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राज एक्सप्रेस भोपाल में प्रकाशित मेरी 2 कविताएँ।

राज एक्सप्रेस 20 मई 2012 राज एक्सप्रेस 3 जून 2012

पसीना

रिक्शावाला रिक्शा खींच रहा है सिर से पैर तक पसीने से नहाया है वह नहाया तो मैं भी हूँ बुरी तरह पसीने से क्यूंकि रिक्शावाला ने हुड नहीं लगाया है। मैं डांट लगाता हूँ हुड लगा होता तो मुझे गर्मी न लगती पैसा खर्च कर भी पसीना पसीना न होना पड़ता । रिक्शावाला कुछ नहीं बोलता सुनता रहता है मेरी भुनभुनाहट । गंतव्य तक पहुँच कर मैं दस का नोट देता हूँ रिक्शावाला कहता है- बाबूजी, कितनी गर्मी है दो रुपया और दे दो। मैं चीख उठता हूँ- क्या ग़ज़ब है खुला रिक्शा चला रहा है मुझे पसीना पसीना कर दिया, उस पर दो रुपया ज़्यादा मांग रहा है। मैं आगे बढ़ जाता हूँ रिक्शावाला की बुदबुदाहट कानों में पड़ती है- क्या मेरे पसीने का मोल दो रुपया भी ज़्यादा नहीं।

शुभ रात्री

जब सोने के लिए जाओ तब किसी को शुभरात्री क्यूँ बोलना पता नहीं कितनों ने कुछ खाया भी हो कितनों के पास पत्थर का बिछोना हो कितनों को सुस्त पड़ी हवा में ठंडक अनुभव करनी पड़ती हो जब भूखे पेट भजन नहीं हो सकता पत्थर पर जीवन पैदा नहीं हो सकता सुस्त हवा में दम घुटता हो, तो किसी को नींद कैसे आ सकती है?  तब आखिरी आदमी की रात्री कैसे शुभ हो सकती है? क्या अच्छा नहीं होगा अगर सोने से पहले कुछ देर नींद को दूर भगाते हुए कल कुछ लोगों के लिए दो रोटियों, एक अदद बिछोने और खजूर के पंखे का प्रबंध करने की सोचते हुए सोया जाए।

लोग

आप चलिये, अपनी राह पर आगे बढ़िए देखिये आपके पीछे आने वाले और आपको पुकारने वाले ढेरों लोग दिख जाएंगे। लेकिन भरोसा रखिए इनमे से ज्यादातर आपके अनुगामी नहीं वह आपको इसलिए आवाज़ दे रहे हैं कि आप पलटे लड़खड़ा कर गिरे और आगे नहीं बढ़ पाएँ

रिश्ते

मैं पैदा हुआ माँ को बेटा मिला मुझे माँ मिली। फिर माँ को बेटी हुई वह पत्नी और दो बच्चों की माँ में बंटी   पर उसे दो बच्चे मिले मुझे एक बहन मिली । फिर मैं पढ़ने गया मुझे दोस्त और अध्यापक मिले मेरी शादी हुई मुझे पत्नी मिली उसे पति मिला हमारे बच्चे हुए वह माँ, बेटी, बहू और पत्नी बनी मैं पिता, बेटा, दामाद और पति बना हमारे नए रिश्ते बने हम खुद बंटे नहीं हमने रिश्ते बांटे और रिश्ते के दुख दर्द बांटे लेकिन यह बंटना कहाँ हुआ यह बनाना हुआ, बांटना हुआ रिश्तों और उनके दुख दर्द को।

घड़ी

रुक जाओ ! कहा समय ने  घड़ी की सेकंड, मिनट और घंटे की सुइयां रुक गयीं  समय ने  सेकंड की सुई को डपटा- कितना तेज़ चलती हो  क्या सबसे आगे निकल जाना चाहती हो? कम से कम मिनट के साथ तो चलो  फिर मिनट को डपटा- तुम घंटे से लम्बी हो  इसका मतलब यह नहीं कि  उसे परास्त करने की कोशिश करो  तुम्हारी प्रतिस्पर्द्धा सेकंड से नहीं  फिर घंटे से कहा- ओह, सेकंड एक चक्कर लगा चुकी है  तुम साठवां भाग ही हिले हो  तुम मिनट के साठ डगों को  अपने एक डग  से नापना चाहते हो  इतनी सुस्ती भी ठीक नहीं  थोडा तेज़...

पंछी

सुबह होने को है  एक पंछी जागता है  उसके जगे होने का एहसास कराती  है  उसके पंखों की फड़फड़ाहट  जैसे झटक देना चाहता हो  कल की थकान और सुस्ती . वह आँख खोलता है  घोसले से झाँक कर कुछ देखना चाहता है  धुंधलके के बीच से  फिर दोनों पंजों के बल  खड़ा हो जाता है पेड़ की डाल पर  उसे उड़ना ही होगा  जाना होगा दूर तक  कुछ खाने की खोज में  बरसात से घर बचाने को  तिनकों की तलाश करनी ही होगी  उड़ चलता है वह  जोर की आवाज़ करता  ताकि और साथी भी जग जाएँ  वह भी तलाश कर लें अपने...