कबूतर
प्रेम का कबूतर
कबूतरी
प्रेम की प्रेमिका
दोनों दुनिया से अलग
प्रेम प्यार मे डूबे रहते
एक दिन
कबूतरी ने अंडा दिया
प्रेम और अपने ऑयरन के अंश को
वह सेने लगी
दिन भर बैठी रहती
इस से ऊब ने लगा कबूतर
उड़ चला
प्रेम की खोज में।
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कबूतर
प्रेम का कबूतर
कबूतरी
प्रेम की प्रेमिका
दोनों दुनिया से अलग
प्रेम प्यार मे डूबे रहते
एक दिन
कबूतरी ने अंडा दिया
प्रेम और अपने ऑयरन के अंश को
वह सेने लगी
दिन भर बैठी रहती
इस से ऊब ने लगा कबूतर
उड़ चला
प्रेम की खोज में।
धूप सर चढ़ आई थी
भूख लगने लगी थी
उसने खाने की पोटली निकाली
पानी की तलाश में इधर उधर दृष्टि डाली
न पानी था, न छाया थी
एक सूखा पेड़ खड़ा था उदास
वह पेड़ की लंबी छाया के आश्रय मे बैठ
गया
सूखा पेड़ खुश हो गया
भूखा खाता रहा
खाना खा कर
फिर पानी की तलाश मे इधर इधर देखा
निराश हो कर
ढेर सा थूक इकट्ठा कर पी गया
उदास पेड़ और सूख गया।
पिता
पीटता है
इसलिए पिता नहीं होता।
पिता
पालता है!
तो इससे क्या होता है।
पिता
तुम्हारे प्रत्येक सुख दुख सहता है!
इससे क्या होता है?
यह प्रत्येक पिता करता है।
तो,
पिता केवल पिता होता है!
19 जून 2023। यह वह दिन है, जिस दिन मैं एक कर्ज से उबर गया।
यह वह कर्ज था, जो मुझ पर जबरन लादा गया था। इस कर्ज को न मैंने माँगा, न कभी स्वीकार किया। फिर भी यह कर्ज 40 साल तक मुझ पर लदा रहा। इसकी वजह से मैं अपमानित किया गया। मुझे नकारा बताया गया। यह केवल इसलिए किया गया ताकि मेरे परिवार पर एहसान लादा जा सके।
मेरी पत्नी को 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिख कर दिया गया कि मकान तुम्हारे पति के नाम कर दिया गया है। यह काग़ज़ के टुकड़े से अधिक नहीं था। पर कानूनी दांव पेंच नावाकिफ पत्नी समझती रही कि मकान हमे दे दिया गया। वह बहुत खुश और इत्मीनान से थी। उसने, यदि मुझे काग़ज़ का टुकड़ा दिखा दिया गया होता तो मैं उसे हकीकत बता देता। पर उसे किसी को दिखाना नहीं, ऐसे समझाया गया, जैसे गुप्त दान कर दिया गया हो। सगे रिश्तों का यह छल असहनीय था। इसे नहीं किया जाना चाहिए था। एक मासूम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था।
पर अच्छा है कि यह कर्ज 40 साल बाद ही सही, उतर गया। अब मैं आत्मनिर्भर हो कर, सुख से मर सकता हूँ। पर दुःख है कि भाई- बहन का सगा रिश्ता तार तार हो गया। अफ़सोस, यह नहीं होना चाहिए था।
एक
बूँद ऊपर उठी
उठती
चली गई
दूसरी
बूँद भी उठी और उठती चली गई
उठती
चली गई
इसके
बाद...एक के बाद एक
ढेरो
बूँदें ऊपर उठती चली गई
आसमान
की गोद में मिली
नृत्य
करने लगी -
हम
उड़ रही है
एकत्र
हो कर दूजे का हाथ थामे
आसमान
विजित करने
बूंदे
मिलती गई
एक
दूजे में सिमटती गई
घनी
होती गई
और
अब ...
अपने
ही बोझ से
नीचे
गिरने लगी
फिर बिखरने लगी
अपने
मूल स्वरुप में आकर
पृथ्वी
पर बरसने लगी
और
बन गई तालाब
आसमान
छूने जा रही बूंदों को
अब
प्रतीक्षा है
सूर्य
की तपिश की
ताकि बन सके एक बूँद .
ग्रीष्म की धूप
श्रमिक का पसीना
परास्त नहीं !
२-
नभ में सूर्य
यात्री संग श्रमिक
विश्राम नहीं।
३-
नभ में मेघ
गली में खेलें बच्चे
प्रसन्न मन ।
जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा। सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...