सोमवार, 15 दिसंबर 2014

ऐसे ही स्वप्न देखता

अगर रास्ता 
पथरीला नहीं
पानी पानी होता 
नदी बहती नहीं
पत्थर सी ऐंठी रहती
ज़मीन सर के ऊपर होती
आसमान पाँव तले कुचलता
पक्षी तैरते
जानवर हवा में कुलांचे भरते
मैं जागते हुए भी
ऐसे ही स्वप्न देखता।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

सर्दी पर ५ हाइकू

१- 
सर्दी लगती
मास्टर की बेंत सी
नन्हे के हाथ।
२-
हवा तेज़ है
ठिठुरता गरीब
छप्पर कहाँ।
३-
बर्फीली सर्दी
अलाव जल गया
सभी जमे हैं।
४-
सूरज कहाँ
फूटपाथ सूना है
दुबक गए।
५-
नख सी हवा
मुन्ने की नाक लाल
बह रही है।
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राजेंद्र प्रसाद कांडपाल,
फ्लैट नंबर ४०२,
अशोक अपार्टमेंट्स,
५, वे लेन,
जॉपलिंग रोड,
हज़रतगंज,
लखनऊ- २२६००१
मोबाइल -

शनिवार, 15 नवंबर 2014

एब्सॉल्यूट इंडिया मुंबई में दिनांक १६ नवंबर २०१४ को प्रकाशित सर्दी पर १० हाइकू


शीत पर १० हाइकू

इस जाड़े में
आँखें कहाँ खुलती
भोर देर से।
२-
उषा किरण
नन्हे की नाक लाल
इतनी ठण्ड !
३-
हवा का झोंका
नाक बह रही है
प्रकृति क्रीड़ा।
४-
सूर्य उदय
श्रमिक जा रहे हैं
रुकता कौन !
५-
बर्फ गिरती
सब सोये हुए हैं
चादर तनी।
६-
शीत का सूर्य
बच्चा आँगन खेले
अच्छा लगता।
७-
सूर्य कहाँ है
घूमने कौन जाये
दुबके सब।
८-
पत्ते पीले हैं 
बाबा भी बीमार है
क्या बचेंगे ?
९-
हो गयी शाम
खिल गए चेहरे
निशा आ गयी।
१०-
चन्द्रमा खिला
संध्या थक गयी है
गुड नाईट ।             

बुधवार, 12 नवंबर 2014

बेटी जैसी खुशी

कभी
खोई थी बेटी
ढूंढता रहा था
बेहाल
इधर उधर
जब मिली
कैसा खिल गया था
चेहरा आदमी का
ऐसे ही
खोजनी पड़ती हैं
खुशियां ! 

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

शेष रास्ता

रास्ता
ख़त्म नहीं होता
कभी। 
दुरूह होता है
दुर्गम हो सकता है
पर मिलेगा
ज़रूर 
ढूंढो तो सही
ख़त्म होने के लिए
नहीं बनते
रास्ते

लक्ष्य के बाद भी
शेष रहते हैं
रास्ते


आगे जाने वाले
मुसाफिर के
वास्ते
वहीँ ख़त्म होते हैं
रास्ते/जहाँ
खड़ी कर दी जाती है
दीवार।
२-
पगडण्डी
और
रास्ते का फर्क
पगडण्डी पर
नहीं बनायी जा सकती
दीवार। 


अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...