गुरुवार, 13 मई 2021

कोरोना से डरना मना है !

पत्नी डायबिटिक हैं. इसलिए उनका कोरोना पॉजिटिव होना खतरनाक हो सकता था. ऐसे समय में मुझे याद आ गई, सेवा काल के दौरान कानपूर में चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय की एक घटना. मैं उस समय लखनऊ से लोकल से जाया और आया करता था.


जैसी की यूनिवर्सिटी के कर्मचारी यूनियन और टीचिंग स्टाफ की आदत होती है, यह लोग अपना सही गलत काम करवाने के लिए भीड़ इकठ्ठा कर धमकाने और डरा कर काम करवाने की आदत रखते हैं. मेरे यूनिवर्सिटी में कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही वहां की कर्मचारी यूनियन ने मेरा घेराव किया कि हमारे बिल छः महीने से रोक रखे गए है. मैंने कहा भी कि मुझे हफ्ते भर भी काम सम्हाले नहीं हुए हैं तो मैं कैसे छः महीने से बिल रोके रख सकता हूँ. पर उन्हें तो शोर मचाना ही था. वह चिल्लाते रहे. मैं ऊब गया तो मैंने कहा भैये, मैं ऐसे तो काम नहीं कर सकता. अब तुम्हे मारना कूटना है तो  मार कूट लो. पर घायल कर मत छोड़ना घायल शेर खतरनाक होता है.


बहरहाल, एक बार में ट्रेन से कानपूर जा रहा था. घर से फ़ोन आया कि तुम्हारी यूनिवर्सिटी से फ़ोन आया था कि साहब कहाँ हैं? यहाँ (यूनिवर्सिटी) न आये. मारे जायेंगे.


घर में इस धमकी से लोग डरे हुए थे. मैंने कहा चिंता न करो.


फिर में यूनिवर्सिटी पहुंचा. कार से उतरते ही मैंने ललकारते हुए कहा, "अब मैं आ गया हूँ. कौन मारना चाहता है, आओ मेरे सामने."


आधे घंटे तक ऑफिस के बाहर खडा रहा. कोई मारने नहीं आया. फिर क्या करता. कमरे में बैठ कर फाइल करने लगा.


यह किस्सा मुझे याद आया, जब हम लोग कोरोना से जूझ रहे थे. मैंने इस किस्से को याद करते हुए, खुद से कहा, मुझे जूझना है. कोरोना से डरना नहीं है. मैं डरूंगा तो यह पत्थर कॉलेज के कर्मचारियों की तरह मुझे गड़प कर लेगा. मैंने कोरोना को ललकारा. आज हम लोग कोरोना से जंग जीत चुके हैं.


आप भी डरिये नहीं. आप कोरोना से ज्यादा ताकतवर है. बस हम और आप डर जाते हैं. जो डर गया, समझो वह मर गया.

कोरोना से जंग : जीत हमारी !



पिछले कुछ महीनों से मैं और मेरी पत्नी अहमदाबाद में बेटी के घर में हैं. कोरोना का कहर कुछ ऐसा टूटा है कि अप्रैल को लखनऊ वापस जाने का टिकट कैंसिल कराना पडा.

 

१९/२० मार्च को मैंने और पत्नी ने कोरोना वैक्सीन की पहली डोज़ लगवा ली थी. दूसरी डोज़ छः हफ्ते बाद लगनी थी. २१ अप्रैल को, दामाद को कोरोना के लक्षण दिखाई देने लगे. उसने खुद को क्वारंटीन करते हुए, कोरोना की जांच करवा ली. उसके साथ डॉक्टरों की सलाह पर हम लोगों ने भी अपना अपना कोरोना टेस्ट करवा लिया. इस टेस्ट में बेटी और पत्नी भी पॉजिटिव आई. मेरा टेस्ट नेगेटिव आया.


२४ अप्रैल से सबका ईलाज शुरू हो गया. पत्नी को बुखार था. उन्हें बेचैनी सी हो रही थी. मैं नेगेटिव था. इसे देखते हुए, मुझे अलग कमरे में रहना चाहिए था. पर पत्नी को इस दशा में छोड़ना मेरे लिए मुमकिन नहीं था. यह उसके जीवन का सबसे तकलीफदेह रात हो सकती थी. मैंने सोचा अगर यह मर गई तो मुझे ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहेगा कि मैं उसकी आखिरी तकलीफ में साथ नहीं था. अगर मैं भी पॉजिटिव हो गया तो कोई बात नहीं. या तो दोनों ठीक होंगे या दोनों मरेंगे. मैंने निर्णय लिया कि मैं पत्नी को छोड़ कर अलग नहीं सोऊंगा. सचमुच २४/२५ की रात काफी भयानक थी. पत्नी की परेशानी कम करने की कोशिश में रात जागते हुए ही गुजर गई. उनका बुखार उतर गया. इसके बाद बिलकुल नहीं चढा. लेकिन, मैं तब तक कोरोना पॉजिटिव हो चुका था. मुझे १०१ तक बुखार पहुंचा.


