रविवार, 21 जुलाई 2019

मॉं-बाप


जब, मॉं-बाप नहीं रहते

तब समझ पाता है आदमी ।

पिता की जिस लाठी से डरता था,

पिता को बुरा मानता था

आज समझ में आया

कि डराने वाली यही लाठी

सहारा बनती थी

गिरने पर,

लड़खड़ाने पर ।

बीवी के जिस आकर्षण में

मॉं के आँचल से दूर हो गया,

उसी से मॉं

चेहरे पर ठंडी हवा मारती थी,

पसीना पोंछ कर सहलाती थी,

छॉंव में चैन से सोता था ।

आज मॉं-बाप नहीं,

बच्चे है।

और मैं खुद हो गया हूँ-

मॉं-बाप ।

रविवार, 30 जून 2019

गर्मी में बारिश

गर्मी में

हवा के थपड़े

चेहरे पर पड़ते हैं

झन्नाटेदार झापड़ की तरह

तपती धरती पर

बारिश की बूंदे

नथुनों में घुसती हैं

माटी की सुगंध की तरह

चेहरे पर बारिश की बूंदे

लगती है माँ की दुआ की तरह।

निशान

मैं वहाँ जाता हूँ

जहाँ तुम पहली बार मिले थे मैं जानता हूँ

जहाँ तुम मिले थे

वहां होंगे तुम्हारे कदमों के निशान

मैं वहाँ जाता हूँ

यह देखने के लिए कि

तुम होंगे,

कदमों के निशानों के आसपास

अफ़सोस तुम नहीं मिलते

निराश वापस आ जाता हूँ

छोड़ आता हूँ

तुम्हारे निशानों के साथ

अपने कदमों के निशान

इस आस में कि 

शायद कभी वापस आओ

तो जान पाओ कि

मैं वहाँ आया था।

शुक्रवार, 28 जून 2019

आओ करें वादा


आओ करें वादा

फिर साथ न चलने का

कभी न मिलने का

नदी के किनारों की तरह ।

आओ करे वादा

मिल के बिछुड़ने का

अकेले भटकने का

अमावस मे गुम हुए तारों की तरह ।

आओ करे वादा

गुम हो जाने का

याद न आने का

पतझड़ के पीले पातों की तरह ।

आओ करे वादा ।।,

मंगलवार, 25 जून 2019

मेरा सच

वह अकेला था
मेरे साथ
मेरा सच
मैं अकेला ही होता हूँ
सब एक तरफ
मैं
सच के सांथ ! 

शनिवार, 22 जून 2019

श्मशान-कब्रिस्तान


वह जगह है

श्मशान जहॉं,

चार कन्धों और भीड़ के साथ गया आदमी

राख  में मिल जाता है।

वह जगह है

क़ब्रिस्तान जहॉं

जनाज़े पर लेटा शख़्स भी

ज़मीन की गहराई में दफ़्न होता है ।

लेकिन,

वह शै है मौत !

जो आखिरी तक साथ रहती है आदमी के

श्मशान में भी, कब्रिस्तान में भी।

याद

मैं जानता था कि तुम मुझे भूल न पाओगे ,
इसलिये आता हूँ बार बार यादों में तुम्हारी ।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...