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संदेश

मैं और समुद्र

समुद्र में मिल जाने के बाद, मुझे एहसास हुआ, समुद्र में खो जाने का, खुद के अस्तित्व के मिट जाने का। दुखी हो रहा था कि मेरा अस्तित्व बरकरार नहीं रह सका । मैं अब मिट गया हूँ। मै युही दुखी हो रहा था कि, एक तिनका बहता हुआ पास आया, बोला- दुखी क्यूँ हो रहे हो? तुम समुद्र में विलीन नहीं हुए हो, तुमने अपनी जैसी बूंदों से मिल कर इस समुद्र को बनाया है। मुझे देखो, मैं तुम्हारे कारण ही तो तैर रहा हूँ, डूबते हुओं का सहारा बनने के लिए। तुम न होते तो समुद्र नहीं होता, मैं नहीं होता । तब कौन बनता डूबतों का सहारा? अब मैं समुद्र बन कर खुश हूँ। तिनके को तैरा रहा हूँ।

कितने प्रश्न !

ईश्वर का वरदान एक दिन, ईश्वर प्रकट हुए । बोले- वत्स, तू मेरी दुनिया का सबसे संतोषी प्राणी है। मैं तुझसे बहुत खुश हूँ, मांग, मुझसे क्या मांगता है? तबसे आज का दिन है, मैं, परेशानहाल घूम रहा हूँ, यह सोचता हुआ कि ईश्वर से क्या माँगूँ। पूर्णविराम या फुलस्टॉप वह बोले, सब खत्म हो गया। मैंने पूछा- पूर्णविराम या फुल स्टॉप ? सुख या दुख ? मैंने एक मरते आदमी की आँखों में झाँका, घोर निराशा थी,      मोह से पैदा हुई, सब कुछ छूट जाने के कष्ट से। उस आदमी ने, बेहद खुशी खुशी, ज़िंदगी भर कमाया था, ढेरों पैसा, घर, बंगला और कार जमाया था । क्या इसीलिए कि आज जब यह मर रहा है, तब दुनिया का सबसे दुखी प्राणी है।

मैं कौन हूँ ?

तुम मुझे जानते नहीं कि मैं कौन हूँ- मैं वह तिनका हूँ, जो आँखों को रुला सकता है। मैं वह आंसू हूँ, जो दिल को हिला सकता है। मैं वह दिल हूँ, जो धड़कता है दूसरों के लिए, जब नहीं धड़कता तो मौत को रुला सकता है। मुझे जानने की ज़रुरत नहीं है तुमको, मैं वह हूँ, जो तुमको तो सता सकता है। आस्तीन के साँपों को पहचानते नहीं तुम, मैं वह हूँ जो तुमको बता सकता है।

उन बच्चों के लिए जिनके पिता हैं

मैं लड़खड़ा कर गिर रहा था कि एक उंगली ने मुझे सहारा दिया, गिर कर सम्हलना सिखाया, सीधा खड़ा होना और चलना सिखाया । फिर मैं दौड़ने लगा, इतना तेज़ दौड़ा कि वह उंगलियाँ, वह हाथ, कहीं बहुत पीछे छूट गए मैं इस दौड़ में इतना भागा इतना भागा कि जब पलट कर देखा तो कहीं नज़र नहीं आये पिता ।

क्या बकवास है?

यह कौन सा शहर हैं यारों, जहाँ के रास्ते उलटे जाते हैं। घरों को लौटते हुए लोग, घरों से दूर चले जाते हैं। मैं सबसे छुपा हुआ था, रुसवाइयों के घेरे में। लोग हंस रहे थे और मैं रो रहा था। एक बार सोचो तुम कहाँ चले जाते हो, लौटने की सोचते नहीं कि फिर लौट जाते हो। चलो हटाओ कि जो हो गया सो हो गया, राख हटती जाती है, मुर्दा नज़र आता है। मैंने उन्हें अलविदा कहा, उन्होंने हाथ हिलाया लौटा तो देखा कि पडोसी चला आ रहा था।

दोस्तों

ज़िन्दगी को इतना प्यार न कीजिये कि छूटने से डर लगे। साँसों को इतना प्यार न कीजिये कि टूटने से डर लगे। जो बना है वह एक दिन बिखरेगा भी, उदासियों को इतना गले न लगिए कि हंसने से भी डर लगे। दोस्तों हम किसी से कहते नहीं, कि हमें कहने से डर लगता है। दोस्तों हम किसी से छुपते नहीं, कि बाहर आने से डर लगता है। अब दोस्तों कुछ ऐसा हो गया है, हम छुपते नहीं और डर नहीं लगता है।

चुभन

दिन की चुभन कुछ ऎसी होती है, कि चाँद की चांदनी भी सताया करती है। हम रात भर करवटे बदलते हैं, कि ख्वाबों की ताबीर सताया करती है। इंसानों ने इस कदर बदला खुद को, मौसम ने बदलना छोड़ दिया है । इंसानों की फितरत है कुछ ऎसी कि फलों ने महकना छोड़ दिया है।