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संदेश

राष्ट्रीय ध्वज

गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र ध्वज आसमान पर लहराता है फहर फहर कर हवा में गोते लगाता है समुद्र की लहरों सा उन्मुक्त नज़र आता है यह राष्ट्रीय ध्वज हम भारत गणतंत्र के गण हर 26 जनवरी फहराते हैं ! गलत, हम ध्वज के साथ फहराये कब ! ध्वज की उन्मुक्तता के साथ आकाश में लहराये कब हमने कहाँ अनुभव की ध्वज की प्रसन्नता कहाँ महसूस की स्वतंत्र  वायु की प्रफुल्लता हम तो बस गण है जन गण मन गाने को और फिर अगले साल तक सो जाने को।

बुधिया की दौड़

बुधिया इतनी तेज़ कैसे दौड़ लेता है? आसान है इसे समझना दस किलोमीटर दूर स्कूल में समय पर पहुँचने के लिए उसे दौड़ना पड़ता था। पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही बुधिया को खाना मिल सकता था इसलिए खेत तक जाने और आने के लिए बुधिया को दौड़ना पड़ता था। पिता मर गए खेत बिक गए बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका शहर आ गया सरकारी नौकरी के लिए बुधिया को दौड़ना पड़ा सरकारी नौकरी नहीं मिली सो, नौकरी करने लगा चाय की दुकान पर झुग्गी से कई किलोमीटर दूर दुकान तक पहुँचने के लिए बुधिया को दौड़ना पड़ता था। जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो सामने भूख हो वह बुधिया तेज़ तो दौड़ेगा ही।

खालीपन जहर और दोष

पसर जाता है हम लोगों के बीच अनायास इतना खालीपन कि, सहज जगह पा जाती हैं कोंक्रीट की दीवारें। जहर जीने वालों को बार बार पीना पड़ता है जहर मरने वाले क्या खाक नीलकंठ बन पाते हैं। दोष  जो साथ चलना नहीं चाहते वह अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।    

बेटी पैदा हुई

उदास थे पिता सिसक रही माँ बेटी पैदा हुई। मिठाई कहाँ बधाई कहाँ घर में शोक फैला यहाँ वहाँ। औरत के होते हुए यह क्या बात हुई। बेटी पैदा हुई। वंश की चिंता सब की चिंता उपेक्षित बेटी को कौन कहाँ गिनता। पढे लिखे समाज में जहालियत की बात हुई । बेटी पैदा हुई। वंश चलाने को बेटे की आस में माँ फिर माँ बनी बेटे के प्रयास में। भूंखों की फौज खड़ी नासमझी की बात हुई। बेटी पैदा हुई। बेटे की माँ ने बेटी की माँ ने भ्रूण हत्या की बेटी के बहाने। कैसे होगा बेटा अगर बेटी की न जात हुई।  

हवा

तुम यदि हवा हो तो मुझे अनुभव करो मुझे अपना अनुभव कराओ किन्तु तुम तो हवा की तरह गुज़र जाती हो तुम्हारा एहसास तक शेष नहीं रहता।

खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन जब, मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी । लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी, थोड़ी कच्ची भी। मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी । खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में फर्क नहीं करती वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है क्योंकि, मुन्ना की थाली में जो घी है वह चुन्ना की थाली में नहीं वह उसे खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता । पर एक चीज़ होती है भूख जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में समान होती है, समान रूप से सताती है वह जब लगेगी, तब मुन्ना घी के साथ और चुन्ना घी की खुशबू के साथ ज़रूर खाएगा खिचड़ी।  

बहक गयी बेटी

माँ ने सीख दी थी- बेटी दफ्तर जाना और सीधे घर वापस आना इधर उधर देखना नहीं किसी की छींटाकशी पर कान भी मत देना बेटी/माँ की सीख का अक्षरशः पालन करती थी दफ्तर जाती और सीधे वापस आती इधर उधर भी नहीं देखती, न कुछ सुनती । इसके बावजूद/एक दिन लड़की का अपहरण हो गया कुछ लोग उसे बलात्कार के बाद बेहोश छोड़ गए सड़क पर, गंभीर हालत में । अस्पताल में लड़की का ईलाज चल रहा था बाहर माँ विलाप कर रही थी- हाय क्या हो गया बिटिया को कैसे बहक गए उसके पाँव।