बुधवार, 19 जून 2019

स्वार्थ !

पिता मर गए थे
माँ खूब रोई
बहुत दिनों तक
दूर शून्य में देखती बैठी रहती

बाद में पता चला
सोचती रहती थी
मेरे बारे में
कैसे अच्छा लिखा पढ़ा पाऊंगी अपने लल्ला को !

आज माँ मर गई
बीवी 
कुछ ही देर में 
रसोई सम्हालने में लग गई
नन्हे को चुप करने में झल्लाने लगी 

मैं बैठा सोचता रहा देर तक

उस कुर्सी को देखता रहा देर तक

जिस पर बैठा करती थी माँ
सम्हाले रखती थी नन्हे को
आंसू की बूँद न गिरने देती

कैसे होगा अब यह

मर गई  है माँ।


फर्क

मुझमे

और तुम मे

फर्क सोच का है

मैं सोचता हूँ


तुम सोचते तक नहीं।

रोटी और डबलरोटी

गरीब की बेटी
बहुत भूखी थी
रोटी नहीं मिली थी
दो दिनों से। 

सामने के साहब की लड़की
खा रही थी
डबल रोटी
कई दिनों से। 

गरीब की बेटी लालच से देख रही

साहब की लड़की ने फेंक दी
डबल रोटी

लपक ली
उसके बुलडॉग ने !

आजकल


आजकल

आसमान पर

बादल गरजते हैं 

नेताओं की तरह।

सरल

आजकल

जितना कठिन है

सच को सच मानना

उतना ही सरल है

झूठ को सच बना देना।

मरने से पहले

कभी सोचता है आदमी !

मर जाने के बाद -
कहाँ जाएगा ?

कैसी जगह होगी ?

मेरे पास क्या होगा ?

कौन मिलेगा वहाँ ?
कौन होगा अपना,
कौन पराया ?

तब क्यों सोचता है ?
मरने से पहले,

कहाँ ! कैसे !! क्या और कितना !!!

अपना और पराया !

बुधवार, 12 जून 2019

इंतज़ार

बड़ी देर तक
इंतज़ार करते रहे वह
मेरी घड़ी बन्द थी
मैं समय का इंतज़ार करता रहा । 

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...