सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

बूढ़ी

टिमटिमाती लालटेन की रोशनी एक बूढी औरत लालटेन की रोशनी की तरह खाना बना रही अपने, पति और बच्चों के लिए . मंद प्रकाश के कारण, खदबदाती भदेली में झांकती जाती है कि खाना कितना पका. रोटी बनाते समय हाथ जल जल जाते हैं क्यूंकि काले तवे और अन्धकार में फर्क कहाँ सब आते हैं, खाना खाते हैं बूढ़ी भी खाना  खाती है बर्तन और चौका साफ़ कर सहेज देती है सभी सो गए हैं लालटेन की रोशनी धप्प धप्प कर रही है और बूढ़ी की नींद में डूबी पलकें भी, रात के अँधेरे में ग़ुम हो जाने के लिए .

पतझड़

दरवाज़े पर खडखडाहट हुई किसी के आने की आहट हुई मैंने दरवाज़ा खोला बिखरे सूखे पत्तों के साथ पतझड़ खड़ा था. मेरे मुंह से अनायास निकल गया- आहा, पतझड़ आ गया. यकायक पतझड़ खड़ खड़ाया उदास स्वर में बोला- मैं पिछले एक महीने से पीले पत्तों सा बिखरा घर घर जा रहा हूँ मुझे देखते ही हर मनुष्य भयभीत हो जाता है दरवाज़ा क्या खिडकी भी बंद कर लेता है केवल तुम हो जो प्रसन्न हो. मैंने कहा- तुम संदेशवाहक हो, तुम शरीर की नश्वरता के प्रतीक हो कि ऊंचे पेड़ों की डाल पर चढ़े पत्तों को भी पीला हो कर बिखर जाना है धरा में गिर कर मिटटी में मिल जाना है. लेकिन तुम वसंत के आने का सन्देश भी लाते हो तुम जाओगे तो वसंत आएगा. नए नए पत्ते हरियाली बिखेरेंगे और फूल खिल कर रंग बिखेरेंगे तुम तो जीवन के प्रतीक वसंत के संदेशवाहक हो. इसलिए मैं तुम्हे देख कर भयभीत नहीं. आओ पतझड़ आओ!!!

बड़ा साँप

एक आदमी को साँप ने काट लिया क्रोधित आदमी ने पलट कर साँप को काट लिया और फिर चमत्कार हुआ जब आदमी के काटने से साँप मर गया आज आदमी ज़िंदा है आदमी  जिसे काटता है वह मर जाता है। सबसे बड़ा साँप बन गया है आज आदमी।

राहगीर

राहगीर जब चलने लगा तो रास्ते ने उस से पूछा- मित्र, मैं तुम्हारा साथ देता हूँ तुम्हे राह दिखाता हूँ और तुम हो कि मुझे छोड़ कर जा रहे हो क्यूँ मेरा साथ नहीं देते? क्यूँ हम साथ साथ नहीं रहते? राहगीर ने कहा- तुम मेरे पथ प्रदर्शक हो मुझे लक्ष्य तक पहुंचना है मैं तुम पर चल कर अपने लक्ष्य पर पहुंचूंगा इसलिए मुझे तो जाना ही होगा लेकिन, तुम अकेले कहाँ हो? अभी और राहगीर हैं जो आएंगे, तुमसे रास्ता पाएंगे आगे बढ़ने का. तुम अगर मेरे साथ चलोगे तो बेशक मैं राह पा जाऊँगा अपनी मंजिल तक पहुँच जाऊंगा लेकिन, बाक़ी का क्या होगा? उन्हें रास्ता दिखाना और मंजिल तक पहुंचाना है तुम्हे इसे तुम तभी कर सकते हो जब तुम यही रहो मेरे साथ चल कर तो तुम राह नहीं राहगीर बन जाओगे ऐसे में मार्गदर्शन के बिना खुद तुम भी भटक जाओगे .

पियक्कड़

मेरे पियक्कड़ मित्र तुम मुझे नशे में चूर झूमते, लड़खड़ाते, बहकते और गाली बकते अच्छे लगते हो. अच्छे लगते हो, लड़खड़ा कर गिरते किसी नाले या गड्ढे में और फिर निकलते यह बडबडाते हुए - अरे, यह गड्ढा कहाँ से आ गया ? मुझे अच्छा लगता है क्यूंकि, तुम सत्ता या दौलत के नशे में नहीं झूम रहे तुम किसी कमज़ोर को गाली नहीं बक रहे अपने लड़खड़ाते क़दमों के नीचे रौंद नहीं रहे तुम अनायास आये गड्ढे में गिरने के बावजूद उनसे अच्छे हो जो मदमस्त होकर कुछ इस तरह गिरते हैं कि फिर उठ नहीं पाते अपने बनाए खड्ड में गिरकर निकल नहीं पाते.

2011 को

मैंने 2011 को अपनी यादों के फ्रेम में सँजो कर रख लिया है। क्यूंकि इस पूरे साल हर दिन मुझे याद आता रहा कि, एक और एक मिलकर दो नहीं होते ग्यारह होते हैं। इसीलिए जब मैं एक प्रयास में असफल हुआ तो मैंने अगला प्रयास ग्यारह गुना जोश से किया और सफल हुआ। यही कारण है कि अगले साल में मेरा एक अंक बढ़ गया है।

ऋतु माँ

उस दिन आँख खुली बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी बारिश की बूंदे मेरे घर की खिड़कियाँ पीट रही थीं मानो कह रही हों- उठो मेरा स्वागत करो. मैं उठा, खिड़की खोलने की हिम्मत नहीं हुई तेज़ बूंदे अन्दर आकर घर को भिगो सकती थीं. इसलिए बालकॉनी पर आ गया बारिश के धुंधलके के बीच कुछ देखने का प्रयास करने लगा तभी बारिश के शोर को चीरती हुई बच्चे के रोने की आवाज़ कानों में पड़ी मैंने ध्यान से दखा सामने के फूटपाथ  पर एक औरत बैठी थी उसकी गोद में एक बच्चा था चीथड़ों में लिपटा हुआ औरत खुद को नंगा कर किसी तरह बचा रही थी अपने लाल को और बच्चा था कि हाथ पांव फेंकता हुआ आँचल से बाहर आ जाता मानों बारिश का स्वागत कर रहा हो बूंदों को अपनी नन्हे सीने में समेट लेना चाहता हो कुछ बूंदे चहरे पर पड़ती तो बूंदों के आघात और ठण्ड के आभास से बच्चा थोडा सहम जाता और फिर खेलने लगता बारिश बीती सर्दी आई औरत कि मुसीबत कुछ ज्यादा बढ़ गयी थी वह खुद को ढके या लाल को कहीं से एक फटा कम्बल मिल गया था शायद वह साबुत हिस्सा बच्चे को उढ़ा देती मैंने देखा रात में कई बार वह फटे कम्बल में ठिठुरती...