मंगलवार, 10 जनवरी 2012

पतझड़

दरवाज़े पर खडखडाहट हुई
किसी के आने की आहट हुई
मैंने दरवाज़ा खोला
बिखरे सूखे पत्तों के साथ
पतझड़ खड़ा था.
मेरे मुंह से अनायास निकल गया-
आहा, पतझड़ आ गया.
यकायक पतझड़ खड़ खड़ाया
उदास स्वर में बोला-
मैं पिछले एक महीने से
पीले पत्तों सा बिखरा
घर घर जा रहा हूँ
मुझे देखते ही हर मनुष्य भयभीत हो जाता है
दरवाज़ा क्या खिडकी भी बंद कर लेता है
केवल तुम हो जो प्रसन्न हो.
मैंने कहा-
तुम संदेशवाहक हो,
तुम शरीर की नश्वरता के प्रतीक हो कि
ऊंचे पेड़ों की डाल पर चढ़े
पत्तों को भी
पीला हो कर बिखर जाना है
धरा में गिर कर मिटटी में मिल जाना है.
लेकिन
तुम वसंत के आने का सन्देश भी लाते हो
तुम जाओगे तो वसंत आएगा.
नए नए पत्ते हरियाली बिखेरेंगे
और फूल खिल कर रंग बिखेरेंगे
तुम तो जीवन के प्रतीक वसंत के संदेशवाहक हो.
इसलिए मैं तुम्हे देख कर भयभीत नहीं.
आओ पतझड़ आओ!!!

शनिवार, 7 जनवरी 2012

बड़ा साँप

एक आदमी को
साँप ने काट लिया
क्रोधित आदमी ने पलट कर
साँप को काट लिया
और फिर चमत्कार हुआ
जब आदमी के काटने से साँप मर गया
आज आदमी ज़िंदा है
आदमी  जिसे काटता है
वह मर जाता है।
सबसे बड़ा साँप बन गया है
आज आदमी।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

राहगीर

राहगीर
जब चलने लगा
तो रास्ते ने उस से पूछा-
मित्र, मैं तुम्हारा साथ देता हूँ
तुम्हे राह दिखाता हूँ
और तुम हो
कि मुझे छोड़ कर जा रहे हो
क्यूँ मेरा साथ नहीं देते?
क्यूँ हम साथ साथ नहीं रहते?
राहगीर ने कहा-
तुम मेरे पथ प्रदर्शक हो
मुझे लक्ष्य तक पहुंचना है
मैं तुम पर चल कर अपने लक्ष्य पर पहुंचूंगा
इसलिए मुझे तो जाना ही होगा
लेकिन, तुम अकेले कहाँ हो?
अभी और राहगीर हैं
जो आएंगे, तुमसे रास्ता पाएंगे
आगे बढ़ने का.
तुम अगर मेरे साथ चलोगे
तो बेशक मैं राह पा जाऊँगा
अपनी मंजिल तक पहुँच जाऊंगा
लेकिन, बाक़ी का क्या होगा?
उन्हें रास्ता दिखाना
और मंजिल तक पहुंचाना है तुम्हे
इसे तुम तभी कर सकते हो
जब तुम यही रहो
मेरे साथ चल कर तो तुम
राह नहीं राहगीर बन जाओगे
ऐसे में
मार्गदर्शन के बिना
खुद तुम भी भटक जाओगे .

पियक्कड़

मेरे पियक्कड़ मित्र
तुम मुझे नशे में चूर
झूमते, लड़खड़ाते, बहकते और गाली बकते
अच्छे लगते हो.
अच्छे लगते हो,
लड़खड़ा कर गिरते
किसी नाले या गड्ढे में
और फिर निकलते
यह बडबडाते हुए -
अरे, यह गड्ढा कहाँ से आ गया ?
मुझे अच्छा लगता है
क्यूंकि,
तुम सत्ता या दौलत के नशे में नहीं झूम रहे
तुम किसी कमज़ोर को गाली नहीं बक रहे
अपने लड़खड़ाते क़दमों के नीचे रौंद नहीं रहे
तुम अनायास आये गड्ढे में गिरने के बावजूद
उनसे अच्छे हो
जो मदमस्त होकर
कुछ इस तरह गिरते हैं
कि फिर उठ नहीं पाते
अपने बनाए खड्ड में गिरकर
निकल नहीं पाते.

