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संदेश

सात बेतुक

मैंने एक कविता लिखी मित्र ने पढ़ा और पूछा- भाई यह क्या लिखा है? मैंने कहा- जो तुमने समझा वही रही बात मेरी तो मैं अभी समझ रहा हूँ।       (२) मैंने कसम खाई कि मैं शराब नहीं पीऊँगा पर लोगों को विश्वास नहीं हुआ लोगो के मेरे प्रति इस अविश्वास से मैं इतना दुखी हुआ कि पिछले सप्ताह से लगातार पी रहा हूँ।         (३) मैंने पत्नी से कहा- तुम बच्चों को सम्हालती नहीं बहुत शरारती हो गए हैं। पत्नी एक शरारती मुस्कान के साथ बोली- शरारती बाप के बच्चे और क्या होंगे।                (४) अंधे को नाच दिखाना बहरे को गीत सुनाना ही जनता और नेता का रिश्ता है .              (५ ) नेता जी मेरे पास आए, हाथ जोड़ कर बोले- भाई, वोट ज़रूर देना मुझे भूल मत जाना मैंने कहा- नेता जी, भूलना साझी बीमारी है आप वोट लेने के बाद हमे भूल जाते हो हम आपके जाने के बाद आपको भूल जाते हैं। ...

उस्ताद

मैं अक्षरों को तर्क के अखाड़े में उतार देता हूँ अक्षर लड़ते रहते हैं एक दूसरे को जकड़ते और छोड़ते , शब्द बनाते और उनसे वाक्यों के जाल बुनते मैं इन  तर्कों को उछाल देता हूँ लोगों के बीच। लोग मेरे बनाए तर्क जाल में उलझते, निकलने के फेर में और ज़्यादा उलझते हैं मैं बस दूर से देखता रहता हूँ तर्क के  पहलवानों से लड़ते पिद्दियों को सुनता हूँ संतुष्ट लोगों को मुंह से अपने लिए जय जयकार मैं खुश होता हूँ अपने शागिर्दों की विजय पर मैं  तर्क के अखाड़े का उस्ताद जो हूँ ।

छेद

एक बार मैंने आसमान में छेद कर दिया मैंने आसमान से कुछ गिरने के अंदेशे से सावधानीवश अपने सर पर हाथ रख लिया मगर कुछ न हुआ, ना आसमान गिरा, न कुछ और. इससे मैं उत्साहित हुआ आसमान में छेद करने में सफल होने के उत्साह में मैंने अपने घर की छत में छेद कर दिया थोड़ी देर बाद, बदल घिर आये जम कर बरसे छत पर मेरे बनाये छेद से बारिश का पानी धार बन कर मेरे सर को चोट पहुंचा रहा था.

आदमी घड़ी नहीं

आदमी समय के साथ नहीं बदलते समय के साथ मौसम बदलते हैं, महीने हफ्ते बीतते हैं, दिन और रात होती हैं घड़ी की सुइयां सरकते हुए स्थान बदलती है। मगर आदमी ! ऐसा नहीं करता वह समय से अनुभव लेता है इस अनुभव से सीख कर खुद को मौसम के अनुकूल ढालता है हफ्ते महीने बीतने के बाद हर साल जन्मदिन की खुशियां मनाता है दिन में अपने काम करता है रात में घर को समय देता है आराम करता है वह घड़ी की सुई नहीं है क्यूंकि घड़ी की सुइयां समय नहीं बताती बेटरी के इशारे पर चलती है। आदमी किसी के इशारों का ग़ुलाम नहीं है भाई।

पाँच बातें

 (1) छोटे पैर वालों पर हँसना कैसा ! तीन लोक नापने वाले वामन ऐसे ही होते हैं। (2) हम राम नहीं हो सकते क्यूंकि, शबरी ने राम को जूठा कर वह बेर खिलाये जो सचमुच मीठे थे। राम ने इसमे भक्ति देखी हमने शबरी की जाति देखी। (3) इंसान और फल का फर्क पेड़ से फल गिरता है लोग उठा कर खा जाते हैं लेकिन जब इंसान गिरता है तो उसे कोई उठाता तक नहीं, सभी हँसते है। क्यूंकि, जहां गिरा फल मीठा होता है वहीं गिरा इंसान विषैला होता है। (4) नन्ही चींटी का रेंगना सबक है वह रेंग रेंग कर भी भोजन मुंह मे दबा कर घर ही जाती है। (5) जीवन कितना है ? एक सौ साल या हजार साल अगर सांस लेते रहो हर सांस के साथ सौ साल तक अगर कुछ करते रहो तो हजारों हज़ार साल भी। (6) 'जाने दो' 'हटाओ' 'फिर देखेंगे' 'हम ही हैं क्या' दोस्त टालने के लिए ज़्यादा शब्द ज़रूरी नहीं।

ढाबे के गुलाब

ये वह फूल नहीं हैं जो चाचा नेहरु की जैकेट के बटन होल से टंगा नज़र आता है. कहाँ चाचा के दिल से सटा सुर्ख गुलाब कहाँ पसीने और गंदगी से बदबूदार पीले चेहरे और खुरदुरे हाथों वाले ढाबे पर बर्तन मांजते बच्चे ! उनके चारों ओर रक्षा करने वाले गुलाब के कांटे नहीं उन्हें बींध देने वाले नागफनी काँटों की भरमार है. ऐसे बच्चे चाचा के गुलाब कैसे हो सकते हैं? फिर, क्या कभी किसी ने देखे हैं चाचा की नेहरु जैकेट पर सजा मुरझाया गुलाब?

अमर जीवन

अगर जीवन सिर्फ इतना होता कि मरने के साथ खत्म हो जाता तब वह लोग अमर क्यूँ हुए होते जो सदियों से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हम उन्हे आज भी उनकी वर्षगांठ या पुण्य तिथि पर याद करते हैं.