सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

बूँद !

एक बूँद ऊपर उठी   उठती चली गई     दूसरी बूँद भी उठी और उठती चली गई   उठती चली गई   इसके बाद...एक के बाद एक   ढेरो बूँदें ऊपर उठती चली गई   आसमान की गोद में मिली   नृत्य करने लगी -   हम उड़ रही है   एकत्र हो कर दूजे का हाथ थामे   आसमान विजित करने     बूंदे मिलती गई   एक दूजे में सिमटती गई   घनी होती गई   और अब ...   अपने ही बोझ से   नीचे गिरने लगी   फिर   बिखरने लगी   अपने मूल स्वरुप में आकर   पृथ्वी पर बरसने लगी   और बन गई तालाब   आसमान छूने जा रही बूंदों को   अब प्रतीक्षा है   सूर्य की तपिश की   ताकि बन सके एक   बूँद  . 

....रोया न था !

आसमान घिरने लगा   बदल एकत्र होने लगे   मिल कर साथ घने होते चले गए   नीचे होते गए...और नीचे   आसमान से दूर   गिरते चले गए   यकायक पृथ्वी से कुछ दूर   बरसने लगे   आसमान साफ होने लगा   आसमान सोचने लगा   मुझसे दूर जा कर   बदल क्यों रोने लगे ?   वह समझ न सका !   वह  कभी  रोया न था !

तीन हाइकू : भाव

 ग्रीष्म की धूप  श्रमिक का पसीना परास्त नहीं  ! २- नभ में सूर्य  यात्री संग श्रमिक विश्राम नहीं।  ३-  नभ में मेघ  गली में खेलें बच्चे  प्रसन्न मन । 

प्रकृति और जीवन : पाँच हाइकु

कक्ष में पक्षी  अतिथि आये है  अद्भुत स्वर । २  मेघ गर्जना  मुन्ना रो पड़ता है  जल वृष्टि ही । ३  सूर्य ऊर्जा से  विचलित पथिक  छाँह कहाँ है ! ४  प्रातः से साँय घर लौटते लोग  यही जीवन । ५ प्राण निकले  रो रहे परिजन अब प्रारंभ ।

सत्य

 सत्य  भागता नहीं है  हम उससे भागते है  वह एक है  अनंत है  अकेला है हमें उसका साथ देना है  और साथ लेना भी है  किन्तु आप विचलित हो रहे है  भाग रहे हैं  अपने सत्य से ।

अंततः अश्व: तीन हाइकु

अश्व की शक्ति  मनुष्य का मस्तिष्क  घर मे बंधा।  2  अश्व की गति  मनुष्य से स्पर्द्धा मे   कोसों दूर है । 3  अश्व की निष्ठा  मानव का विश्वास  अश्व विजयी।