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मंगलवार, 29 मार्च 2011
बक़वास
मुझे किसी से डर लगता नहीं जनाब, क्यूंकि डराने वाले जहाँ में बहुत से हैं। मुझे मरने का कोई खौफ नहीं क्यूंकि मारने वाले बहुत से हैं। मैं मिलना चाहता हूँ नए चेहरों से, पर नकली मुखौटे यहाँ बहुत से हैं।
सोमवार, 14 मार्च 2011
रविवार, 26 दिसंबर 2010
सृजन
मैं सृजन करना चाहता हूँ
इसलिए लिखता हूँ।
मैं भजन करना चाहता हूँ
इसलिए पूजा करता हूँ।
कोई चाहे जो समझे
एक नहीं कर पाऊँ तो
काम दूजा करता हूँ।
इसलिए लिखता हूँ।
मैं भजन करना चाहता हूँ
इसलिए पूजा करता हूँ।
कोई चाहे जो समझे
एक नहीं कर पाऊँ तो
काम दूजा करता हूँ।
शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010
पाँव
मंगलवार, 14 दिसंबर 2010
टिप्पणी
यारों
मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ।
मैंने जो कहा गलत कहा,
सो,
आपने जो सुना, गलत सुना
दरअसल,
पिछले ६३ सालों से,
टिप्पणी और वादे करते
और फिर उन्हें
वापस लेने या
पूरा नहीं करने की
आदत सी हो गयी है।
इसलिए,
मैं टिप्पणी करता हूँ
और वापस लेता हूँ।
यारों इसे गंभीरता से न लेना,
मैं नेता हूँ।
मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ।
मैंने जो कहा गलत कहा,
सो,
आपने जो सुना, गलत सुना
दरअसल,
पिछले ६३ सालों से,
टिप्पणी और वादे करते
और फिर उन्हें
वापस लेने या
पूरा नहीं करने की
आदत सी हो गयी है।
इसलिए,
मैं टिप्पणी करता हूँ
और वापस लेता हूँ।
यारों इसे गंभीरता से न लेना,
मैं नेता हूँ।
शनिवार, 27 नवंबर 2010
लकीरें
मेरे माथे पर
चिंता की
गहरी लकीरें हैं।
बचपन में मेरी माँ को
ज्योतिष ने बताया था कि
मेरे माथे की लकीरें बताती हैं कि
मैं बहुत भाग्यशाली हूँ,
बहुत बड़ा आदमी बनूँगा।
इसीलिए मेरी माँ ने मुझे
बहुत लाड दिया और प्यार किया।
मैंने पढाई पर ध्यान नहीं दिया
घूमता फिरता रहा ।
आज मैं अकेला हूँ,
माँ मर चुकी है।
आज मैं बेकार हूँ,
क्यूंकि मैं माथे की लकीरें पढ़ता रहा,
मैंने पोथी नहीं पढी।
इसीलिए मेरे माथे पर चिंता की लकीरें हैं
पर अब मैं उन्हें नहीं पढ़ता
क्योंकि
मैंने कभी
उन्हें ठीक से
पढ़ा ही नहीं।
चिंता की
गहरी लकीरें हैं।
बचपन में मेरी माँ को
ज्योतिष ने बताया था कि
मेरे माथे की लकीरें बताती हैं कि
मैं बहुत भाग्यशाली हूँ,
बहुत बड़ा आदमी बनूँगा।
इसीलिए मेरी माँ ने मुझे
बहुत लाड दिया और प्यार किया।
मैंने पढाई पर ध्यान नहीं दिया
घूमता फिरता रहा ।
आज मैं अकेला हूँ,
माँ मर चुकी है।
आज मैं बेकार हूँ,
क्यूंकि मैं माथे की लकीरें पढ़ता रहा,
मैंने पोथी नहीं पढी।
इसीलिए मेरे माथे पर चिंता की लकीरें हैं
पर अब मैं उन्हें नहीं पढ़ता
क्योंकि
मैंने कभी
उन्हें ठीक से
पढ़ा ही नहीं।
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
मैं क्यों लिखता हूँ
मैं अपने इस ब्लॉग में कुछ भी लिखूंगा। यह कविता भी हो सकती है, कोई गद्य भी या कुछ भी। जो दिमाग को मथे। कुछ समझ में ना आये और जब दिमाग थक जाये तो अक्षरों में बदल दो। दूसरे गुनें और समझे। यदि समझ सकें तो अपनी प्रतिक्रिया दें। इसी लिए यह ब्लॉग।
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