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दिवाली

घोर अंधेरी रात में जगमग की बरसात ले दीवाली आयी है ।। बिखरी हैं जगमग रोशनियाँ । सजी हुई खुशियों की लड़ियाँ । अमावस को दूर भगा दीप बत्तियाँ जला जला धरती माँ जगमगाई है। दीवाली आयी है। झिलमिल झिलमिल दीप जले । खिल खिल खिल खिल खील खिले। लक्ष्मी माँ अब आ जाओ पूजा की बेदी सजाई है। दीवाली आयी है।  

ममता

देख रहा दुःस्वप्न छीने ले जा रहा कोई माँ की गोद से । व्याकुल बच्चा छटपटा रहा चीखना चाह रहा रोना चाह रहा किन्तु अंजाना सा भय आवाज़ नहीं निकलने दे रहा मुंह से बड़ी कठिनाई से बच्चा चीखता है- माँ ! तभी सर पर फिरने लगती हैं कोमल और ममता भरी हथेली सो जा बेटा मैं हूँ तेरे पास हल्की मुस्कुराहट बिखेर कर आश्वस्त हो सो जाता है बच्चा पास ही तो है माँ !  

दिवाली

छूटते पटाखे जलती फुलझड़ियाँ और अनार आसमान पर थिरकती हवाई ज़मीन पर नाचती चक्री देख रहा है मुन्ना जलते दीपकों के बीच झिलमिला रही हैं आंखे। (2) बड़ी दियाली छोटी दियाली अगल बगल दोनों में जलती बाती आनंद ले रहीं अंधेरे के बिखरने का तभी बड़ा दीपक इतराया ज़ोर से लहराया/और बोला- ऐ छोटी डर नहीं मेरे नीचे छिप जा मैं बचा लूँगा तुझे हवा नहीं बुझा पाएगी तुझे  कि तभी, हवा का तेज़ झोंका आया सम्हलते सम्हलते भी बड़े दीपक की बाती बुझ गयी लेकिन, छोटी दियाली अंधेरा भगा रही थी उस समय भी। (3) दीवाल पर मुन्ना के नयनों में दीपक जले। (4)  

मुंगेरीलाल के सपने

मैं मुंगेरीलाल हूँ मैं सपने देखता हूँ । अरे तुम हँसे क्यों मेरी आँखें क्यों नहीं देख सकती सपने  हर आँखों में नींद होती है सपने होते हैं सोने के बाद सभी आँखें सपने देखती हैं मैं भी देखता हूँ शायद तुम यह सोचते हो कि मेरे सपने तो मुंगेरीलाल के सपने हैं जो पूरे नहीं हो सकते लेकिन, बंधु हमारे देश के कितने लोगों के सपने पूरे होते हैं ज्यादातर सपने तो जागने से पहले ही बिखर जाते हैं कुछ आंखे तो  सपनों के बिखरने के लिए आँसू बहाती हैं इसके बावजूद अगले दिन फिर सपने देखती हैं हमारे देश में मुंगेरीलाल सपने ही तो देख सकता हैं।  

विभीषण

तीन भाई होते हुए भी तीन भाइयों वाले राम से इसलिए हारा रावण कि जहां राम के साथ भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण थे वही रावण के तीन भाइयों में एक विभीषण जो था।  

सोचो राम !!!

प्रत्यंचा चढ़ाये होठों में मुसकुराते /राम से रावण ने कहा- राम तुम राम न होते मैं रावण नहीं होता तुम वहाँ नहीं होते मैं यहाँ नहीं होता अगर, थोड़ा रुक कर बोला रावण - यहाँ अगर का बड़ा महत्व है राम अगर तुम्हें भाई घाती सुग्रीव न मिलता तो तुम बाली को न मार पाते बानरों से सीता का पता न पाते अगर तुम मेरे भाई को विभीषण न बनाते तो मेरी नाभि के अमृत का पता न चलता मेरी अमरता को मार न पाते । तुम  राम हो और मैं रावण  हूँ क्योंकि मुझे विद्रोही भाई मिले जबकि तुम्हें भरत मिला । अगर भरत भी विभीषण बन जाता तो सोचो राम क्या तुम राम बन पाते ? अयोध्या के राजा बन कर अपनी मर्यादा जता  पाते? सोचो राम !!!  

ऊन उलझी

जाड़ों  में एक औरत स्वेटर बुनती है । फंदा डालना है फंदा उतारना है अधूरे सपनों को इनसे संवारना है हरेक स्वेटर में ज़िंदगी गुनती है। जाड़ा आता है जाड़ा चला जाता है जिसने कुछ ओढा हो उसे यह भाता है। गुनगुनी धूप से भूख कहाँ रुकती है। जिंदगी की स्वेटर में डिजाइन कहाँ उलझी हुई ऊन से सब हैं यहाँ ऐसी ऊन से माँ सपने बुनती है ।