बुधवार, 12 जून 2019

बदनामी

तुम चाहते तो
परिचय
मॉंग सकते थे मेरा ।
पर तुमने ठीक समझा
 बदनाम करना मुझे । 

काला धन, कन्या धन


पिता ने जमा कर दिया था

काला धन

गरीब के

जन धन में

अमीर की बेटी के लिए

बन गया कन्या धन

शनिवार, 23 मार्च 2019

इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद !


इमरजेंसी ख़त्म होने का ऐलान कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी को उनकी ख़ुफ़िया एजेंसीज ने मशीनी सूचना दी थी कि अगर आज चुनाव हुए तो वह भारी बहुमत से जीतेंगी.
मदांध इंदिरा गाँधी और उनके राष्ट्रवादी बेटे ने आम चुनाव का ऐलान कर दिया. वह यह नहीं भांप पाए कि इमरजेंसी के भय से दुबकी जनता अपने राजनीतिक इरादों का खुला ऐलान इसे कर सकती थी.
उस समय हम लोग, पुराने लखनऊ के याहिया गंज में रहते थे. इंदिरा गाँधी की मामी शीला कौल दूसरी बार सांसद बनने के लिए खडी हुई थी. प्रचार करते हुए भीड़ के साथ वह मोहल्ले की गली से गुजरी. मैं उस समय अपने एक दोस्त की दूकान में बैठा हुआ था. उन्होंने बिलकुल मशीनी ढंग से वोट देने की प्रार्थना की और एक सेकंड खर्च किये बिना आगे बढ़ गई.
मैंने पीछे से तेज़ आवाज़ में पूछा,"आप पांच साल में तो एक बार भी नहीं दिखाई दी थी. आज वोट माँगने आई हैं."
यह सुन कर वह पलटी. बोली क्या कह रहे हो बेटा ! मैंने अपना सवाल दोहरा दिया.
वह बोली, आप जानते हो, सांसद का काम क्या होता है ? वह दिल्ली में कितना व्यस्त होता है?"
मैंने पूछा, "तब आपको वोट देने से क्या फायदा ? आप तो अगली बार भी नहीं आ सकेंगी."
उनके साथ चल रहे एक छुटभैये नेता और उनके चुनाव संचालक ने बात सम्हाली, "बेटा तुम बच्चे हो. बात नहीं समझते."
मैं कुछ कहता कि वह शीला कौल को आगे निकाल ले गए. हमारे घर के नीचे से गुजरे तो माँ और भाई बहन छज्जे से झांक रहे थे. वह छुटभैये नेता शीला कौल से बोले, "यह कांडपाल जी का घर है. इन्ही का बेटा है वह. यह पुराने कांग्रेसी है."
शीला कौल ने माँ को हाथ जोड़ दिए, बिलकुल रोबोट की तरह.
उस चुनाव में शीला कौल क्या जीतती, खुद इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी भी नहीं जीत सके थे. आज के राहुल गाँधी के पप्पा तो उस समय प्लेन उड़ाया करते थे, जिसमे ज़ुबी कोछर उनकी एयर होस्टेस हुआ करती थी. ज़ुबी ने राजीव गाँधी से नज़दीकी का फायदा किस तरह से बजरिये दूरदर्शन उठाया उसकी कहानी प्रणव रॉय की कहानी से कुछ कम नहीं.

कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी दिमाग से पैदल सूंदर महिला हैं ?


