बुधवार, 9 जनवरी 2013

खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन जब,
मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा
चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी ।
लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा
मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा
चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी,
थोड़ी कच्ची भी।
मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी
चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी ।
खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू
गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद
गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में
फर्क नहीं करती
वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में
अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है
चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है
क्योंकि,
मुन्ना की थाली में जो घी है
वह चुन्ना की थाली में नहीं
वह उसे
खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता ।
पर एक चीज़ होती है भूख
जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में
समान होती है, समान रूप से सताती है
वह जब लगेगी, तब
मुन्ना घी के साथ
और चुन्ना घी की खुशबू के साथ
ज़रूर खाएगा खिचड़ी।


 

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

बहक गयी बेटी

माँ ने
सीख दी थी- बेटी
दफ्तर जाना और सीधे
घर वापस आना
इधर उधर देखना नहीं
किसी की छींटाकशी पर
कान भी मत देना
बेटी/माँ की सीख का
अक्षरशः पालन करती थी
दफ्तर जाती और सीधे वापस आती
इधर उधर भी नहीं देखती,
न कुछ सुनती ।
इसके बावजूद/एक दिन
लड़की का अपहरण हो गया
कुछ लोग उसे बलात्कार के बाद
बेहोश छोड़ गए सड़क पर,
गंभीर हालत में ।
अस्पताल में
लड़की का ईलाज चल रहा था
बाहर माँ विलाप कर रही थी-
हाय क्या हो गया बिटिया को
कैसे बहक गए उसके पाँव।

न्यू इयर सेलिब्रेशन

नया साल सेलिब्रेट करने
निकले  थे कुछ लोग
नाचते रहे रात भर
डिस्को पर
झूमते रहे पी कर
पब में
जैसे ही बजा बारह का घंटा
बुझी और जली रोशनी
गूंज उठा  खुशियों भरा शोर
चढ़ गया  नशे का सुरूर
कुछ ज़्यादा थिरकने लगे थे
लड़खड़ाते पाँव ।
सेलिब्रेशन खत्म हुआ
सिर पर चढ़े नशे के साथ
लड़खड़ाते पैर
रोंद रहे थे सुनसान सड़क
तभी निगाह पड़ी
ठंड से काँपते अधनंगे शरीर पर
देखने से पता लग रहा था
शरीर जवान है-शायद अनछुवा भी
शराबी आँखें गड़ गयी जिस्म के खुले हिस्सों पर
आँखों आँखों में बाँट लिए अपने अपने हिस्से
नशे से मुँदती आँखों पर
चढ़ गया जवानी का नशा
गरम लग रहा था काँपता शरीर
घेर लिया दबोच लिया उसे
कामुकता भरे उत्साह से
उछलने लगे उसके शरीर के चीथड़े
बोटी तरह नुचने लगा शरीर
कामुक किलकारियाँ और हंसी
डिस्को कर रही थी दर्द भरी चीख़ों के साथ
शायद बहरे हो चुके थे आसपास के कान
न जाने कितनी देर तक
मनता रहा हॅप्पी न्यू इयर
जब खत्म हुआ
दरिंदगी का उत्सव
फूटपाथ  पर रह गया
कंपकँपाता शरीर 
जिसे दरिंदों की तरह
ज़्यादा कंपा रही थी शीत लहर ।





 

सोमवार, 24 दिसंबर 2012

लाठी

हमारे घर में
बाप भाई होते हैं
जो हक़ीक़त में मर्द होते हैं
हमारे घर में
माँ, बेटी और बहन नहीं होती
सिर्फ औरते होती हैं
या लड़कियां होती हैं
औरतें/जिन्हे मर्द
बाप बन कर या
भाई बन कर
नियंत्रित करते हैं
क्योंकि,
औरतें
नाक कटा सकती हैं
बलात्कार की शिकार हो कर
या विजातीय विवाह कर
हमारे घर में
बेटे नहीं होते
लठियाँ  होती हैं
ताकि/ बुढ़िया
टेक लगा सके
लड़खड़ाए नहीं।

मंगलवार, 13 नवंबर 2012

उदास उजाला

कल
दीपावली के प्रकाश में नहाया मैं
आतिशबाजी की रोशनी से चकाचौंध
पटाखों के शोर से बहरा
देख नहीं सका
ठीक पीछे की अंधरी झोपड़ी को
और सुन नहीं सका
झोपड़ी में उदास बैठे
नन्हे की सिसकियाँ 

रविवार, 11 नवंबर 2012

सिर्फ दो पंक्तियाँ नहीं

चाहा था तुमने मेरा दामन दागदार करना
बात दीगर है कि  तुम्हारे हाथ मैले हो गए .

वह कुछ समझते नहीं, मैं समझ गया,
यही बात समझाना चाहते थे शायद।

बल्बों की लड़ियाँ सजाने से बात न बनेगी
दो जोड़ आँखों की कंदीलें जलाओ तो समझूं .

दूर तक जाते खड़े देखते रहे मुझको
कुछ कदम बढाते तो साथ पाते मुझको।

मैंने एक दीया जला के परकोटे पे रख दिया है,
शायद कोई भटकता हुआ मेरे घर आ रहा हो।
 

रिक्तता

मेरा देखना का नजरिया थोडा अलग है
मैं आधा भरा गिलास नहीं
मैं आधा खाली गिलास देखता हूँ
मुझे उत्तर पुस्तिका की रिक्तता में
खेत के खाली हिस्से में
अधूरे इंसान में
संभावनाएं दिखती  हैं
आधे गिलास को मैं पूरा भर सकता हूँ
उत्तर पुस्तिका के रिक्त पृष्ठों पर मैं
जीवन के कठिन प्रश्न हल कर सकता हूँ
खाली खेत की निराई, गुड़ाई और बुवाई कर
उम्मीद की फसल बो सकता हूँ
खाली गिलास, रिक्त पृष्ठ और अनबुआ  खेत की तरह
अधूरे इंसान को पूरा करना ही
दृष्टिकोण है मेरा।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...