बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सहारा

अंधे की किस्मत !
उसकी एक आँखोवाली लड़की से शादी हुई
जिसने देखा सराहा -
चाँद सी बहू मिली है तुझे ।
वह इसे कैसे समझता
उसने चाँद देखा ही कब था ।
फिर बच्चे का जन्म हुआ
लोगो ने कहा-
बिलकुल माँ पर गया है.
वह इसे भी समझता कैसे!
उसने तो माँ को तक नहीं देखा था.
बच्चा बड़ा हुआ
आँख वाला था
इसलिए अच्छा पढ़ लिख गया ।
एक दिन न जाने क्या हुआ
घर छोड़ कर भाग गया
अंधे ने इसे अपनी किस्मत मान लिया
फिर एक दिन खबर आई
परदेश में एक दुर्घटना में
बेटा मारा गया था.
उसने अपनी अंधी आँखों से दो बूँद आंसू गिरा दिए
पर वह कानों से सुन सकता था
बच्चे के लिए बिलखती पत्नी की सिसकियों को ।
पत्नी बच्चे का गम सह न सकी
दो दिन बाद वह भी मर गयी
बेटे की याद में दो आंसू बहाने वाला अँधा
दहाड़े मार कर रोने लगा
क्यूंकि
बेटा तो चाँद सा था
लेकिन पत्नी तो सहारा भी थी.  

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

कातरता

मैं देख रहा था
पिता की आँखों की कातरता
वह कह रहे थे-
बेटा, मकान टूट रहा है,
बारिश में छत चूती है
सारी सारी रात नींद नहीं आती
दस हजार रुपये दे दो
मरम्मत करा लूँगा ।
मुझे याद आया
बचपन में जब बारिश होती
मैं पूरे दिन धमाचौकड़ी मचाता
पिता चिंता में डूबे रहते
कि रात में छत चुएगी
उस समय घर थोडा ही पुराना था
कहीं कहीं से ही टपका आता,
जो रात में
जब बिस्तर पर मेरे ऊपर गिरता
पिता बेचैन हो जाते
अपनी हथेलियों की छाया कर मुझे बचाते
सुरक्षित जगह पर मेरा बिस्तर लगा देते
मुझे चैन की नींद देकर
खुद पूरी रात टपके के साथ जागते गुज़ारते .
एक दिन पिताजी
तीन हज़ार का इंतज़ाम कर लाये थे
छत की मरम्मत के लिए
कि मेरा एक्सिडेंट हो गया
सारे पैसे मेरे ईलाज में खर्च हो गए
मैं ठीक हो गया
छत बदस्तूर टपकती रही.
मैं टूटी छत और पिता के चूते अरमानों के साथ
बड़ा हो गया, पढ़ लिख गया
और नौकरी भी करने लगा
शादी करके बड़े शहर में रहने आ गया.
उम्रदराज पिता के उम्रदराज मकान को
अब मरम्मत की ज्यादा जरूरत थी.
मुझे याद आया
घर में पन्द्रह हज़ार रुपये पड़े हैं.
मैं कहना चाहता था
हाँ पिताजी, ले जाइये पैसे,
करा लीजिये छत की मरम्मत
कि, तभी निगाहें पत्नी की और गयीं
उसकी आँखों की कठोरता से भयभीत मैं
पिता से दीन आवाज़ में इतना ही कह सका-
अभी इतने पैसे कहाँ
इस महंगे शहर में घर चलाना ही कठिन है
पुराने घर के लिए पैसा कैसे बचेगा
पिता के चेहरे पर मुझे
टपके से बचाने वाले भाव थे
वह इतना कह कर चले गए-
बेटा, जल्द ही कोई इंतजाम कर देना
रात में सोना मुश्किल हो जाता है.
बाहर तेज़ बारिश हो रही है
मेरे घर की छत टपक नहीं रही ।
लेकिन मुझे,
टपके से ज्यादा तड़पा रही है
टपकती छत के नीचे
मुझे सुला कर खुद जागते
मुझसे पैसा माँगते बेबस पिता की
कातर आँखें.

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

तस्वीर की मुस्कुराहट

ऐ तस्वीर
वक़्त की मार सह कर
धूल के प्रहार झेल कर
थोड़ी धुंधली पड़ जाने के बावजूद
तुम मुस्करा रही हो.  
तुम्हे कई हाथों के स्पर्श ने
थोडा खुरदुरा कर दिया है,
इसके बावजूद
तुम मुस्करा रही हो
तुम्हारी ही तरह
मेरी भी आँखों के आगे
थोड़ा धुंधलापन छा गया है.
इसके बावजूद
मैं देख सकता हूँ
तुम्हारे चेहरे पर चिर परिचित मुस्कराहट
आज भी तुम वैसे ही मुस्करा रही हो
जैसे सालों पहले
दीवाल पर टाँके जाने के वक़्त
मुस्करा रही थीं.
तुम्हे मुस्कराती  देख कर ही
मैं कह सकता हूँ कि
मैं भी कभी मुस्कराता था.

