सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

पाँच बातें

 (1) छोटे पैर वालों पर हँसना कैसा ! तीन लोक नापने वाले वामन ऐसे ही होते हैं। (2) हम राम नहीं हो सकते क्यूंकि, शबरी ने राम को जूठा कर वह बेर खिलाये जो सचमुच मीठे थे। राम ने इसमे भक्ति देखी हमने शबरी की जाति देखी। (3) इंसान और फल का फर्क पेड़ से फल गिरता है लोग उठा कर खा जाते हैं लेकिन जब इंसान गिरता है तो उसे कोई उठाता तक नहीं, सभी हँसते है। क्यूंकि, जहां गिरा फल मीठा होता है वहीं गिरा इंसान विषैला होता है। (4) नन्ही चींटी का रेंगना सबक है वह रेंग रेंग कर भी भोजन मुंह मे दबा कर घर ही जाती है। (5) जीवन कितना है ? एक सौ साल या हजार साल अगर सांस लेते रहो हर सांस के साथ सौ साल तक अगर कुछ करते रहो तो हजारों हज़ार साल भी। (6) 'जाने दो' 'हटाओ' 'फिर देखेंगे' 'हम ही हैं क्या' दोस्त टालने के लिए ज़्यादा शब्द ज़रूरी नहीं।

ढाबे के गुलाब

ये वह फूल नहीं हैं जो चाचा नेहरु की जैकेट के बटन होल से टंगा नज़र आता है. कहाँ चाचा के दिल से सटा सुर्ख गुलाब कहाँ पसीने और गंदगी से बदबूदार पीले चेहरे और खुरदुरे हाथों वाले ढाबे पर बर्तन मांजते बच्चे ! उनके चारों ओर रक्षा करने वाले गुलाब के कांटे नहीं उन्हें बींध देने वाले नागफनी काँटों की भरमार है. ऐसे बच्चे चाचा के गुलाब कैसे हो सकते हैं? फिर, क्या कभी किसी ने देखे हैं चाचा की नेहरु जैकेट पर सजा मुरझाया गुलाब?

अमर जीवन

अगर जीवन सिर्फ इतना होता कि मरने के साथ खत्म हो जाता तब वह लोग अमर क्यूँ हुए होते जो सदियों से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हम उन्हे आज भी उनकी वर्षगांठ या पुण्य तिथि पर याद करते हैं.

सपने

मैं कई दिन सोया नहीं खुली आँख लिए जागता रहा होता यह था कि मैं सोते हुए सपने बहुत देखता था फिर यकायक आँख खुल जाती थी सपने खील खील हो बिखर जाते थे. मुझे सपनों का टूटना बड़ा ख़राब लगता था. ऐसे ही कई दिन बीत गए,   मुझे जगे हुए कि एक दिन ख्वाब मेरे सामने आ गया बोला- तुम सो क्यूँ नहीं रहे ? मैंने पूछा- तुम कौन हो पूछने वाले यह मेरा निजी मामला है. ख्वाब बोला- यही तो कमी है तुम ख्वाब देखने वालों की कि आँख खुलते ही तुम मुझे भूल जाते हो. अरे, अगर तुम्हे जागने के बाद मैं याद रहूँगा तभी तो तुम मुझे साकार कर पाओगे भाई, सपने जाग कर भूल जाने के लिए और टूटने पर रोने के लिए मत देखा करो.

आसमान गिरा

एक दिन आसमान मेरे सर पर गिर पड़ा आसमान के बोझ से मैं दबा और फिर उबर भी गया. आसमान हंसा- देखा, तुम मेरे बोझ से दब गए मैंने कहा- लेकिन गिरे तो तुम !!!

शहर के लोग

तुमने देखा मेरे शहर में मकान कैसे कैसे हैं कुछ बहुत ऊंचे कुछ बहुत छोटे और कुछ मंझोले इनके आस पास, दूर कुछ गंदी झोपड़ियाँ पहचान लो इनसे मेरे शहर के लोग भी ऐसे ही हैं.

माँ और नदी

माँ कहती थीं- बेटा, औरत नदी के समान होती है आदमी उसे कहीं, किसी ओर मोड़ सकता है इस नहर उस खेत से जोड़ सकता है वह नहलाती और धुलाती है अपने साथ सारी गंदगी बहा ले जाती है मैंने पूछा- माँ, नदी को क्रोध भी आता है तब वह बाढ़ लाती है सारे खेत खलिहान और घर बहा ले जाती है  !!! माँ काँप उठीं, बोली- ना बेटा, ऐसा नहीं कहते नदी को हमेशा शांत रहना चाहिए उसे कभी किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए । एक दिन, पिता नयी औरत ले आए घर के साथ माँ के दिन और रात भी बंट गए माँ क्रोधित हो उठी पर वह बाढ़ नहीं बनीं उन्होने खेत  खलिहान और घर नहीं बहाये उन्होने आत्महत्या कर ली चार कंधों पर जाती माँ से मैंने पूछा- माँ तुम खुद क्यूँ सूख गईं विनाशकारी  बाढ़ क्यूँ नहीं बनी कम से कम विनाश के बाद का निर्माण तो होता. लेकिन यह याद नहीं रहा मुझे कि माँ केवल नदी नहीं औरत भी थीं.