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संदेश

धूल

धूल पर हम चाहे जितनी नाक भौंह सिकोड़ें यह अजर, अमर और सर्वत्र है इसका अपना महत्व है घमंडी धूल में मिल जाता है शरीर को धूल में ही मिल जाना है यह ज़मीन से उठती है हवा के साथ उड़ कर आसमान छू लेती है हमारे शरीर पर पैर से सर तक लिपट जाती है धूल का घमंड उसे आसमान से ज़मीन पर बिखेर देता है सर- माथे पर जमी धूल को हम सर माथे नहीं लगाते पैर की धूल के साथ नाली में बहा देते हैं.

मैं लड़की

भाई मैं एक लड़की हूँ मैं आपको भाई नहीं कहना चाहती पर मुझे कहना पड़ेगा अन्यथा मेरे सम्बोधन के अनर्थ निकाले जाएंगे आप किसी औरत को किसी नीयत, किसी मक़सद से भाभी कहो कोई अनर्थ नहीं खोजेगा लेकिन मेरा किसी को जीजा कहना कितने ही अनर्थ को जन्म देगा क्यूंकि लड़की यानि औरत  हर मायने में ग़रीब होती है।

बच्चे की सुबह

बच्चा सुबह ज़ल्दी जाग जाता है वह डर जाता है बाहर से अन्दर झाँक रहा है अँधेरा बच्चा कस कर ऑंखें भींच लेता है अपनी मुंदी पलकों के अँधेरे से बाहर के अँधेरे को झुठलाने की कोशिश करता है. ऐसे ही लेटा रहता है देर तक थोड़ी देर में सुबह का उजाला खिडकियों की झिरी से दरवाज़े की सरांध से अन्दर झांकता है फिर बच्चे को देख कर अन्दर पसर जाता है, उसके चारों ओर बाहर चिड़ियाँ दाना चुग रही हैं एक दूसरे को बुला रही हैं चूँ चूँ पुकार करके उनका कलरव, पंखों का फड़फड़ाना बच्चे के कानों में दस्तक देता है बच्चा आँख खोल देता है, आ हा ! सुबह हो गयी ! वह हाथ पाँव फेंकता हुआ मानो माँ को जगा रहा है- उठो माँ, सुबह हो गयी।

मालती

मेरे हाथों में मालती का ख़त है. उसने लिखा है- तुम हमेशा मेरे दिल में ही थे राजेश!         #        #          #         #        #      # हम दोनों कॉलेज के दिनों में मिले थे. को-एजुकेशन वाला कॉलेज था. मालती मेरे ही क्लास में ही पढ़ती थी. बेहद खूबसूरत थी और उतनी ही चंचल भी. अपनी सहेलियों के साथ दिन भर हंसी मज़ाक करना उसका शगल था. लेकिन, थी वह पढ़ने में तेज़. क्लास टेस्ट में भी वह हम लड़कों से अव्वल आती। . वह मेरी और कब आकृष्ट हुई पता नहीं. पर मैं पहले ही दिन से उस पर फ़िदा हो गया था।  यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि कॉलेज का हर लड़का उस पर फ़िदा था. कुछ कम फ़िदा थे तो कुछ ज्यादा और कुछ तो बहुत ज्यादा. जान देने वाले भी थे एक दो. ऐसे विरल जीवों में से एक मैं भी था. लेकिन वक़्त आने पर यह स्पीसीज जान देने में पीछे हट जाती है. हाँ तो मैं बता रहा था ...

हिमखंड

तुम मुझे कितना जानते हो? हिमखंड जितना! मुझे जानना हो तो तुम्हें समुद्र की गहराइयाँ नापनी होंगी। क्यूंकि मैं हिमखंड जैसा हूँ जितना बाहर से दिखता हूँ। उससे कई गुना बड़ा समुद्र के अंदर होता हूँ। चूंकि तुम में समुद्र नापने का माद्दा नहीं इसलिए तुम मुझे समुद्र की सतह से देख कर मान लेते हो कि तुमने मुझे जान लिया और फिर अपनी कमी को मेरी कमी बता कर कहते हो कि मैं सतही हूँ। 

सपना

सपना श्रीमती थीं या कुमारी कोई नहीं जानता था।  सरनेम तक पता नहीं था किसी को।  कॉलोनियों की खासियत होती है कि वहां एक दूसरे को कोई अच्छी तरह से जानता नहीं या जानने की कोशिश भी नहीं करता। ऎसी जगहों में परपंच को जगह मिलती है।  यह परपंच किसी बाई या नौकर के जरिये एक कान से दूसरे कान तक फैलते हैं। कुछ सजग निगाहें भी ऎसी मुआयनेबाज़ी करती रहती हैं।  सपना की भी होती होगी। तभी तो यह बात फैली कि वह सजी तो ऐसे रहतीं जैसे मिसेज हों। लेकिन कोई स्थायी आदमी उसके घर में रहता नहीं दिखता था। हाँ, रोज कोई न कोई नया आदमी या फिर पुराना ही आता और देर रात तक जाता दीखता था। अमूमन, सपना  इनमे से किसी के साथ सजी धजी निकल जाती, कभी किसी कार में या टेक्सी में। कब लौटती ! कोई नहीं जानता था। लेकिन सुबह उसे दूध उठाते, बालकनी में टहलते या अखबार पढ़ते ज़रूर देखा जाता था।  उसके रोज के चलन को देखते हुए लोगों ने यह तय कर लिया था कि वह बदचलन हैं। या साफ़ साफ़ यह कि वह कॉल गर्ल या वेश्या थी।  लेकिन मुंह के सामने कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी। ...

महाकवि

मैंने लिखी कुछ पंक्तियाँ उन्हें नाम दिया कविता उन्हें छपने भेजा वह छपीं प्रशंसा मिली मैं कवि बन गया था। मैंने और कविताएँ लिखीं वह भी छपीं इस बार प्रशंसा और पुरस्कार भी मिले मैं खुशी और एहसास से फूल उठा मैं बड़ा कवि बन गया था अब मैं कविता नहीं लिखता अब मैं लिखी कविताओं की आलोचना करता हूँ कवि सम्मेलनों में कवि पाठ करता हूँ। क्यूंकि मैं अब कवि नहीं रहा अब मैं महाकवि बन गया हूँ।