उस समय मैंने पत्नी से कहा, पॉजिटिव रहो. बिलकुल यह मत सोचो कि इस बीमारी को हम तुम नहीं हरा सकते. हमें कोरोना कुछ नहीं कर सकता. निराश बिलकुल न होना. हम सभी लोग, डॉक्टर की सलाह के अनुसार घर पर रह कर ही, दवा लेते रहे. एक  हफ्ते में हम लोगों की सारी तकलीफ दूर हो गयी. अहमदाबाद में ऑनलाइन डॉक्टर की सलाह ने हमें घर में रह कर ईलाज करने में मदद की. आज हम सभी पूर्णतया स्वस्थ है, पर बेहद कमजोरी है. अलबत्ता, मैंने अपनी दिनचर्या में कोई फर्क नहीं रखा. जैसा कोरोना से पहले था, वैसे ही रहा.


मैं उपदेश देने की स्थिति में नहीं हूँ. लेकिन, अनुभव से यह कह सकता हूँ कि कोरोना के बावजूद खुद में निराशा नहीं पैदा होने दें. कोरोना वायरस ऐसा कोई लाइलाज नहीं है. ८५ प्रतिशत लोग निर्धारित दवा के सहारे ही ठीक हो जाते है. हाँ, अपने पॉजिटिव होने पर लापरवाही न बरते. न ही ऑक्सीजन सिलिंडर या हॉस्पिटल के चक्कर में पड़ें. जितना बढ़िया देख रेख घर में मिल सकती है, उतनी कहीं नहीं हो सकती.


सरकार को कोसने से कोई फायदा नहीं. क्या हम लोगों को मालूम था कि घर के  हम चार बालिग़ सदस्य कोरोना पॉजिटिव हो जायेंगे? जब हम पांच लोगों को नहीं मालूम था, तो एक अकेली सरकार या प्रधान मंत्री कैसे करोड़ों लोगों की जन्मपत्री बांच सकती है! हमने ऑक्सीजन या हॉस्पिटल के लिए भी कोई कोशिश नहीं की. क्योंकि, उसकी ज़रुरत तभी होती, जब हम दूसरी या तीसरी स्टेज पर पहुँच जाते. हम लोगों ने तो पहली स्टेज में ही ठीक होने का निर्णय कर लिया था.

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

नए साल के दिन








तुमने कल रात

बीते साल को विदाई दी होगी

नए साल का स्वागत किया होगा

फिर झूमते हुए घर वापस आ कर

तान कर सो गए होंगे

देर तक

पर मैं देख रहा हूँ

सामने बन रही बिल्डिंग को

कुछ मज़दूर और मिस्त्री

काम कर रहे हैं

किसी का आशियाना पूरा करना है

अगले साल

किसी साल की विदाई और नए के आगमन के दिन

जश्न मना कर वापस लौटे लोग

आराम से सोयेंगे

दूसरे दिन तक

लेकिन, अगले साल भी

यह लोग

किसी का नया आशियाना

बना रहे होंगे इसी प्रकार ।


बुधवार, 2 दिसंबर 2020

किसान से डायरेक्ट गेहूं खरीदने के बाद बेताल !

किसान आन्दोलन के पक्ष और विपक्ष में देखे और सुनने के बावजूद फेसबुक पर लटके वेताल ने हठ न छोड़ा. वह कंधे पर बोरा टांग कर मंडी की ओर निकल पड़ा. तभी झोले में स्थित काग्रेसी जिन्न ने कहा, "हे वेताल, तू मंडी जा कर क्या साबित करना चाहता है कि किसानों को भरपूर दिया जा रहा है, उनका शोषण नहीं हो रहा. अगर तुझमे किसानों के प्रति थोड़ी भी इज्ज़त है तो किसान से सीधे खरीद. यह सोच कर वेताल सुर से हट कर बेताल हो गया. वह अपने बोर को लेकर एक किसान के खेत जा पहंचा. किसान खेत में गेहूं की कटाई कर रहा था. एक तरफ दाने अलग किया हुआ गेहूं भी था. बेताल ने किसान से एक बोरा गेहूं देने के लिए कहा. बाज़ार भाव पर एक बोरा गेंहूं भर कर, कंधे पर लाद कर बेताल घर जा पहुंचा. बेताल परम संतुष्टि भाव से बेतालनी और जूनियर बेतालिनियों से बोला, "देखो मैं बिचौलियों को पीछे छोड़ कर सीधे किसान से गेहूं खरीद लाया  हूँ. अब तुम लोग इसे भलीभांति साफ़ कर आटा बनाने के लिए कनस्तर में रख कर पिसा लाओ. इतना सुनते ही, बेतालनी  और जूनियर बेतालानियों ने झाडुओं की बारिश कर बेताल को आम आदमी पार्टी का चुनाव चिन्ह बना दिया. वह बोली, "हमें तूने मज़दूर समझ रखा है कि हम गेंहूं साफ़ करेंगी और पिसाने के लिए जायेंगी.