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

छह क्षणिकाएँ

मुझे सपने
अपने कब लगे।
जब भी दिखे
सपने ही लगे।
2-
ऐसा क्यूँ होता है
कि संवेदनाएं
होती तो अपनी ही हैं
लेकिन
जब उठती हैं
तो दूसरों के लिए।
3-
मैं दुखी था
ऐसा दुख कि
आंखो में आंसूँ थे।
मैंने आसमान की ओर
देख कर कहा-
हे ईश्वर
मुझे इतना दुख?
तभी
आसमान से एक बूंद गिरी
और मेरी आँखों पर
लुढ़क गयी।
मेरे लिए
आसमान भी रो रहा था। 
4-
दुख
दो प्रकार का होता है
अपना और पराया
अपने दुख में हम रोते हैं
लेकिन जब
दूसरों का दुख अपनाते हैं
तो
हम सुखी होते हैं।
5-
आसमान में
कभी सुराख नहीं हो सकता
क्यूंकि आसमान
छत की तरह
सख्त नहीं होता।
6- 
दोस्त
तुम यह मत समझना कि
मैं तुम्हारे साथ
कुछ गलत कर रहा था ।
गलती मेरी है कि
मैं तुम्हें
इंसान समझ रहा था।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

इंसान

इंसान
अगर सांप्रदायिक होता
तो माँ के गर्भ से
उसके हाथ में कटार या तलवार होती
आँखे शोले उगल रही होती
होठों पर नफ़रत के बोल होते.
वह बंद मुट्ठी में
अपनी तकदीर न लाया होता,
उसकी आँखों में करुणा नहीं होती
वह माँ माँ कह कर
बिलख न रहा होता.

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

मनहूस पेड़

मैंने देखा
एक सूखे पेड़ पर
उल्लू बैठे हुए हैं.
भयानक आवाजें करते
आस पास के लोगों
राहगीरों को डराते
पेड़ की किसी साख पर
किसी पक्षी  को नहीं बैठने देते.
इससे चकित हो कर
मैंने पूछ ही लिया-
तुम लोग इस पेड़ पर
कई दिनों से बैठे हो
कहीं और जाते नहीं
सबको डराते हो
पक्षियों को बैठने नहीं देते
वातावरण में मनहूसियत भर गई है.
उल्लू भयानक आवाज़ करते एक साथ बोले-
यह पेड़ कभी हरा भरा था
इसमें फूल खिलते थे
फल लगते थे
पक्षी इस पर बैठ कर
आनंदित हो कर चहकना चाहते
इसके फल चखना चाहते
राहगीर इसकी छाया में आराम करना चाहते
अपनी दिन भर की थकान उतारना चाहते
गाँव के बच्चे
इस पर चढ़ना चाहते
इसका झूला बनाना चाहते
इसके चारों और खेलना चाहते
इसके फल चखना चाहते
लेकिन
यह मनहूस पेड़
उन्हें पास नहीं फटकने देता
अपनी  शाखाओं  को
भयानक तरीके  से हिला कर आवाज़ करता,
लोगों को डरा देता
इस ने  गाँव के बच्चों को कभी
खुद पर बैठने नहीं दिया,
झूला झूलने नहीं दिया
यह उन्हें अपनी  डाल हिला कर
गिरा कर घायल कर देता
लोगों ने डर कर
इसके पास आना बंद कर दिया
इसे मनहूस समझ लिया
इस प्रकार
अकेला पड़ गया यह पेड़
एक दिन सूख गया.
जिस पेड़ ने
अपने हरे भरे रहते
किसी को अपनाया नहीं
कुछ दिया नहीं
उस पर हम न बैठे तो कौन बैठेगा.

सोमवार, 30 जनवरी 2012

ठुल चेल यानि बड़ा बेटा

मैं पैदा हुआ
घर में थाली बजाई गयी,
मिठाइयाँ बांटी गयीं .
रिश्तेदारों क्या पूरे मोहल्ले वालों ने
माँ पिताजी को बधाइयाँ दीं,
मिठाइयाँ कहें.
फिर मेरे बाद
दो भाई और दो बहने और हुईं.
माँ मुझे लोगों से मिलातीं
मेरे सर पर हाथ फेरते हुए परिचय करातीं,  
यह मेरा ठुल चेल यानि बड़ा बेटा है.
मैं घमंड से भर जाता.
मैं पढ़ने में अच्छा था
हमेशा टॉप आता,
भाई बहन भी टॉप करते
माँ पिता कहते
ठुल चेल ने शुरुआत कर दी है,
सभी बच्चे टॉप करेंगे.
ऐसा ही हुआ भी।
मैं पढ़ लिख कर ऑफिसर बन गया.
माँ पिता का सीना फूल गया,
उनका ठुल चेल ऑफिसर बन गया था.
उन्होने कहा, ठुल चेल ने शुरुआत कर दी है।
दोनों भाई भी ऑफिसर बन गए.
दोनों बहनों का विवाह  हो गया. 
मैंने बड़ा घर खरीदा
दोनों भाइयों ने भी अपने मकान बना लिए
माँ गर्व से भर गयीं,
मेरे ठुल चेल ने शुरुआत कर दी थी.
इसलिए दोनों बेटों ने भी घर बना लिए।
फिर हम सबकी शादियाँ हो गयीं.
पत्नियाँ घर आ गयीं
एक दिन पत्नी ने कहा,
सुनो जी, इतनी बड़ी गृहस्थी
मुझसे नहीं सम्हलती
तुमने मकान बना लिया है
चलो वही रहते हैं.
हम लोग शहर में ही हैं,
माँ पिताजी को भी देखते रहेंगे.
मुझे पत्नी का कहाँ ठीक लगा
मैंने माँ को दिन रात
गृहस्थी में खटते देखा था.
मैं नहीं चाहता था कि,
मेरे बच्चों की माँ भी उसी प्रकार खटे.
इसलिए मैं अपनी पत्नी को लेकर
माँ पिता का घर छोड़ कर
अपने घर आ गया.
माँ पिताजी बहुत दुखी थे.
उनके ठुल चेल ने शुरुआत कर दी थी.



अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...