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संदेश

निरंकुश कलम

कुछ  लोग कुछ भी लिख डालते है बिन सोचे विचारे क्योंकी, उनके हाथ  में  कलम है वह  इसका  जैसा भी चाहे इस्तेमाल कर सकते है नही  सोचते कि, निरंकुश कलम तलवार को मौका देती है काट ने  का गरदनो के साथ निरंकुश हाथ भी.

समंदर

बहुत थोड़ा जीवन है, आशाओं का समंदर छोटी सी नौका है, तूफान का है मंजर । छोड़ के चल देते हैं, सवार इतने सारे पार वही लगता है इंसान जो सिकंदर। राजेंद्र कांडपाल 03 अक्टूबर 2013  Bahut Thoda Jeewan hai, aashaaon ka samandar, chhoti sii nauka hai, toofan ka hai manjar. chhod ke chal dete hain, sawaar itane saare, paar wahii lagata hai insaan jo sikandar. Rajendra Kandpal 03 October 2013

नेता जी

नेता जी, कल जब आप जेल में होंगे फटे मैले कंबल के बिस्तर पर लेटे होंगे। आम हिन्दुस्तानी की तरह तालियाँ बजाते हुए मच्छर मारते आपकी रात गुजरेगी खटमलों के आक्रमणों से आपकी कोमल त्वचा आपको घायल लगेगी । पतली दाल, घास फूस से बनी सब्जी और रोटी दलिया और चाय का नाश्ता आपको देगा जनता का वास्ता जिन्होने कभी आप के लिए ऐसे ही तालियाँ मारी थीं और बदले में आपने ! छीना था उनका नाश्ता मच्छरों और खटमलों की तरह चूसा था उनका खून आज शायद आप इसे समझ पाये हों कि आपके भ्रष्टाचार ने देश को बना दिया है आपको मिली जेल से ज़्यादा गंदी, भ्रष्ट और नारकीय जेल  इसलिए हे नेताजी आप इसी जेल में रहना बाहर न आना देश को अब और नरक नहीं बनाना  !

अनुभूति २० मई २०१३

मैने नीम से पूछा     मैंने नीम से पूछा- तू इतनी कड़वी क्यों है? जबकि, तू सेहत के लिए फायदेमंद है। नीम झूमते हुए बोली- अगर मैं कड़वी न होती तो, तुझे कैसे मालूम पड़ता कि कड़वेपन के कारण सेहतमंद नीम की भी कैसे थू थू होती है. -राजेन्द्र कांडपाल २० मई २० १३

अनुभूति 17 june 2013

गंगा- कुछ क्षणिकाएँ   १ गंग जमुन की बहती धार प्यास बुझाए खेत हजार अन्न लहलहाए सींचे धरती बारम्बार -मंजुल भटनागर २ खिल खिल करती मचलती, खेलती आह्लादित उर्मियों को अपने सीने पर बच्ची सी चढ़ाये, चिपकाए मस्ती में झूमती, इठलाती बहने वाली गंगा खो गयी है जाने कहाँ ? -अनिल कुमार मिश्र ३ गंगा है माँ की माँ तभी तो समा जाती है गंगा की गोद में एक दिन माँ भी। -राजेंद्र कांडपाल ४ इस देश की बुद्धिमत्ता कुम्भकर्ण की नीद सो रही है उसे पता ही नहीं कि गंगा बीमार हो रही है -त्रिलोक सिंह ठकुरेला १७ जून २०१३

खामोशी

  जहां लोग आपस में नहीं बोलते वहाँ, खामोशी बोलती है चीखती हुई इतनी, कि कान बहरे हो जाते हैं कुछ सुनाई नहीं पड़ता।

जन्म लो कृष्ण !!!

हे कृष्ण ! जब तुम जन्म लेना तब मथुरा वृन्दावन तक न रहना बाल रूप में गरीबों की झोपड़ी में जाना गंदी बस्ती में रहना और खाना जहाँ बच्चे माखन खाना तो दूर उसका नाम तक नहीं जानते रंग कैसा होता होगा नहीं पहचानते बड़े होकर कंस का वध करने केवल मथुरा न जाना महंगाई, भ्रष्टाचार अन्याय और अनाचार के कंस सड़क से संसद तक हैं नाश करने के लिए उनका धर्म की हानि की प्रतीक्षा मत करना धर्म शेष ही कहाँ है ! तुमने शिक्षा देने के लिए नग्न नहाती गोपिकाओं के वस्त्र हरे थे पर द्रौपदी की लाज भी बचाई थी आज नकली कृष्ण बने लोग वस्त्र हरण कर रहे हैं और शकुनि बने द्रौपदी का चीर हरण कर रहे हैं तुमने बजाई होगी सुख और शांति के लिए बांसुरी  मगर आज जनता परेशां, बदहाल और भूखी है राजा बजा रहे हैं चैन की बांसुरी क्या  इस बार तुम आओगे इस भारत को कुरुक्षेत्र बनाओगे ! आ जाओ कृष्ण जन्म लो कृष्ण जन्म लो गीता के कृष्ण !!!! रच दो एक और महाभारत बना दो देश को मेरा भारत महान !