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संदेश

लाठी

हमारे घर में बाप भाई होते हैं जो हक़ीक़त में मर्द होते हैं हमारे घर में माँ, बेटी और बहन नहीं होती सिर्फ औरते होती हैं या लड़कियां होती हैं औरतें/जिन्हे मर्द बाप बन कर या भाई बन कर नियंत्रित करते हैं क्योंकि, औरतें नाक कटा सकती हैं बलात्कार की शिकार हो कर या विजातीय विवाह कर हमारे घर में बेटे नहीं होते लठियाँ  होती हैं ताकि/ बुढ़िया टेक लगा सके लड़खड़ाए नहीं।

उदास उजाला

कल दीपावली के प्रकाश में नहाया मैं आतिशबाजी की रोशनी से चकाचौंध पटाखों के शोर से बहरा देख नहीं सका ठीक पीछे की अंधरी झोपड़ी को और सुन नहीं सका झोपड़ी में उदास बैठे नन्हे की सिसकियाँ 

सिर्फ दो पंक्तियाँ नहीं

चाहा था तुमने मेरा दामन दागदार करना बात दीगर है कि  तुम्हारे हाथ मैले हो गए . वह कुछ समझते नहीं, मैं समझ गया, यही बात समझाना चाहते थे शायद। बल्बों की लड़ियाँ सजाने से बात न बनेगी दो जोड़ आँखों की कंदीलें जलाओ तो समझूं . दूर तक जाते खड़े देखते रहे मुझको कुछ कदम बढाते तो साथ पाते मुझको। मैंने एक दीया जला के परकोटे पे रख दिया है, शायद कोई भटकता हुआ मेरे घर आ रहा हो।  

रिक्तता

मेरा देखना का नजरिया थोडा अलग है मैं आधा भरा गिलास नहीं मैं आधा खाली गिलास देखता हूँ मुझे उत्तर पुस्तिका की रिक्तता में खेत के खाली हिस्से में अधूरे इंसान में संभावनाएं दिखती  हैं आधे गिलास को मैं पूरा भर सकता हूँ उत्तर पुस्तिका के रिक्त पृष्ठों पर मैं जीवन के कठिन प्रश्न हल कर सकता हूँ खाली खेत की निराई, गुड़ाई और बुवाई कर उम्मीद की फसल बो सकता हूँ खाली गिलास, रिक्त पृष्ठ और अनबुआ  खेत की तरह अधूरे इंसान को पूरा करना ही दृष्टिकोण है मेरा।

निराशा

कभी/जब आशा साथ छोड़ जाए चारों ओर निराशा ही निराशा हो तब घबराओ नहीं निराशा को दोस्त बनाओ उससे प्यार करो वही बताइएगी आशा की राह क्यूंकि निराशा सबसे अधिक अनुभवी होती है उसे हर कोई ठुकराता है उसे हमसे ज़्यादा दर दर की ठोकरें जो मिलती हैं वह हमेशा आशा की जगह लेने के लिए आशा का पीछा करती रहती है इसीलिए वह भगवान से भी ज़्यादा जानती है कि आशा कहाँ मिलेगी।

ज़िंदा

मूर्ति की भांति मैं खड़ा था निःचेष्ट । एक व्यक्ति आया उसने मुझे देखा मैं हिला नहीं। फिर ज़्यादा लोग आए किसी ने मुझे छुआ बांह से/बालो से/ सीने से मैं कसमसाया तक नहीं कुछ ने मेरी नाक उमेठी बाल खींचे आँख में उंगली डाल दी मैंने कोई विरोध नहीं किया। फिर सब चले गए मैं अकेला रह गया चौकीदार आया मेरी बांह पकड़ कर बोला- चल बाहर चल, मुझे मोमघर बंद करना तुझे अंदर नहीं रख सकता क्योंकि तू सचमुच ज़िंदा है।

वर्तमान

हमारे अपने है, हमारे द्वारा निर्मित हैं भूत, भविष्य और वर्तमान । हम/अपने भूत को पलट पलट कर देखते हैं/रोते हैं किन्तु, अलविदा नहीं कहते । हम अपने भविष्य को बँचवाते हैं/सपने बुनते हैं/सोचते रहते हैं । हम अपने वर्तमान को देखते नहीं/बाँचते नहीं/सँवारते नहीं उधेड़बुन में बीत जाने देते हैं देखते रहते हैं वर्तमान को भूत बनते और फिर जुट जाते हैं भविष्य बँचवाने/सपने बुनने में  सँवारने में नहीं । भविष्य सँवारने की कोशिश करें भी तो कैसे वर्तमान को तो हम अंधे बन कर लूला लंगड़ा असहाय गुजर जाने देते हैं।