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संदेश

कौव्वा

कभी हमारे घर की मुंडेर पर कौव्वा आ बैठता था। जब वह कांव कांव करता तो आ आ का आभास होता  हम बच्चे उसे उड़ाने लगते पत्थर फेंक कर/तब माँ कहती- बेटा, ऐसा न कर मेहमान घर आने वाला है कौव्वा उनके आने का संदेश दे रहा है आज घर है मुंडेर नहीं कौव्वा बैठे भी तो कहाँ क्या/शायद इसीलिए हमारे घर कोई मेहमान नहीं आता?

डरा बच्चा

बच्चा बिछुड़ गया है/अपनी माँ से कैसे/ कैसे छूट गया हाथ बच्चे का/ माँ से कैसे/ कैसे हो सकती है /असावधान माँ सोच रहा है बच्चा डर रहा है बच्चा डरा रहा है परिचित चौराहा चिरपरिचित राह भयभीत है कहाँ गयी माँ मुझे छोड़ गयी माँ या लौट कर आएगी माँ हा माँ! आ माँ!! कहाँ छोड़ गयी माँ!!! चार राहों के बीच असुरक्षित, भयभीत और असहाय बच्चा रो रहा है! रो रहा है!! रो रहा है!!!

विदाई

एक रोती लड़की से मैंने कहा- तू पैदा हुई तब रो रही थी। जब विदा हो रही थी तब भी रो रही थी। फिर पूछा- आज जब माँ बनने वाली है तब भी तू रो रही है? लड़की रोती रही/बोली- पैदा होते समय तू भी रोया होगा पर मेरे भाग्य में तो पग पग रोना लिखा है पिता पढ़ाने में रोया शादी के समय दहेज देने में रोया सही है कि मैं विदा के समय भी रोयी और आज भी रो रही हूँ क्योंकि मुझे आज भी रोना है और कल भी। कल बेटी विदा होगी तब  रोटी लेकिन मुझे आज ही रोना होगा डॉक्टर के यहाँ जाना है क्योंकि मेरे पति बेटी को आज ही विदा करना चाहते हैं।

बूढ़ा- कोना

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कोने में बूढ़ा

अंधेरे कोने की धूप सा अकेला दुबका रहता  है/ बूढ़ा कुछ अपने में सिमटा हवा से/खिड़कियों के हिलने से कुछ सहमा घर में/ किसी को क्या फर्क पड़ता है कि/ कोने में धूप है या नहीं लेकिन अंधेरे कोने को फर्क पड़ता है थोड़ा नज़र आता है/ कोना खत्म हो जाता है/ अकेलापन कोने का/बूढ़े का भी तभी तो/जब धूप का टुकड़ा/और बूढ़ा अलविदा/तब कोना/हो जाता है कुछ उदास/गहरा उदास।  
मैं कब का चला आया था, पास समझ रहे थे तुम, आवाज़ की गूंज को मेरी आवाज़ समझ रहे थे तुम। सामने जब तलक बैठा रहा देखा नहीं तुमने मुझको, मेरे साये का  बड़ी देर तक पीछा करते रहे थे तुम। तुम नाराज़ थे मैं मनाता रहा न माने तुम,

वसीयत

मैंने अपनी वसीयत लिख दी है ग़रीबी बड़े बेटे के नाम मुफलिसी छोटे के नाम और भूख खुद के लिए छोड़ दी है। बड़ा/ पैसे कमा कर ग़रीबी दूर कर लेगा छोटा/ धीरे धीरे सब जुटा कर मुफलिसी दूर कर लेगा। मैंने/ भूख/ अपने नाम इस लिए की है/ क्योंकि भूख से मेरा बचपन का नाता है मैंने इसे खाया, पिया और जिया है यह मेरी बाल सखा, सहेली, सहपाठी और संगिनी है इतने गहरे रिश्ते/मैं बच्चों में नहीं बाँट सकता यह मेरे अतीत के पन्ने है मैं/ इन्हे/ कभी नहीं पलटता तो/वसीयत में/ कैसे जोड़ देता बच्चों में कैसे बाँट देता!