शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

खुश रहो

देना चाहता हूँ शुभकामनायें
उन लोगों को, जो,
माना नहीं पाते
अपना जन्मदिन
काट नहीं पाते केक,
बाँट नहीं पाते उपहार,  मिठाइयां  और
ढेर सारी खुशियां।
मगर कैसे दूँ
उन्हे खुद याद नहीं अपने जन्म की तारीख
वह तो पैदा हो गए थे
ऐसे ही
पिता मजूरी करके आते
माँ बर्तन माँजती, झाड़ू पोछा करती
दोनों थके होते
सोना चाहते
पिता की इच्छा कुलांचे मारती
वह माँ को अपनी ओर खींचते
माँ कसमसाती
पर विरोध नहीं कर पाती
समर्पण कर देती खुद को
पति को ।
फिर दोनों सो जाते
भूल जाते
कोई जीव बन सकता है
इस कारण
इसीलिए
जब यह बच्चे पैदा होते हैं/तो
उनके माता पिता तक
भूल जाते हैं उनके जन्म की तारीख।
इसलिए/देना चाहता हूँ
कहना चाहता हूँ-
जब पैदा हो ही गए हो
तो खुश रहो।

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

करोड़पति मुर्दा

यकायक
वह शांत हो गया
सांस रुक गयी
शायद मर गया था
आसपास इकट्ठा लोग रोने लगे
बेटा, बेटी और पत्नी
क्रमानुसार अपेक्षाकृत ज़्यादा ज़ोर से रो रहे थे।
यकायक
उसने आँख खोई
रोते हुए लोगों को देख कर घबरा गया
बोला- क्या हुआ?
क्यों रो रहे हो तुम सब।
यह देख कर
रोने के स्वर ज़्यादा तेज़ हो गए
करोड़पति मुर्दा ज़िंदा जो हो गया था।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

घर बनाने की बात करें

न तुम कुफ़र करो, न हम पाप करें।
मिल बैठ कर इंसानियत की बात करें।

लड़ भिड़ कर जलाए कई आशियाने
आओ  अब इक घर बनाने की बात करें।
हमने जलाया है, खोया है, बांटा है,
आओ अब कुछ जुटाने की बात करें।
मेरा धर्म तुम्हारे मजहब से मिलता नहीं,
धर्म को मजहब से मिलाने की बात करें।
गुलशन वीरान, रौंद दिये पौंधे सारे,
आओ कल को सजाने की बात करें।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल

मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं,
कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है.

2.
रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं,
उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा।

3.
क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको,
इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं।

4.
दुश्मनी करो इस तबीयत से
कि दुश्मन भी लोहा मान ले।

5.
आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर
जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।

सोमवार, 28 जनवरी 2013

ढूंढते रहे अर्थ

मैंने
पृष्ठ पर पृष्ठ
भर दिये थे यह सोच कर
कि तुम पढ़ोगे
मेरी भावनाएं समझोगे
लेकिन, तुम मेरी
लिखावट में उलझे रहे
ढूंढते रहे व्याकरण की त्रुटियाँ
ठीक करते रहे मात्राएँ
भाँपते रहे,
खोजते रहे,
और लाते रहे
अपने-मेरे बीच
पंक्तियों के बीच के अर्थ ।















शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

राष्ट्रीय ध्वज

गणतंत्र दिवस पर
राष्ट्र ध्वज
आसमान पर लहराता है
फहर फहर कर
हवा में गोते लगाता है
समुद्र की लहरों सा
उन्मुक्त नज़र आता है
यह राष्ट्रीय ध्वज
हम भारत गणतंत्र के गण
हर 26 जनवरी फहराते हैं !
गलत,
हम ध्वज के साथ
फहराये कब !
ध्वज की उन्मुक्तता के साथ
आकाश में लहराये कब
हमने कहाँ अनुभव की
ध्वज की प्रसन्नता
कहाँ महसूस की
स्वतंत्र  वायु की प्रफुल्लता
हम तो बस गण है
जन गण मन गाने को
और फिर अगले साल तक
सो जाने को।

रविवार, 20 जनवरी 2013

बुधिया की दौड़

बुधिया इतनी तेज़
कैसे दौड़ लेता है?
आसान है इसे समझना
दस किलोमीटर दूर स्कूल में
समय पर पहुँचने के लिए
उसे दौड़ना पड़ता था।
पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही
बुधिया को खाना मिल सकता था
इसलिए
खेत तक जाने और आने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
पिता मर गए
खेत बिक गए
बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका
शहर आ गया
सरकारी नौकरी के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ा
सरकारी नौकरी नहीं मिली
सो, नौकरी करने लगा
चाय की दुकान पर
झुग्गी से कई किलोमीटर दूर
दुकान तक पहुँचने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो
सामने भूख हो
वह बुधिया
तेज़ तो दौड़ेगा ही।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...