रविवार, 19 जून 2011

उन बच्चों के लिए जिनके पिता हैं

मैं लड़खड़ा कर गिर रहा था
कि एक उंगली ने मुझे सहारा दिया,
गिर कर सम्हलना सिखाया,
सीधा खड़ा होना और चलना सिखाया ।
फिर मैं दौड़ने लगा,
इतना तेज़ दौड़ा कि वह उंगलियाँ, वह हाथ,
कहीं बहुत पीछे छूट गए
मैं इस दौड़ में इतना भागा इतना भागा
कि जब पलट कर देखा तो
कहीं नज़र नहीं आये पिता ।

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