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क्योँ गाली खाया विराट कोहली?

कुछ लोग बीसीसीआई की टीम के कप्तान विराट कोहली को जूते पड़ने को लेकर दुखी नजर आ रहे हैं. उनके दुख पर कोई टिप्पणी न करते हुए बीसीसीआई के कप्तान पर मेरे विचार-  कोहली के साथ गड़बड़ यह हुई कि इसने एक साथ कई मोर्चे खोल लिए. पहले 'दिवाली कैसे मनाए के टिप्स दूँगा' की दर्प भरी घोषणा की. फिर अगली ही बार पाकिस्तान के सामने 10 विकेट से समर्पण कर दिया. मैच हारते ही फील्ड पर पाकिस्तानी खिलाडियों को गले लगा लिया, एक खिलाड़ी के फील्ड पर नमाज पढ़ने को इग्नोर करते हुए. फिर यह जानते हुए भी कि शमी के विरुद्ध ट्वीट पाकिस्तान प्रायोजित हैं  सभी हिन्दुओं को साम्प्रदायिक बताते हुए  secularism का झंडा फहरा दिया. भाई तू भारत का खिलाड़ी है या missionary मुल्ला! नहीं जानता कि सामान्य भारतीय क्रिकेट और हॉकी में खेलते हुए भी पाकिस्तान को दुश्मन देश ही समझते हैं. तूने उन सबके दिलों को रौंदते हुए बुरी तरह से मैच हारा, फिर मुस्कुराते हुए दुश्मन देश के खिलाड़ियों को गले लगाया. करेले पर नीम चढ़ा कि नमाज की साम्प्रदायिकता को दरकिनार कर अपने देश के लोगों को ही सांप्रदायिक बता दिया. तुम अगर खेल में साम्प्रदा...

जब विभागाध्यक्ष ने लिखा- अच्छा !

  सेवा-काल का एक किस्सा मेरे एक विभागीय निर्देशक ने मेरी चरित्र पंजिका में मेरा असेसमेंट करते हुए मुझे गुड यानि अच्छा लिखा. यहाँ बता दूं कि राज्य सेवा में प्रोनत्ति का एक ऐसा दौर आता है , जब आपका गुड या सामान्य असेसमेंट किसी काम का नहीं होता. अगर आपको पदोन्नति लेनी है तो आउट स्टैंडिंग प्रविष्टि लेनी होगी. परन्तु , अगर आप अपने विभागाध्यक्ष के अनुसार आउट स्टैंडिंग काम नहीं करते तो वह आपको क्यों आउट स्टैंडिंग लिखेगा. मेरे विभागाध्यक्ष ने भी यही किया. मैं विभागाध्यक्ष के पास गया. मैंने कहा- सर आपने तो मेरा अपमान कर दिया. मुझे अच्छा लिख दिया. सर मै या तो उत्कृष्ट हूँ या निकृष्ट नहीं बैड. आपको मेरा आकलन अच्छा नहीं करना चाहिए था. बैड लिख देते. वह बिंदास बोले- अरे भाई , तुम लोगों को सजा देने के लिए बैड लिखने की क्या ज़रुरत है. अच्छा या सामान्य लिख दो. जन्म भर प्रमोशन नहीं होगा. बैड लिख देता तो आप जवाब देते , मुझे आपके जवाब का जवाब देना पड़ता. इतना झंझट कौन करता. मुझे उनकी बेबाकी अच्छी लगी. मैंने कहा- इस साफगोई के लिए धन्यवाद सर. वैसे अगर आप मुझे बैड लिखते तो मैं वादा करता हूँ कि मै...

उनकी घर वापसी

 

विकलांगता विकलांग वर्ष की

 

खिचखिच क्रिकेट

 

कोरोना से डरना मना है !

पत्नी डायबिटिक हैं. इसलिए उनका कोरोना पॉजिटिव होना खतरनाक हो सकता था. ऐसे समय में मुझे याद आ गई , सेवा काल के दौरान कानपूर में चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय की एक घटना. मैं उस समय लखनऊ से लोकल से जाया और आया करता था. जैसी की यूनिवर्सिटी के कर्मचारी यूनियन और टीचिंग स्टाफ की आदत होती है , यह लोग अपना सही गलत काम करवाने के लिए भीड़ इकठ्ठा कर धमकाने और डरा कर काम करवाने की आदत रखते हैं. मेरे यूनिवर्सिटी में कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही वहां की कर्मचारी यूनियन ने मेरा घेराव किया कि हमारे बिल छः महीने से रोक रखे गए है. मैंने कहा भी कि मुझे हफ्ते भर भी काम सम्हाले नहीं हुए हैं तो मैं कैसे छः महीने से बिल रोके रख सकता हूँ. पर उन्हें तो शोर मचाना ही था. वह चिल्लाते रहे. मैं ऊब गया तो मैंने कहा भैये , मैं ऐसे तो काम नहीं कर सकता. अब तुम्हे मारना कूटना है तो   मार कूट लो. पर घायल कर मत छोड़ना घायल शेर खतरनाक होता है. बहरहाल , एक बार में ट्रेन से कानपूर जा रहा था. घर से फ़ोन आया कि तुम्हारी यूनिवर्सिटी से फ़ोन आया था कि साहब कहाँ हैं ? यहाँ (यूनिवर्सिटी) न आये. मारे जायेंगे. घर में इस ...

कोरोना से जंग : जीत हमारी !

पिछले कुछ महीनों से मैं और मेरी पत्नी अहमदाबाद में बेटी के घर में हैं. कोरोना का कहर कुछ ऐसा टूटा है कि अप्रैल को लखनऊ वापस जाने का टिकट कैंसिल कराना पडा.   १९/२० मार्च को मैंने और पत्नी ने कोरोना वैक्सीन की पहली डोज़ लगवा ली थी. दूसरी डोज़ छः हफ्ते बाद लगनी थी. २१ अप्रैल को , दामाद को कोरोना के लक्षण दिखाई देने लगे. उसने खुद को क्वारंटीन करते हुए , कोरोना की जांच करवा ली. उसके साथ डॉक्टरों की सलाह पर हम लोगों ने भी अपना अपना कोरोना टेस्ट करवा लिया. इस टेस्ट में बेटी और पत्नी भी पॉजिटिव आई. मेरा टेस्ट नेगेटिव आया. २४ अप्रैल से सबका ईलाज शुरू हो गया. पत्नी को बुखार था. उन्हें बेचैनी सी हो रही थी. मैं नेगेटिव था. इसे देखते हुए , मुझे अलग कमरे में रहना चाहिए था. पर पत्नी को इस दशा में छोड़ना मेरे लिए मुमकिन नहीं था. यह उसके जीवन का सबसे तकलीफदेह रात हो सकती थी. मैंने सोचा अगर यह मर गई तो मुझे ज़िन्दगी भर अफ़सोस रहेगा कि मैं उसकी आखिरी तकलीफ में साथ नहीं था. अगर मैं भी पॉजिटिव हो गया तो कोई बात नहीं. या तो दोनों ठीक होंगे या दोनों मरेंगे. मैंने निर्णय लिया कि मैं पत्नी को छोड़ कर अलग न...