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संदेश

मैंने भी चाहा था आत्महत्या करना! #WorldSuicideDay

आज , १० सितम्बर को , पूरा विश्व वर्ल्ड सुसाइड डे मना रहा है. इस अवसर पर अपना एक   अनुभव.   यह बात , उस समय की है , जब मेरी तैनाती पेंशन निदेशालय में संयुक्त निर्देशक के पद पर हुई थी. ट्रान्सफर का मारा , जिसे प्रमोशन के लिए उत्कृष्ट यानि आउटस्टैंडिंग पृविष्टि की जरूरत रहा करती थी. कितना परेशान हैरान विभागाध्यक्ष चाह कर भी बैड नहीं लिख पाता था. इसलिए अधिकतर ने प्रविष्टि लिखी ही नहीं. एक आध ने लिखी तो श्रेणी दी अच्छा. यह अच्छा क्या होता है. उस समय के लिहाज से मेरे प्रमोशन के लिए बैड से भी खराब.   हमारे एक अधिकारी का कहना था कि कांडपाल जी , आप लोगों को बैड लिखो ही नहीं. सामान्य लिख दो. प्रमोशन होगा नहीं. बैड लिखो तो जवाब देना पड़ेगा. विभागाध्यक्षों की इस नीचता के कारण मेरा प्रमोशन लगातार रुक रहा था. डीपीसी होती. पता चलता कि प्रमोशन नहीं हुआ है. दिल धक् से कर जाता. निराशा का गहरा कुहासा छा जाता. उस पर ट्रान्सफर पर ट्रान्सफर.   हाँ. तो बात कर रहा था संयुक्त निर्देशक पेंशन निदेशालय में तैनाती की. उस समय के निर्देशक बड़े सुलझे हुए व्यक्ति थे. मैं सोचता था कि कुछ दि...

जीवन !

कभी लगता है डोर छूट रही है हाथों से साँसों की अगले ही पल लपक लेता हूँ क्षण बाँध लेता हूँ श्वांस छोड़ता नहीं आस यह क्या है ? इच्छा अगली श्वांस की लालच जीने का यहीं तो जीवन है कदाचित !

मन तोता

मन तोता होता है हरी मिर्ची सा लोहे के पिंजरे में ' मिट्ठू बेटा राम राम बोलो ' कहता पिंजरा खोल दो तो क्या कहाँ जाएगा ! लौट कर फिर वापस आएगा पंख है पर शक्ति कहाँ फड़फड़ाता सिर्फ मन  तोते सा।

दर्पण-पुरूष

 क्या  मनुष्य दो प्रकार के होते हैं?  सज्जन और दुर्जन पुरुष  पर तीसरा भी होता है पुरुष दर्पण में  जिसे हम देखते हैं दर्पण- पुरुष. 

काल- चित्र

काल  एक चित्र बनाता है  लकीरों  से भरा  श्वेत श्याम रंगों का मिश्रण कभी धुंधला सा भी  अतीत में खोजता- विचरता  काल चक्र से जूझता  काल-चित्र .

समझ, समझ का फ़ेर!

 मैं लिखता हूँ तुम पढ़ते नहीं मैं पढ़ता हूँ पर समझता नहीं यह सब क्या है?  समझ का फ़ेर  या न समझने की चेष्टा!  चाहे जो समझो  समझ, समझ का फ़ेर 

जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड बनाम राम नवमी जलूस पर पत्थरबाजी

आज जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड को 103 साल हो गये.  इस हत्याकाण्ड को याद रखने की जरूरत केवल इसलिए नहीं कि इसमें 1500 से ज्यादा निर्दोष लोग मारे गए थे,बल्कि इसलिए भी याद करने की जरूरत है कि इन लोगों पर गोली चलाने के आदेश एक अंग्रेज अधिकारी ने दिए थे,  पर गोली चलाने वाले हाथ भारतीय थे. जनरल डायर ने सिख रेजिमेंट और गोरखा रेजिमेंट के लोहे से भारतीयों का लोहा काटा था. यह बंदूकें डायर की तरफ घूम जाती तो भारत का स्वतंत्रता का इतिहास कुछ अलग होता.  पर पूरी दुनिया मे ब्रिटिश साम्राज्य को बदनामी दिलाने वाले इस हत्याकांड के बाद पंजाब में विद्रोह नहीं हुआ था. हालात आज भी वही हैं. हिन्दुओं के आराध्य राम अवतार दिवस पर निकाले जा रहे रामनवमी के जुलूस पर शहर शहर पत्थर बरसाने वाले मुसलमानों की एक मस्जिद पर कुछ अराजक चढ़ क्या गए नपुंसक हिन्दुओ की कथित सहिष्णुता जार जार आँसू बहाने लगी. जबकि पत्थरबाजों की कौम के किसी सेकुलर ने साँस तक नहीं ली थी. हो सकता है कि उस समय अगर आज के यह हिन्दू अंग्रेजो ने वजीफे पर रखे होते तो यह कहते कि हम आज्ञाकारी है.  साहब बहादुर ने मना किया था तो इस भीड़ को जु...