एक बार विद्वान के पास एक खूबसूरत महिला पहुंची और उसने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखते हुए कहा, "आप मुझसे शादी कर लीजिये. इस प्रकार से जो बच्चे पैदा होंगे वह आपकी तरह जीनियस और मेरी तरह खूबसूरत होंगे.
विद्वान ने तपाक से जवाब दिया, "मोहतरमा, अगर इसका उलटा हुआ तब !"
शायद, उस समय तक दुनिया में भारत देश की कांग्रेस पार्टी की शोहरत नहीं पहुंची थी. अन्यथा, वह महिला कहती, "मैं कांग्रेस की प्रवक्ता बन जाऊंगी"
मेरी इस बात का ज्वलंत उदाहरण कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी हैं. यकीन कीजिए, जब वह टीवी पर बोलती होती है, तब मैं टीवी का वॉल्यूम बिलकुल धीमा कर देता हूँ. सुनने से क्या फायदा ! ऐसा ही तो बोलती हैं, जैसा कल बोल रही थी. मुलाहिजा फरमाइए-
"प्रधान मंत्री मोदी जी ने पाकिस्तान के स्थापना दिवस पर पाकिस्तान को बधाई दी है. जबकि, दिल्ली में पाकिस्तान दिवस पर मनाये जाने वाले जश्न का वहिष्कार किया है. मोदी जी बताएं, "क्या उन्होंने पाकिस्तान को बधाई दी? अगर दी तो पाकिस्तान दिवस का बहिष्कार क्यों किया ?"
पता नहीं कैसी नेताइन हैं प्रियंका. वह इतना भी नहीं जानती पाकिस्तान का मतलब आतंकवादियों और भारत के दुश्मनों का देश नहीं होता. वह भारत से टूट कर निकली आबादी का देश हैं. पाकिस्तान को बधाई देना, उसकी जनता को बधाई देना है. खुद आपके सैम पित्रोदा ने ही कहा है कि आठ आतंकी खून खराबा करते हैं तो उसके लिए पाकिस्तान कैसे जिम्मेदार (हालाँकि, मैं उनकी इस बात से सहमत नहीं हूँ) !
अब रही बात पाकिस्तानी दूतावास के समारोह के बहिष्कार की बात तो शायद प्रियंका ने दिमाग नहीं लगाया कि इस समारोह का बहिष्कार इस लिए किया गया कि पाकिस्तानी राजदूत ने कश्मीर के अलगावादियों और देश के गद्दारो को भी आमंत्रित किया था. उनके साथ चाय पानी पीना पाकिस्तान की जनता से मिलना नहीं, बल्कि देश द्रोहियों से मिलना होता.
वैसे जाने दीजिये प्रियंका चतुर्वेदी, आप इसे समझना भी नहीं चाहेंगी. आपके दल में तो हफीज सईद को सम्मान देने वाले नेता हैं.

रविवार, 1 जुलाई 2018

आज जन्मदिन : मेरा और जीएसटी का !

१-०७-१९५३ -राजेंद्र प्रसाद कांडपाल का जन्म.
०१-०७-२०१७ - पूरे देश में गुड्स एंड सर्विस टैक्स यानि जीएसटी का जन्म यानि लागू.
एक म्यूच्यूअल फण्ड कंपनी के एसएमएस और फेसबुक से मुझे मालूम हुआ कि आज मेरा सरकारिया तौर पर जन्मदिन है. जोड़ा तो ६५ साल खलास. हे राम ! इतनी उम्र !! कितनों को नसीब होती है. इसलिए मोगाम्बो की तर्ज़ पर कांडपाल खुश हुआ.
बहरहाल, मेरी और जीएसटी की एक ही कहानी है. जन्म हुआ तो पापा कहते थे, बड़ा काम करेगा. बेटा हमारा बड़ा नाम करेगा. बेटे ने नाम किया. आज फेसबुक पर सैकड़ों की संख्या में मित्र है.
मोदी जी ने जब जीएसटी लागू किया तो उन्हें उम्मीद थी कि जीएसटी बड़ा काम करेगा. सरकारी खजाने को लबालब भरेगा. भर भी रहा है. फेसबुक पर भी जीएसटी के मेरी तरह सैकड़ों मित्र है. आलोचना करने वाले कि रोजगार बंद हो गए. कारोबार ठप पड़ गया. दो रुपये का पॉपकॉर्न मॉल में १०० रुपये में खाने वाले कुछ जीएसटी चुकाने पर मोदी जी को जार जार कोसते हैं. कितना टैक्स देना पड़ता है.
दोस्तों, अब मैं थोडा सीरियस हो जाता हूँ.
आपने मुझे बिना मांगे बधाइयाँ दी, दुआएं दी. धन्यवाद् आपका. किसको मिलता है बिना मांगे इतना.
लेकिन, बाज़ार जाइए. दुकानदार आपको बिना मांगे कैश रिसीप्ट नहीं देगा. कहेगा जीएसटी देना पड़ेगा. डरिये नहीं. रसीद ज़रूर मांगिये. जैसे मुझे दुआ दी, वैसे जीएसटी दीजिये रसीद लेकर.
जैसे आपकी दुआएं मेरे काम आयेंगी, वैसे ही जीएसटी देश के काम आयेगी. आप सब को जन्मदिन की शुभकामनाये और जीएसटी देने के लिए आभार.