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

2011 को

मैंने 2011 को
अपनी यादों के फ्रेम में
सँजो कर रख लिया है।
क्यूंकि
इस पूरे साल
हर दिन
मुझे याद आता रहा
कि,
एक और एक मिलकर दो नहीं होते
ग्यारह होते हैं।
इसीलिए जब मैं
एक प्रयास में असफल हुआ
तो मैंने अगला प्रयास
ग्यारह गुना जोश से किया
और सफल हुआ।
यही कारण है कि
अगले साल में मेरा
एक अंक बढ़ गया है।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

ऋतु माँ

उस दिन आँख खुली
बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी
बारिश की बूंदे
मेरे घर की खिड़कियाँ पीट रही थीं
मानो कह रही हों-
उठो मेरा स्वागत करो.
मैं उठा,
खिड़की खोलने की हिम्मत नहीं हुई
तेज़ बूंदे अन्दर आकर
घर को भिगो सकती थीं.
इसलिए बालकॉनी पर आ गया
बारिश के धुंधलके के बीच
कुछ देखने का प्रयास करने लगा
तभी बारिश के शोर को चीरती हुई
बच्चे के रोने की आवाज़ कानों में पड़ी
मैंने ध्यान से दखा
सामने के फूटपाथ  पर
एक औरत बैठी थी
उसकी गोद में एक बच्चा था
चीथड़ों में लिपटा हुआ
औरत खुद को नंगा कर
किसी तरह बचा रही थी अपने लाल को
और बच्चा था कि
हाथ पांव फेंकता हुआ
आँचल से बाहर आ जाता
मानों बारिश का स्वागत कर रहा हो
बूंदों को अपनी नन्हे सीने में समेट लेना चाहता हो
कुछ बूंदे चहरे पर पड़ती
तो बूंदों के आघात और ठण्ड के आभास से
बच्चा थोडा सहम जाता और फिर खेलने लगता
बारिश बीती सर्दी आई
औरत कि मुसीबत कुछ ज्यादा बढ़ गयी थी
वह खुद को ढके या लाल को
कहीं से एक फटा कम्बल मिल गया था शायद
वह साबुत हिस्सा बच्चे को उढ़ा देती
मैंने देखा रात में कई बार
वह फटे कम्बल में ठिठुरती रहती थी
मगर बच्चे के लिए
अपनी छातियों की गरमी कम नहीं करती थी.
सर्दी बीती
औरत की मुसीबत थोड़ी कम हुई
पतझड़ में पत्ते झरने लगे
नन्हे बच्चे पर गिरने  लगे
बच्चा ऊपर से गिरते पीले पत्तों को निहारता
पुलकित होकर पकड़ने की कोशिश करता
कोई पत्ता चहरे  पर आ गिरता
वह चेहरा दांये बांये कर  गिराने की कोशिश करता
गिरते पत्तों को हाथों से पकड़ कर खेलना चाहता
औरत अपने नन्हे  खिलाड़ी को
कौतुक भरे नैनों से निहारती
पेड़ हरे हो  गए
बच्चा भी थोडा बड़ा हो गया था
मगर गरमी असहनीय थी
औरत पेड़ की छाया में एक पालना बना कर
बच्चे के सर पर मैले कपडे की छाया कर
काम पर चली जाती
थोड़ी थोड़ी देर में उसे देख भी जाती
जगा होता तो थपकती, कुछ खिलाती
गर्मियों की रातों में
मैंने बच्चे की रोने की आवाज़ सुनी है
गरमी से बिलखते बच्चे को
टूटे पंखे से हवा करती औरत को देखा है
शायद अपने लाल को सुलाने के लिए
वह रात भर पंखा झलती रहती होगी
क्यूंकि,
कुछ समय बाद बच्चा चुप हो जाता था
सर्दी, गरमी, पतझड़ और बरसात में
मैंने बच्चे के लिए
उस औरत के नए नए रूप देखे हैं
इसलिए मैंने उसे नाम दिया है-
ऋतू माँ.

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

किताब

कुछ लोग
जीवन को किताब समझते हैं,
मैं जीवन को किताब नहीं समझता
क्यूंकि,
किताब दूसरे लोग लिखते हैं,
दूसरे लोग पढ़ते हैं.
फेल या पास होते हैं.
किताब खुद को
खुद नहीं पढ़ती.
मैं खुद को पढ़ता हूँ
कहाँ क्या रह गया
क्या गलत या क्या सही था
समझने की कोशिश करता हूँ.
कोशिश ही नहीं करता
उसे सुधारता भी हूँ
और खुद भी सुधरता हूँ
किताब ऐसा नहीं कर पाती
वह जैसी लिखी गयी है या रखी गयी है,
रहती है.
मैं अपनी कोशिशों से निखर आता हूँ
इसलिए मैं खुद को किताब नहीं पाता हूँ.

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...