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संदेश

शिक्षक दिवस

आओ , खेलते हैं टीचर टीचर शिक्षक दिवस है न ! तुम मुझे पढ़ाओ मैं तुम्हे पढ़ाऊँ न तुम समझो न मैं तुम्हे समझा पाऊं यह जानते हुए कि मेरी विद्या तुम्हे तुम्हारी विद्या मुझे समझ में नही आएगी। फिर भी खेलते हैं टीचर टीचर आज शिक्षक दिवस है न !

अर्थ व्यवस्था : ५ क्षणिकाएं

विरोधियों की हाय हाय का सेशन बाज़ार में  इन्फ्लेशन। @ खुदरा में न थोक में नज़र आती है महंगाई हर छह महीने के महंगाई भत्ते में नज़र आई। @@ बचत में जाए घट  क़र्ज़ में आये न नज़र समझ लीजिये कि कम हो गई ब्याज दर। @@@ जब न चले बन्दूक , न गोला बारूद की मार फिर भी मचा हो दुनिया में हाहाकार समझ लीजिये कि छिड़ गई है ट्रेड वॉर। @@@@ अमेरिका , चीन और जापान पर जिसकी हो आस्था समझ लीजिये उसे भारत की अर्थ व्यवस्था।   

अब भी !

बच्चा छोटा था  वैसे ही, जैसे दूसरे बच्चे होते हैं  बड़ी बड़ी मीठी बातें करने वाला  बच्चा बड़ा हो गया है  फिर भी  बड़ी बड़ी, मीठी बातें करता है  अब नेता हो गया है बच्चा  आह, बड़ा अब भी नहीं हुआ । 

कैसे !!!

मुझे याद है पिता ने सिखाया था चलना मुझे यहॉं तक कि, कैसे पकड़नी है उँगली ! कैसे नहीं छोड़ना है साथ ! मुझे हमेशा याद रही उनकी यह सीख । इसे मैं कैसे भूल गया तब ! कमर दर्द से बेहाल पिता जब सीधे चल नहीं पाते थे । झुक गयी थी कमर उनकी अपनी उँगली पकड़ा नही पाया थोड़ा झुक कर देखता रहता उदासीन उनको बाथरूम जाते घिसटते हुए । कैसे भूल गया था मैं ? 

कारण

बेशक शिकायत वाजिब है कोई नहीं सुनता किसी की क्या तुमने कुछ सुनाने की कोशिश की सिर्फ शिकायत करना कोशिश नहीं । ### रात के सन्नाटे में उसकी चींख उभरी और खामोश हो गई अब झींगुर बोलने लगे थे। ### कोई कितनी भी कोशिश करे किसी को समझाने की बेकार है कोशिश क्योंकि , समझने के लिए समझ भी ज़रूरी है। ### पहले हँसा फिर रोया फिर शून्य में झांकने लगा दुःख व्यक्त करने के लिए ज़रूरी है यह। ### बेशक कोई कुछ न करे आदत है किसी की लेकिन जब कोई कुछ करता है सवाल न करे यह आदत ठीक नहीं। ### मैं समझता रहा कि  सन्नाटा  पसरा हुआ है  सकपका गया मैं मैं क्यों हूँ सन्नाटे में !

एक सपना

एक रात वह मेरे ख़्वाब में आया उसने मेरे बाल सहलाये मैंने आँखे खोली वह मन्द मन्द मुस्कुराया मैंने आँखें बन्द कर ली बड़ा प्यारा सपना था कैसे जाने दूँ एक पल में आँखों से !