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संदेश

प्रकृति और जीवन : पाँच हाइकु

कक्ष में पक्षी  अतिथि आये है  अद्भुत स्वर । २  मेघ गर्जना  मुन्ना रो पड़ता है  जल वृष्टि ही । ३  सूर्य ऊर्जा से  विचलित पथिक  छाँह कहाँ है ! ४  प्रातः से साँय घर लौटते लोग  यही जीवन । ५ प्राण निकले  रो रहे परिजन अब प्रारंभ ।

सत्य

 सत्य  भागता नहीं है  हम उससे भागते है  वह एक है  अनंत है  अकेला है हमें उसका साथ देना है  और साथ लेना भी है  किन्तु आप विचलित हो रहे है  भाग रहे हैं  अपने सत्य से ।

अंततः अश्व: तीन हाइकु

अश्व की शक्ति  मनुष्य का मस्तिष्क  घर मे बंधा।  2  अश्व की गति  मनुष्य से स्पर्द्धा मे   कोसों दूर है । 3  अश्व की निष्ठा  मानव का विश्वास  अश्व विजयी। 

मेरा शत्रु!

 मैंने  अपने शत्रुओं से पूछा?  मेरा सबसे प्रमुख शत्रु कौन है ?  वह बोला- तू स्वयं!  जो आस्तीन नहीं मोड़ता कभी !

प्रकृति के हाइकु

 प्रातः काल मे  सुगंधित पवन  सब जागते।  2  पशु पक्षी मैं  प्रकृति की छांव  सब प्रसन्न । 3  मार्ग मे ओस  पथिक चल रहा  थकान कहाँ।  4  सूर्य उनींदे  पक्षी जाग रहे है  प्रातः हो रही । 5  चंद्रमा अस्त  सूर्योदय की बेला  कुछ क्षण मे ।

तनाव

जब तनाव अधिक होता है न  तब गाता हूँ  रोता नहीं  पड़ोसी बोलते हैं-  गा रहा है  मस्ती में है  तनाव उनको होता है  मुझे तनाव नहीं होता।