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संदेश

प्रकृति और मनुष्य

मैं कितना गहरा हूँ नापने चले वह थाह पाने के जूनून में डूबते चले गए. २- समुद्र अगर उथला होता किनारों से टकराए बिना सोता रहता ३- हवा ठंडी थी सिहरा गयी मैंने थोड़ी भींच ली मुट्ठी के साथ जेब में. ४- आसन नहीं अँधेरे को रोकना जब खुद उजाला मुंह छिपाए. ५- चन्द्रमा और सूरज दुनिया के चौकीदार बारी बारी जगह लेते सुलाने और जगाने के लिए दुनिया को.

खंडहर

आओ दोस्तों ! सोते हैं इस खंडहर में देखते हैं सपने कि, इमारत कभी बुलंद थी. २- खंडहर विरासत नहीं होते यह प्रतीक होते है कि, हमने फिक्र नहीं की कभी विरासत की . ३- खंडहर कहर नहीं किसी आक्रान्ता के गवाह नहीं किसी अत्याचार के व्यतीत नहीं किसी खुशहाली के यह सन्देश हैं कि, आओ फिर से करें पुनर्निर्माण . गवाह बना कर इस खंडहर को.

बाबाओं को सोना चाहिए

बाबाओं को सोना चाहिए सोयेंगे तो दो बाते होयेंगी बाबा अगर सोयेंगे तो स्वप्न देखेंगे स्वप्न में खजाना देखेंगे खजाने से देश मालामाल हो या न हो सरकार मालामाल होगी सरकार मालामाल होगी तो नेता और ऑफिसर घूस बटोरने के विकास कार्यक्रम चला पायेंगे इस प्रकार वह मालामाल होंगे. लेकिन दोस्तों मुझे नेताओं-अफसरों का खैरख्वाह न समझो मैं खैरख्वाह हूँ इस देश की जनता का जनता की माँ बहनों का बाबा सोयेंगे तो न प्रवचन करेंगे न मौका लगते ही आसाराम बनेंगे.

मेरी माँ तुम्हारी माँ

मेरी माँ बीमार है. बीमार तुम्हारी माँ भी होगी. पर मेरी माँ माँ है मेरी माँ के सामने तुम्हारी माँ की क्या बिसात मेरी माँ ने दिया है मुझे ऐश और शोहरत बैठे ठाले की सत्ता तुम्हारी माँ ने तुम्हे क्या दिया! गरीबी और रुसवाई मुफलिसी और भूख जबकि, मेरी माँ ने तुम्हे भी दिया है सब्सिडी पर फ़ूड.

आंसू

आज अभी निकाल दिया दिल से अपने मुझ को एक पल न सोचा कि अँधेरा हो जायेगा दिल में. २ शांत झील में कंकड़ फेंक कर खुश हो जाते तुम, भूल जाते कि कंकडों को डूबने का दुःख होता है. ३  जो हंसते नहीं उन्हें मुर्दा दिल न समझो, न जाने कितनी रुसवाइयां झेलीं हैं उन ने. ४ कुरेद कुरेद कर दिल के घाव तुम तो नेल पोलिश का बिज़नस कर रहे हो. ५ मेरी ईमानदारी को तराजू पर मत तौलो ज़मीर के बटखरे ही इसे तौल पाएंगे. ६ मेरे आंसुओं को इतना तवज्जो मत देना नज़र-ए-बीमारी का सबब है कि बहती हैं.

दीवाली

नहीं चांदनी घनी रात में दीपों का उजियारा. टिम टिम टिम दीपक चमके अन्धकार का सीना छल के भागा दूर घना अंधियारा .  दीप जलाएं खील उड़ायें धूम पटाखे की मच जाए फुलझड़ियों से  झरा उजियारा. आओ आओ रामू भैया ठेल गरीबी खील खिलैया खा कर हर्षो जग प्यारा.

रावण का पुतला

रावण ! तने क्यों खड़े हो घमंड भरी मुद्रा में जलने के लिए तैयार जल जाओगे क्या फायदा होगा धुंवा और कालिख बन कर घुल जाओगे हवा में मिल जाओगे धूल में इकठ्ठा लोग चले जायेंगे तुम्हारी राख रौंदते हुए क्या फायदा होगा ! आओ मुझ में समा जाओ मेरे ख़ून में घुल जाओ मैं पालूंगा तुम्हे अगले साल तक फिर से खड़ा कर दूंगा जलने के लिए पुतले के रूप में .