शनिवार, 17 मार्च 2018

क्या मुख्य सचिव की पेंशन न करें तो सबकी पेंशन हो जायेगी ?

यह वाकया पेंशन निदेशालय का है। 
वहां के एक जॉइंट डायरेक्टर के पास एक पत्रकार महोदय पहुंचे। बोले आपके खिलाफ खबर है। पूछा - क्या खबर है ? बोले- आप आईएएस की पेंशन ज़ल्दी कर देते हो. अभी पिछले दिनों ही मुख्य सचिव की पेंशन आते ही हो गई. 
जेडी बोले- बिलकुल ठीक कहा. ऐसा हुआ हुआ है. बताइए क्या कहना चाहिए था मुख्य सचिव को कि आपके जैसे मुख्य सचिव बहुत आते हैं. लाइन लगिए . तभी होगी? नहीं कह सकते. उनके घर तक पहुंचाए हैं पेंशन पेपर. आप ही बताइये आपका संपादक कहेगा किसी पेंशन के लिए तो हम नहीं करें. कह दें तुम्हारे जैसे संपादक बहुत से आते है. मैं तो दौड़ के कर दूंगा. कहेगा तो उसके ऑफिस भी भेज दूंगा उनका पीपीओ।  
उनका चेहरा देख कर जेडी थोडा रुका. बोला- तुम कहोगे, तो तुम्हारी पेंशन भी अभी हो जायेगी। क्या हर ऐरा गैरा पत्रकार हो सकता है ?
वह चुप। क्या बोले। उनका इंटरव्यू हो सकता था। 
जेडी ने फिर कहा- अच्छा होता, अगर आप यह सवाल ले कर आते कि फला फला की पेंशन इतने महीने या दिनों से नहीं हुई है। मैं आपको बताता। बता भी रहा हूँ। तीन तीन महीने से पेंशन नहीं हुई है। लेकिन, हमारे निर्देशक लगे है इसे १० दिन के अन्दर करने के लिए।  हम कर के दिखायेंगे। 
पत्रकार महोदय चले गए। पता चला कि पेंशन निर्देशालय के कर्मचारियों ने दबाव बनाने के लिए पत्रकार महोदय को भेजा था। 

बुधवार, 31 मई 2017

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ?

