मंगलवार, 8 नवंबर 2011

अमर जीवन

अगर जीवन
सिर्फ इतना होता कि
मरने के साथ
खत्म हो जाता
तब वह लोग
अमर क्यूँ हुए होते
जो सदियों से
हमारे बीच नहीं हैं
लेकिन हम उन्हे आज भी
उनकी वर्षगांठ या पुण्य तिथि पर
याद करते हैं.

सोमवार, 7 नवंबर 2011

सपने

मैं कई दिन
सोया नहीं
खुली आँख लिए जागता रहा
होता यह था कि मैं
सोते हुए
सपने बहुत देखता था
फिर यकायक
आँख खुल जाती थी
सपने खील खील हो बिखर जाते थे.
मुझे सपनों का टूटना
बड़ा ख़राब लगता था.
ऐसे ही
कई दिन बीत गए,  
मुझे जगे हुए
कि एक दिन
ख्वाब मेरे सामने आ गया
बोला- तुम सो क्यूँ नहीं रहे ?
मैंने पूछा- तुम कौन हो पूछने वाले
यह मेरा निजी मामला है.
ख्वाब बोला-
यही तो कमी है
तुम ख्वाब देखने वालों की कि
आँख खुलते ही
तुम मुझे भूल जाते हो.
अरे, अगर तुम्हे जागने के बाद
मैं याद रहूँगा
तभी तो तुम मुझे साकार कर पाओगे
भाई, सपने जाग कर भूल जाने के लिए
और टूटने पर रोने के लिए
मत देखा करो.

रविवार, 6 नवंबर 2011

आसमान गिरा

एक दिन आसमान
मेरे सर पर गिर पड़ा
आसमान के बोझ से
मैं दबा
और फिर उबर भी गया.
आसमान हंसा-
देखा,
तुम मेरे बोझ से दब गए
मैंने कहा-
लेकिन गिरे तो तुम !!!

शहर के लोग

तुमने देखा
मेरे शहर में
मकान कैसे कैसे हैं
कुछ बहुत ऊंचे
कुछ बहुत छोटे
और कुछ मंझोले
इनके आस पास, दूर
कुछ गंदी झोपड़ियाँ
पहचान लो इनसे
मेरे शहर के लोग भी
ऐसे ही हैं.

माँ और नदी

माँ कहती थीं-
बेटा, औरत नदी के समान होती है
आदमी उसे कहीं, किसी ओर मोड़ सकता है
इस नहर उस खेत से जोड़ सकता है
वह नहलाती और धुलाती है
अपने साथ सारी गंदगी बहा ले जाती है
मैंने पूछा- माँ,
नदी को क्रोध भी आता है
तब वह बाढ़ लाती है
सारे खेत खलिहान और घर
बहा ले जाती है  !!!
माँ काँप उठीं, बोली-
ना बेटा, ऐसा नहीं कहते
नदी को हमेशा शांत रहना चाहिए
उसे कभी किसी का
नुकसान नहीं करना चाहिए ।
एक दिन,
पिता नयी औरत ले आए
घर के साथ माँ के दिन और रात भी बंट गए
माँ क्रोधित हो उठी
पर वह बाढ़ नहीं बनीं
उन्होने खेत  खलिहान और घर नहीं बहाये
उन्होने आत्महत्या कर ली
चार कंधों पर जाती माँ से मैंने पूछा-
माँ तुम खुद क्यूँ सूख गईं
विनाशकारी  बाढ़ क्यूँ नहीं बनी
कम से कम
विनाश के बाद का निर्माण तो होता.
लेकिन
यह याद नहीं रहा मुझे
कि माँ केवल नदी नहीं
औरत भी थीं.






मंगलवार, 1 नवंबर 2011

अर्जुन

यह शब्द
तब तक हमारे हैं
जब तक यह
मुंह के तरकश से निकल कर
जिव्हा की कमान से छोड़े नहीं जाते
लेकिन यह तब
घातक हो जाते हैं,
जब अनियंत्रित और खतरनाक तरीके से
सामने वाले पर छोड़े जाते हैं
उस समय इनसे घायल हो कर
न जाने कितने भीष्म पितामह
इच्छा मृत्यु की बाट जोहते हैं
लेकिन तब भी
घमंड भरा अर्जुन
अपने  गाँडीव का रक्त पोंछता हुआ
अगले कुरुक्षेत्र की 
तैयार में जुट जाता है.
 

रविवार, 30 अक्टूबर 2011

निराश उम्मीद

पहली तारीख को
वह बहुत खुश खुश ऑफिस जाता है।
क्यूंकि आज तनख्वाह का दिन है
आज उसे अपनी गृहस्थी चलाने
बच्चे को कपड़े दिलाने की
उम्मीद पूरी करने के लिए रुपये मिलेंगे ।
वह तनख्वाह जेब में धरकर बाहर निकलता है
यकायक वह निराश हो उठता है
सामने खड़ा हुआ साहूकार,
उसे देख कर मुस्कुरा रहा है
मगर उसके चेहरे की खुशी
यकायक गायब हो जाती है
क्यूंकि अब साहूकार
उसके बच्चे की
नए कपड़े की उम्मीद छीनने वाला है।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...