नोट देता हूँ
रिक्शावाला कहता है-
बाबूजी, कितनी गर्मी है
दो रुपया और दे दो।
मैं चीख उठता हूँ-
क्या ग़ज़ब है
खुला रिक्शा चला रहा है
मुझे पसीना पसीना कर दिया,
उस पर दो रुपया ज़्यादा मांग रहा है।
मैं आगे बढ़ जाता हूँ
रिक्शावाला की बुदबुदाहट
कानों में पड़ती है-
क्या मेरे पसीने का मोल दो रुपया भी ज़्यादा नहीं।

मंगलवार, 29 मई 2012

शुभ रात्री

जब सोने के लिए जाओ
तब
किसी को शुभरात्री क्यूँ बोलना
पता नहीं कितनों ने कुछ खाया भी हो
कितनों के पास पत्थर का बिछोना हो
कितनों को सुस्त पड़ी हवा में
ठंडक अनुभव करनी पड़ती हो
जब भूखे पेट भजन नहीं हो सकता
पत्थर पर जीवन पैदा नहीं हो सकता
सुस्त हवा में दम घुटता हो, तो
किसी को नींद कैसे आ सकती है? 
तब आखिरी आदमी की रात्री
कैसे शुभ हो सकती है?
क्या अच्छा नहीं होगा
अगर
सोने से पहले
कुछ देर नींद को दूर भगाते हुए
कल कुछ लोगों के लिए
दो रोटियों, एक अदद बिछोने और खजूर के पंखे का
प्रबंध करने की सोचते हुए सोया जाए।

लोग



आप चलिये,
अपनी राह पर आगे बढ़िए
देखिये आपके पीछे आने वाले
और आपको पुकारने वाले
ढेरों लोग दिख जाएंगे।
लेकिन भरोसा रखिए
इनमे से ज्यादातर
आपके अनुगामी नहीं
वह आपको
इसलिए आवाज़ दे रहे हैं
कि आप पलटे
लड़खड़ा कर गिरे
और आगे नहीं बढ़ पाएँ

सोमवार, 28 मई 2012

रिश्ते

मैं पैदा हुआ
माँ को बेटा मिला
मुझे माँ मिली।
फिर माँ को बेटी हुई
वह पत्नी और दो बच्चों की माँ में बंटी  
पर उसे दो बच्चे मिले
मुझे एक बहन मिली ।
फिर मैं पढ़ने गया
मुझे दोस्त और अध्यापक मिले
मेरी शादी हुई
मुझे पत्नी मिली
उसे पति मिला
हमारे बच्चे हुए
वह माँ, बेटी, बहू और पत्नी बनी
मैं पिता, बेटा, दामाद और पति बना
हमारे नए रिश्ते बने
हम खुद बंटे नहीं
हमने रिश्ते बांटे और रिश्ते के दुख दर्द बांटे
लेकिन यह बंटना कहाँ हुआ
यह बनाना हुआ, बांटना हुआ
रिश्तों और उनके दुख दर्द को।

शनिवार, 19 मई 2012

घड़ी

रुक जाओ !
कहा समय ने 
घड़ी की सेकंड, मिनट और घंटे की सुइयां रुक गयीं 
समय ने 
सेकंड की सुई को डपटा-
कितना तेज़ चलती हो 
क्या सबसे आगे निकल जाना चाहती हो?
कम से कम मिनट के साथ तो चलो 
फिर मिनट को डपटा-
तुम घंटे से लम्बी हो 
इसका मतलब यह नहीं कि 
उसे परास्त करने की कोशिश करो 
तुम्हारी प्रतिस्पर्द्धा सेकंड से नहीं 
फिर घंटे से कहा-
ओह, सेकंड एक चक्कर लगा चुकी है 
तुम साठवां भाग ही हिले हो 
तुम मिनट के साठ डगों को 
अपने एक डग  से नापना चाहते हो 
इतनी सुस्ती भी ठीक नहीं 
थोडा तेज़ चलो .
घंटा शांत ही रहा 
बोला- हे समय 
हम सब अपना काम कर रहे हैं 
सेकंड युवा है, उसमे ऊर्जा है 
वह एक मिनट में दुनिया नाप लेना चाहती है 
क्या दुनिया नापी  जा सकती है ?
मिनट अनुभवी है 
जानता  है कि फूँक फूँक कर भरा डग 
मुझे सहारा देता है 
और मैं 
हर एक सेकंड 
हर एक मिनट के साथ मिल कर 
केवल घंटे नहीं बनाता 
मैं चौबीस घंटे में एक दिन बनाता हूँ 
हर दिन कुछ नया होता है, देश का इतिहास बनता है 
तभी तो तुम समय कहलाते हो,
काल और अतीत बनाते हो .
अपनी नादानी पर शर्मिंदा समय आगे बढ़ लिया 
सेकंड खिलखिलाते हुए डग  भरने लगी 
मिनट फूँक फूँक कर कदम रखने लगा 
और घंटा इतिहास बनाने में जुट गया है।

पंछी

सुबह होने को है 
एक पंछी जागता है 
उसके जगे होने का एहसास कराती  है 
उसके पंखों की फड़फड़ाहट 
जैसे झटक देना चाहता हो 
कल की थकान और सुस्ती .
वह आँख खोलता है 
घोसले से झाँक कर कुछ देखना चाहता है 
धुंधलके के बीच से 
फिर दोनों पंजों के बल 
खड़ा हो जाता है पेड़ की डाल पर 
उसे उड़ना ही होगा 
जाना होगा दूर तक 
कुछ खाने की खोज में 
बरसात से घर बचाने को 
तिनकों की तलाश करनी ही होगी 
उड़ चलता है वह 
जोर की आवाज़ करता 
ताकि और साथी भी जग जाएँ 
वह भी तलाश कर लें अपने भविष्य की 
यह सुन कर 
अभी तक बादलों की ओट में 
आलस करने की कोशिश करता सूरज 
बाहर निकल आता है 
जैसे सलाम कर रहा हो 
पंछी की भविष्य की कोशिशों को .
और तभी 
खिल उठता है आकाश पर 
इन्द्रधनुष ।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...