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संदेश

क्या बकवास है?

यह कौन सा शहर हैं यारों, जहाँ के रास्ते उलटे जाते हैं। घरों को लौटते हुए लोग, घरों से दूर चले जाते हैं। मैं सबसे छुपा हुआ था, रुसवाइयों के घेरे में। लोग हंस रहे थे और मैं रो रहा था। एक बार सोचो तुम कहाँ चले जाते हो, लौटने की सोचते नहीं कि फिर लौट जाते हो। चलो हटाओ कि जो हो गया सो हो गया, राख हटती जाती है, मुर्दा नज़र आता है। मैंने उन्हें अलविदा कहा, उन्होंने हाथ हिलाया लौटा तो देखा कि पडोसी चला आ रहा था।

दोस्तों

ज़िन्दगी को इतना प्यार न कीजिये कि छूटने से डर लगे। साँसों को इतना प्यार न कीजिये कि टूटने से डर लगे। जो बना है वह एक दिन बिखरेगा भी, उदासियों को इतना गले न लगिए कि हंसने से भी डर लगे। दोस्तों हम किसी से कहते नहीं, कि हमें कहने से डर लगता है। दोस्तों हम किसी से छुपते नहीं, कि बाहर आने से डर लगता है। अब दोस्तों कुछ ऐसा हो गया है, हम छुपते नहीं और डर नहीं लगता है।

चुभन

दिन की चुभन कुछ ऎसी होती है, कि चाँद की चांदनी भी सताया करती है। हम रात भर करवटे बदलते हैं, कि ख्वाबों की ताबीर सताया करती है। इंसानों ने इस कदर बदला खुद को, मौसम ने बदलना छोड़ दिया है । इंसानों की फितरत है कुछ ऎसी कि फलों ने महकना छोड़ दिया है।

मैं मैंने

गालियों की शराब और मत फेकिये मुझ पर, सब्र का पैमाना मेरा भर गया है। ठहरिये आप क्या देखेंगे मुझे, आपकी ओर पीठ कर ली है मैंने। कहते कहते थक गया, आपने सुना नहीं, अब मैं सो रहा हूँ, मुझसे पूछो न कुछ। कल तुमने मुझे तमाशा बना दिया, आज लोग तुम्हे देख रहे हैं।

सीख

कभी वह दिन थे, जब हम चलते थे, हवाएं पनाह माँगा करती थीं। आज यह दिन है कि एक तिनका भी राह रोके बैठा है। हमने ताजिंदगी जिन्दगी को जीना सिखाया। आज हमें मौत सीख देती है।

भ्रष्टाचार के लडैत

अन्ना हजारे का अनशन समाप्त हो गया। ड्राफ्ट कमिटी बन गयी। ड्राफ्ट के सदस्यों में मतभेद उभर आये। दो सदस्य न्याय पालिका में कथित भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण स्कैन हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के लडैत फिलहाल खुद ही भ्रष्टाचार में फंस गए। यानि कि अब हो चुकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई। जय हो अन्ना बाबा की।

अन्ना आपके आमरण अनशन से नहीं मिटने वाला भ्रष्टाचार

क्या भ्रष्टाचार मिटाना इतना आसान है कि एक आदमी ने आमरण अनशन किया, सैकड़ों लोग उसके इर्दगिर्द खड़े हो गए, टीवी चंनेल्स के कैमरा तन गए, खूब फोटो खिंची, उसके बाद सब हाथ मिलाते हुए अपने अपने घर चले गए? नहीं.... ऐसे भ्रष्टाचार का राक्षस ख़त्म होने वाला नहीं। यह सतत लड़ाई है। यह बरसों चलेगी। ठीक वैसी ही लड़ाई जैसी महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के साथ लड़ी थी। यह लड़ाई उनके एक अनशन के साथ पूरी नहीं हो गयी थी। उन्होंने बरसों इसे लड़ा। पर इससे पहले उन्होंने भारत को जाना, भारत के लोगों को जाना। अन्ना हजारे दिल्ली के बजाय यह लड़ाई मुंबई में या महाराष्ट्र में कहीं लड़ते तो अच्छा होता। यह लड़ाई वह बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट कण्ट्रोल के विरुद्ध लड़ते, जिन्होंने क्रिकेट वर्ल्ड कप जैसे महा आयोजन में भ्रष्टाचार, ब्लैक मार्केटिंग को घुसेड दिया। यह लड़ाई शरद पवार के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी, जिन्होंने अपने अमीर बोर्ड को मंत्री होने के नाते करोडो की टैक्स छूट दिलवा कर गरीब जानता के टैक्स का पैसा चूस लिया। यह लड़ाई मुंबई के उन लोगों के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी जिन्होंने अपने मुफ्त में या कम दामों में मिले टिकेट भारत के फ़ाइनल में प...