मंगलवार, 18 जून 2013

भूकंप

इस शहर में
जब आता है भूकंप
निकल आते हैं लोग
अपने अपने घरों से
कुछ लोग इधर
तो काफी लोग उधर
भाग रहे होते हैं
मगर भगदड़ नहीं होती यह
क्योंकि लोग
लूटने जा रहे होते हैं
एक टूटी दुकान का सामान
और ले जा रहे होते हैं
सुरक्षित अपने ठिकाने में।
तब कुछ ज़्यादा
काँप रही होती है धरती
भूकंप के बाद।

रोक न सकूँगा

प्रियतमा!
उदास मत हो
मेघ
कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं।
बहाने लगते हैं
भावनाओं के सैलाब
नियंत्रण का बांध
तोड़ जाते हैं।
नहीं रोक सकूँगा
तुम्हें बाहों में
बह जाऊंगा
तुम्हारे साथ
गहराई तक
तुम्हारी रिमझिम
आँखों में।
फिर जाऊंगा कैसे
तुम्हारे अंतस में
तुम्हें यूं उदास छोड़ कर
रोक न सकूँगा खुद को
तुम्हारे साथ रोने से
इस बारिश की तरह।

बरसता पसीना

रुक गयी बारिश
पर बरस रहा मैं
अपने चू रहे घर की
दरार को भरने में
हो कर
पसीना पसीना।

शनिवार, 15 जून 2013

बारिश में नाव

याद आ गया बचपन
भीग गया तन मन
बारिश  में।
बादलों की तरह
घर से निकल आना
मेघ गर्जना संग
चीखना चिल्लाना
नंगे बदन सा मन
भीग गया
बारिश में।
कागज़ की नाव का
नाले में इतराना
दूर तलक हम सबका
बहते चले जाना
अब तो बाल्कनी से
देखते हैं
बारिश में।
अपनी नाव के संग
दौड़ हम लगाते
डूबे किसी की  नाव
सभी खुश हो जाते
कहाँ दोस्त, नाव कहाँ
अकेले खड़े हम
बारिश में।






किसान

मिट्टी को गोड़ कर
घास को तोड़ कर
खेत बनाता है
किसान।
खाद को मिलाता है
खेत को निराता है
श्रम का पसीना
इसमे बहाता है
बीज का रोपण  कर
पौंध बनाता है
किसान।
सुबह उठ जाता है
खेतों पर जाता है
श्रम उसका फल जाये
मन्नत मनाता है
पौंधा खिलने के साथ
खुश हो जाता है
किसान।
श्रम का प्रतीक है
जीवन का गीत है
आस्थाओं से अधिक
पौरुष का मीत  है
हर कौर के साथ
याद हमे आता है
किसान।


गुरुवार, 13 जून 2013

चुभन

कांटे अगर फूल होते
धूप से मुरझा जाते,
तेज़ हवा से बिखर जाते
ज़मीन पर गिर कर
पैरों की ठोकर पाते
पर/कांटे-
पूरी बहादुरी से
धूप और हवा का मुकाबला करते हैं
मुरझाते नहीं
कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते
 लेकिन, इसके बावजूद 
बहादूरों की प्रेरणा  कांटे
बदनाम हैं
क्योंकि,
वह चुभते हैं।

शनिवार, 8 जून 2013

गंगा, मेरी माँ!

माँ
और गंगा जल
समाता है
जिनकी गोद में
आदमी।

2
गंगा
और माँ
एक पवित्र
दूसरी पतिव्रता।

3
गंगा माँ
और माँ
सब याद करें
दुख में।

4
माँ कहाँ
गंगा में प्रदूषण
सबने कहा
गंगा मर गयी।

5
गंगा
और माँ
जीवनदायनी।

6
हिमालय से निकली गंगा
शिव ने समेटा
घर से विदा हुई माँ
पति ने स्वीकारा
फिर दोनों ने छोड़ दिया
बच्चों के पालन के लिए।

7
गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।

8
गंगा और माँ में अंतर
एक में फेंकते हैं कचरा
दूसरी को समझते हैं
कचरा ।

9
गंगा सूख रही है
माँ मर गयी है
हम कह रहे हैं
कहाँ हो माँ!

10
जहां गंगा बहती है
जहां माँ रहती है
वहीं बसता है
जीवन।











अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...