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संदेश

अमर जीवन

अगर जीवन सिर्फ इतना होता कि मरने के साथ खत्म हो जाता तब वह लोग अमर क्यूँ हुए होते जो सदियों से हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हम उन्हे आज भी उनकी वर्षगांठ या पुण्य तिथि पर याद करते हैं.

सपने

मैं कई दिन सोया नहीं खुली आँख लिए जागता रहा होता यह था कि मैं सोते हुए सपने बहुत देखता था फिर यकायक आँख खुल जाती थी सपने खील खील हो बिखर जाते थे. मुझे सपनों का टूटना बड़ा ख़राब लगता था. ऐसे ही कई दिन बीत गए,   मुझे जगे हुए कि एक दिन ख्वाब मेरे सामने आ गया बोला- तुम सो क्यूँ नहीं रहे ? मैंने पूछा- तुम कौन हो पूछने वाले यह मेरा निजी मामला है. ख्वाब बोला- यही तो कमी है तुम ख्वाब देखने वालों की कि आँख खुलते ही तुम मुझे भूल जाते हो. अरे, अगर तुम्हे जागने के बाद मैं याद रहूँगा तभी तो तुम मुझे साकार कर पाओगे भाई, सपने जाग कर भूल जाने के लिए और टूटने पर रोने के लिए मत देखा करो.

आसमान गिरा

एक दिन आसमान मेरे सर पर गिर पड़ा आसमान के बोझ से मैं दबा और फिर उबर भी गया. आसमान हंसा- देखा, तुम मेरे बोझ से दब गए मैंने कहा- लेकिन गिरे तो तुम !!!

शहर के लोग

तुमने देखा मेरे शहर में मकान कैसे कैसे हैं कुछ बहुत ऊंचे कुछ बहुत छोटे और कुछ मंझोले इनके आस पास, दूर कुछ गंदी झोपड़ियाँ पहचान लो इनसे मेरे शहर के लोग भी ऐसे ही हैं.

माँ और नदी

माँ कहती थीं- बेटा, औरत नदी के समान होती है आदमी उसे कहीं, किसी ओर मोड़ सकता है इस नहर उस खेत से जोड़ सकता है वह नहलाती और धुलाती है अपने साथ सारी गंदगी बहा ले जाती है मैंने पूछा- माँ, नदी को क्रोध भी आता है तब वह बाढ़ लाती है सारे खेत खलिहान और घर बहा ले जाती है  !!! माँ काँप उठीं, बोली- ना बेटा, ऐसा नहीं कहते नदी को हमेशा शांत रहना चाहिए उसे कभी किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए । एक दिन, पिता नयी औरत ले आए घर के साथ माँ के दिन और रात भी बंट गए माँ क्रोधित हो उठी पर वह बाढ़ नहीं बनीं उन्होने खेत  खलिहान और घर नहीं बहाये उन्होने आत्महत्या कर ली चार कंधों पर जाती माँ से मैंने पूछा- माँ तुम खुद क्यूँ सूख गईं विनाशकारी  बाढ़ क्यूँ नहीं बनी कम से कम विनाश के बाद का निर्माण तो होता. लेकिन यह याद नहीं रहा मुझे कि माँ केवल नदी नहीं औरत भी थीं.

अर्जुन

यह शब्द तब तक हमारे हैं जब तक यह मुंह के तरकश से निकल कर जिव्हा की कमान से छोड़े नहीं जाते लेकिन यह तब घातक हो जाते हैं, जब अनियंत्रित और खतरनाक तरीके से सामने वाले पर छोड़े जाते हैं उस समय इनसे घायल हो कर न जाने कितने भीष्म पितामह इच्छा मृत्यु की बाट जोहते हैं लेकिन तब भी घमंड भरा अर्जुन अपने  गाँडीव का रक्त पोंछता हुआ अगले कुरुक्षेत्र की  तैयार में जुट जाता है.  

निराश उम्मीद

पहली तारीख को वह बहुत खुश खुश ऑफिस जाता है। क्यूंकि आज तनख्वाह का दिन है आज उसे अपनी गृहस्थी चलाने बच्चे को कपड़े दिलाने की उम्मीद पूरी करने के लिए रुपये मिलेंगे । वह तनख्वाह जेब में धरकर बाहर निकलता है यकायक वह निराश हो उठता है सामने खड़ा हुआ साहूकार, उसे देख कर मुस्कुरा रहा है मगर उसके चेहरे की खुशी यकायक गायब हो जाती है क्यूंकि अब साहूकार उसके बच्चे की नए कपड़े की उम्मीद छीनने वाला है।