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आदमी घड़ी नहीं

आदमी समय के साथ नहीं बदलते
समय के साथ
मौसम बदलते हैं,
महीने हफ्ते बीतते हैं,
दिन और रात होती हैं
घड़ी की सुइयां सरकते हुए स्थान बदलती है।
मगर आदमी !
ऐसा नहीं करता
वह समय से अनुभव लेता है
इस अनुभव से सीख कर
खुद को मौसम के अनुकूल ढालता है
हफ्ते महीने बीतने के बाद
हर साल जन्मदिन की खुशियां मनाता है
दिन में अपने काम करता है
रात में घर को समय देता है आराम करता है
वह घड़ी की सुई नहीं है
क्यूंकि घड़ी की सुइयां
समय नहीं बताती
बेटरी के इशारे पर चलती है।
आदमी किसी के इशारों का ग़ुलाम नहीं है भाई।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत खूब कांडपाल जी , बड़ी ही मर्मस्पर्शी कविता लिखी है ....
    के के . शर्मा

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