सूना है इस झाडू पूजा के बाद मोहल्ले वालों बेताल को कंधे पर कनस्तर लादे हुए किसी बीनने-पछोरने वाली को ढूढते हुए देखा.

शनिवार, 14 नवंबर 2020

दीपों की आयु



दीपोत्सव के बाद की सुबह

उठ कर बालकनी मे आया

जल चुके कई दीप बिखरे हुए थे।

मेरे मन मे संतुष्टि भाव था

रात तक प्रकाश बिखेरा था इन माटी के दीपों ने

तभी शंका उभरी

दीपों का मुँह काला पड़ चुका था

कदाचित जल जाने की उदासी थी

मन दुखी हुआ ।

तभी दिल ने कहा-

यह उदास हैं ।

तब से सोच रहा हूँ

क्योंकि, नहीं बिखेर सके

सारी रात प्रकाश ! 

क्यों कम होती है!

दीपों की आयु ?

बुधवार, 20 मई 2020

सरकारी सेवा में ब्राह्मण से प्रताड़ित हुआ एक ब्राह्मण


मैं एक विभाग में फाइनेंस कंट्रोलर था. वर्दी वाला विभाग था वह. एक डीजीपी साहब थे. जाति से ब्राह्मण और बेहद जातिवादी. मैं उनके अधीन काम करने के लिए भेजा गया. मेरा सरनेम कांडपाल है. उससे उन्हें यह गलतफहमी हो गई कि मैं पाल यानि गडरिया जाति या कहिये नीची जाति का हूँ. यहाँ मैं बता दूं कि मैंने अपनी सेवा भर अपना काम बेहद साफ सुथरा और पारदर्शिता वाला रखा है. मुझसे मेरे से सम्बंधित कोई सूचना मांगी जाए मैं तुरंत उपलब्ध करा सकता था. मेरे अधीन किसी कर्मचारी या अधिकारी की फाइल रोकने की हिम्मत नहीं हो सकती थी. इसके बावजूद न जाने क्या बात थी कि वह हमेशा नाराज़ नज़र आते. कनिष्ठ अधिकारियों के सामने गलत तरह से बात करते, डाट फटकार तो वह कहीं भी लगा सकते थे. मुझे नागवार गुजरता था, उनका कनिष्ठ अधिकारियों के सामने बदतमीजी करना. मैं इस विचार का अधिकारी रहा हूँ कि अगर किसी ने गलती की है तो उसे सज़ा जरूर दी जाए. फटकारना है तो उसकी गरिमा का ध्यान ज़रूर रखा जाए. लेकिन, वह ब्राह्मण देवता इसके कायल नहीं थे. चार पांच महीना तो यह चलता रहा. फिर मुझे लगा कि अब इनके द्वारा की जा रही मेरी बेइज्जती मेरे जमीर को ख़त्म कर रही है. मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट चोटिल हो रही है. मैं खुद की नज़रों में गिरता जा रहा हूँ. इस स्थिति के आते ही मैंने इस पर लगाम लगाने का निर्णय कर लिया. इसके बाद, जैसे ही वह किसी मीटिंग में कुछ कहते, मैं चुपचाप सुनने के बजाय वैसे ही जवाब देता. इससे वह नाराज़ हो जाते. वह जोर से बोलते तो मैं थोडा कम जोर से बोलता. कुर्सी से खड़े हो जाते. मैं सोचता हूँ कि अगर में अधिकारी न होता तो शायद वह मेरा एनकाउंटर करवा देते. परन्तु मेरे प्रतिआक्रमण का नतीजा यह हुआ कि वह काफी कुछ सुधर गए. क्योंकि, उन्हें लग गया था कि अब उनकी रेस्पेक्ट पर चूना लग जाएगा. मैं खुश था.

मेरे किस्से का अंत कुछ यह हुआ कि उन्हें किसी बातचीत के दौरान यह मालूम पड़ गया कि कांडपाल उपनाम वाले लोग उत्तराँचल के ब्राह्मण होते हैं न कि नीची जात के. उसके बाद वह मेरे प्रति बिलकुल मक्खन जैसे मुलायम और बर्फी जैसे मीठे हो गए. मगर मेरा मन उनसे खट्टा हो चुका था. जो व्यक्ति जाति के आधार पर अपने अधीनस्थ के काम का आंकलन करता है, मैं उसकी इज्जत नहीं कर सकता. एक दिन मैंने उनके खिलाफ एक रिपोर्ट शासन को भेज दी. नतीजे के तौर पर मेरा तुरत फुरत तबादला हो गया. जयहिन्द.

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...