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संदेश

जीवन

आँख खुली भाव चेहरे पर आये शब्द कुनमुनाए आह ! सुबह हो गयी !!! २- हवा चेहरा छूती बदन सहलाती बढ़ जाती आगे कहीं बहुत दूर मुझसे ३- सूरज निकला चिड़ियाँ बोली पहले एक इंसान ने आँखें खोली फिर दूसरे, तीसरे और... जीवन जाग गया. ४- ट्रेन बस जहाज मनुष्य चलाता हा मनुष्य बैठता है तब क्यों नहीं यह तीनों इंसान क्योंकि, इनसे मनुष्य  उतर जाता है . ५- आदमी आता है आदमी जाता है जाने के बाद फिर वापस आता है तभी तो एक मकान घर बन जाता है.

तीन खिलौने

खिलौना टूट गया पर खेला कौन ! २- खिलौना आदमी की तरह मिटटी का होता है मिटटी में मिल जाता है . ३- बेटी रो रही थी मुझे याद आया कभी मेरे हाथों से छूट कर खिलौना टूट गया था मैं इसी तरह फूट फूट कर रो रहा था मैंने बेटी को खिलौना ला दिया बेटी मुस्कुरा पड़ी पर मेरी आँखे गीली थीं क्योंकि, मुझे किसी ने खिलौना नहीं दिया था.

पांच क्षणिकाएं

१- प्रीतम मेरे वियोग के दिन गिनना पर दिन मत गिनना. २- मुझे जब तुम मिले मैं मिल लिया खुद से. ३- ओह सड़क इतनी खामोश क्यों है सवेरा ! ४- दो प्रकार की होती है भूख दो लोगों की मिटाती है और मिटती है . ५- हर झुकी आँख शर्म नहीं होती कुछ लोग आँख नहीं मिलाते .

पांच हाइकू

ठंडी  हवाएं उनकी आहट है कानों को लगी. २- पीला सूरज थके हुए चेहरे शाम वापसी . ३- पेट की भूख सूखे पड़े हैं खेत अनाज कहाँ . ४- पिया न आये मुंडेर पर कौव्वा प्रतीक्षा ख़त्म . ५- दरवाज़ा खुला प्राण निकल गए डॉक्टर आया.

चाचा नेहरु

आटे का दूध पीता  चावल का माड़ गटकता  बासी रोटी को ताज़ी के अंदाज़ में चबाता  कोई न कोई बच्चा आज यह ज़रूर पूछेगा- माँ, हमारे चाचा क्या करते थे ! तब माँ कहेगी- बेटा, वह देश चलाते थे दुनिया को शांति का सन्देश देते थे उन्होंने ही दुनिया को शीत युद्ध से बचाया गुट निरपेक्षता का सन्देश दिया वह लालों के लाल थे जवाहर लाल थे . तब क्या बेटा यह न पूछेगा कि माँ...मेरी प्यारी माँ चाचा देश चलाते थे, पिता जी रिक्शा क्यों चलाते हैं उन्होंने दुनिया को शांति का सन्देश दिया हमें रोटी क्यों नहीं दे सके दुनिया को गुट निरपेक्षता की अहमियत बताने वाले चाचा देश में गरीब और गरीबी की अहमियत क्यों नहीं समझे उन्होंने दुनिया को शीत युद्ध से बचाया हमें शीत से युद्ध करने के लिए क्यों छोड़ दिया वह लालों के लाल जवाहर लाल थे तो पिता कंगाल क्यों थे क्या कहेगी माँ !

पत्थर

रास्ते में पडा एक पत्थर रूकावट और ठोकर या पूजा गढ़ कर ईश्वर २- पत्थर खुद नहीं लगता उठ कर ज़मीन से एकाधिक हाथ उसे फेंकते हैं सामने यह भूलते हुए कि, पत्थर वापस आ सकते हैं. ३- ईश्वर हो सकता है पत्थर और पत्थर हो सकता है ईश्वर तब क्यों खाता है पत्थर ठोकर. ४- पाँव मनुष्य के मारते हैं  ठोकर हाथ मनुष्य के उठाते हैं पत्थर और बना देते हैं भगवान् इतना अंतर क्यों है? एक ही मनुष्य के पैर और हाथ में. ५- नदी ने पत्थर को इधर उधर लुढ़काया लेनी चाही परीक्षा उसकी सहनशक्ति की सहनशील पत्थर शिव बन गया आज चढ़ाया जा रहा है जल उसी नदी का.

प्रकृति और मनुष्य

मैं कितना गहरा हूँ नापने चले वह थाह पाने के जूनून में डूबते चले गए. २- समुद्र अगर उथला होता किनारों से टकराए बिना सोता रहता ३- हवा ठंडी थी सिहरा गयी मैंने थोड़ी भींच ली मुट्ठी के साथ जेब में. ४- आसन नहीं अँधेरे को रोकना जब खुद उजाला मुंह छिपाए. ५- चन्द्रमा और सूरज दुनिया के चौकीदार बारी बारी जगह लेते सुलाने और जगाने के लिए दुनिया को.