सोमवार, 26 सितंबर 2011

समानता


                                       समानता
गरीब बच्चे को
अमीर बच्चे की
आधुनिक माँ में
अपनी माँ नज़र आती हैं.
क्यूंकि
उसकी माँ की तरह
अमीर बच्चे की आधुनिक माँ भी
अधनंगी नज़र आती है.

रविवार, 25 सितंबर 2011

बाबा दुल्हन और वह


पतझड़ में
याद आते हैं 
सूखे खड़खडाते पत्तों की तरह
खांसते बाबा .  

मेरी खिड़की से
झांकता सूरज
जैसे
झिझकती शर्माती दुल्हन.

मैंने उन्हें
पहली बार देखा
छत पर खड़े हुए
दूर कुछ देखते हुए
ढलते सूरज की रोशनी में
उनके भूरे बाल
गोरे चेहरे पर
सोना सा बिखेर रहे थे
मैं ललचाई आँखों से
सोना बटोरता रहा
तभी उनकी नज़र
मुझ पर पड़ी
आँखों में शर्म कौंधी
वह ओट में हो गए
इसके साथ ही बिखर गया
सांझ में सोना.


शनिवार, 24 सितंबर 2011

छह बीज


सुना है मेरे पड़ोस में
आंधी बड़ी आई थी.
धुल से अटे पड़े हैं,
मेरे घर के कमरे भी.

         -२-
संध्या
और श्याम का साथ
दोनों अँधेरे में
डूबते हैं साथ.

        -३-
अलसाई हसीना,
सुबह की अंगडाई
दोनों करेंगी तय
गली और फूटपाथ में
दिन भर का सफ़र .

        -४-
मैं
तपते सूरज के नीचे
कंक्रीट के जंगल में
डामर की सड़क के साथ
होता हूँ पसीना पसीना.

         -५-
जब
पीछे चलती परछाई
आगे  आकर
चलने लगती है,
मैं घबराकर
मुड़ कर देखता हूँ
शाम पीछे खडी है.

         -६-
रात की तरह
काली रंगत वाली माँ
पर दोनों ही
थपक कर सुलाती हैं-
ना!  

बुधवार, 21 सितंबर 2011

दोषी चाकू



एक वीराने स्थल पर
एक इंसान का
मृत शरीर पाया गया
उस मृत शरीर को देख कर
पहला प्रश्न यही था-
उसे किसने मारा-
पशु ने या किसी इंसान ने?
मृत शरीर पर
नाखूनों की खरोंच के,
दांतों से चीर फाड़ के कोई निशान नहीं थे
इसलिए यह तय हो गया कि
उसे किसी पशु ने नहीं मारा.
पास में रक्त से भीगा
एक बड़ा चाकू पड़ा हुआ था.
इसलिए
यह तय पाया गया कि
चाकू से
उस इंसान का क़त्ल 
किसी इंसान ने ही किया है.
पर कोई साक्ष्य नहीं था
कि उसे किसने मारा
उस दिन उस क्षेत्र में
दो सम्प्रदायों के बीच
धार्मिक उन्माद पैदा हुआ था
इसलिए वह इंसान 
धर्म युद्ध में मारा गया  माना गया 
मौक़ा ए वारदात पर मौजूद चाकू को
पहला कातिल माना गया.

पिता और माँ

         पिता  
मैंने दर्पण में
अपना चेहरा देखा.
बूढा, क्लांत, शिथिल और निराश.
सहसा
मुझे याद आ गए
अपने पिता.
       माँ
उस भिखारिन ने
कई दिनों से
खाना नहीं खाया था.
दयाद्र हो कर मैंने
उसे दो रोटियां और बासी दाल दे दी.
अभी वह
बासी दाल के साथ रोटी खाती कि
उसके
मैले कुचैले दो बच्चे आ गए.
आते ही वह बोले-
माँ भूख लगी है.
भिखारिन ने
दोनों रोटियां
बच्चों में बाँट दी.
बच्चे रोटी खा रहे थे.
भिखारिन
अपने फटे आँचल से हवा कर रही थी,
उन्हें देखते हुए
उसके चहरे पर ममतामयी मुस्कान थी.
मुझे सहसा याद आ गयी
अपनी माँ.
          


इच्छा

     इच्छा
मनुष्य
जीना क्यूँ चाहता है?
क्या इसलिए
कि वह
मरना नहीं चाहता है?
नहीं
खोना नहीं,
केवल पाना चाहता है.

सोमवार, 19 सितंबर 2011

तुम्हारा पन्ना फिर भी

          तुम्हारा पन्ना
उस दिन मैं
यादों की किताब के
पन्ने पलट रहा था.
उसमे एक पृष्ठ तुम्हारा भी था.
बेहद घिसा हुआ
अक्षर धुंधले पड़ गए थे.
पन्ना लगभग फटने को था.
मगर इससे
तुम यह मत समझना
कि मैंने
तुम्हारे पृष्ठ की उपेक्षा की.
नहीं भाई,
बल्कि मैंने तुम्हे
बार बार
खोला है और पढ़ा है.

      फिर भी
मैंने पाया कि
जीवन के केवल दो सत्य हैं-
जीना और मरना.
मैंने यह भी पाया कि
लोग मरना नहीं चाहते,  
जीना चाहते हैं .
पर जीते हैं मर मर के.

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...