कटप्पा ने अपने महिष्मति राज्य के महाराज और अपनी बहन के बेटे अमरेंद्र बाहुबली को क्यों मारा ? पूरे हिंदुस्तान को यह सवाल पूरे दो साल से मथ रहा था।  एस एस राजामौली ने फिल्म के अंत में कटप्पा से बाहुबली को मरवा कर, खुद उसी के मुंह से यह सवाल पुछवा दिया था कि मैंने बाहुबली को क्यों मारा ! यह इकलौता ऐसा सवाल था,  जिसे सभी पूछ रहे थे। इस  सवाल पर सभी भारतीय थे।  न कोई बिहारी था, न कोई बाहरी।  हर मुंह से अलग सवाल नहीं थे। अन्यथा हमारे देश में तीन तलाक़ क्यों ? बाबरी मस्जिद क्यों ढहाई गई ? बुर्के पर सवाल अलग।  बोलने की आज़ादी क्यों नहीं ? हिन्दू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर अलग अलग सवाल होते हैं।  यह सवाल ठेठ सांप्रदायिक होते हैं।  मसलन, किसी सवाल को केवल हिन्दू पूछता है तो किसी दूसरे सवाल को सिर्फ कोई मुसलमान ही या फिर सिर्फ सेक्युलर ही पूछता है। अब यह बात दीगर है कि कोई भी किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहता।  सिर्फ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ही ऐसा इकलौता सवाल था, जो पूर्णतया सेक्युलर प्रकृति का था।  यानि इसे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई और आईएसआईएस सभी पूछ रहे थे।  मज़े की बात यह थी कि सभी अपने अपने तई इसके जवाब भी दे रहे थे।  २८ अप्रैल को, जब बाहुबली का दूसरा हिस्सा प्रदर्शित हुआ, इस सेक्युलर प्रकृति के सवाल का जवाब हर सेक्युलर और कम्युनल को मिल गया।  सभी संतुष्ट भी थे।  हाँ बाहुबली को कटप्पा ने यो मारा ! यहाँ एक ख़ास बात और थी ! ख़ास बात यह कि फिल्म देख कर निकलने वाला हर शख्स सेक्युलर हो कर निकल रहा था। इस प्रकार कि निकलने वाले हर शख्स को मालूम था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? लेकिन बाहर निकल कर सेक्युलर बना इस सवाल का जवाब देने के लिए तैयार नहीं था।  जब भी किसी से पूछा जाता, उसका जवाब एक ही होता- फिल्म देख लो, खुद जान जाओगे। अपने देश में इतनी एकता तो मैंने आजतक महात्मा गांधी तक पर भी नहीं दिखी।  
फिल्म देखने के बाद सभी संतुष्ट थे।  कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? ठीक ही मारा।  वह कंस मामा नहीं था।  भांजे को मारने वाला हर मामा कंस नहीं होता।  शकुनि उदाहरण हैं न ! बेशक अपने सौ भांजो को  मरवा दिया।  लेकिन द्युत क्रीड़ा में तो जितवा दिया।  आमिर खान भी है न ! अपने रद्दी टाइप एक्टर भांजे इमरान खान को पिछले दस सालों से थोपे पड़ा है।  महेश भट्ट भी कहाँ कम हैं।  उन्होंने तो भांजे की चांदी ही चांदी कर दी, मेरा मतलब है चुम्मी ही चुम्मी कर दी है।  एक्टिंग आती नहीं, सीरियल किसर बन कर चालीस  फिल्मों का हीरो बन चुका है।  नई नई हीरोइन तो छोडो, पुरानी हीरोइन भी उसके किस से बच नहीं सकी।  बिपाशा बासु से लेकर विद्या बालन तक सभी को चूम चुका है।  इस लिए पाठकों ! कटप्पा भी हिन्दू होते हुए भी कंस मामा की विरासत से नहीं था।  उसने बाहुबली को जिस कारण से मारा, उससे सभी संतुष्ट थे।  
लेकिन, इस दुनिया में केवल एक शख्स था, जो संतुष्ट नहीं था ! वह शख्स था खुद बाहुबली अमरेंद्र  ! अमरेंद्र बाहुबली  को विश्वास नहीं था कि मामा ने उसे सिर्फ इसलिए मारा।  यह कोई बात हुई कि हिंदुस्तान में सभी सेक्युलर बने कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा के जवाब से संतुष्ट नज़र आ रहे हैं ! कम से कम एक आदमी को तो इस जवाब पर सवाल उठाना चाहिए था। कांग्रेसी बनाने को कौन कर रहा है।  लेकिन, इस जवाब पर तो दिग्गी राजा की तरह व्यवहार करना चाहिए था।  इसलिए बाहुबली असंतुष्ट था।  
बाहुबली स्वर्ग के द्वार पर जा बैठा।  वह इंतज़ार करने लगा कटप्पा के आने का ! कटप्पा ने बाहुबली को मार दिया था, इसलिए स्वभाविक ही बाहुबली स्वर्ग पहुँचने वाला पहला महिष्मति निवासी  था।  चूंकि, कटप्पा को बाद में मरना था इसलिए बाहुबली उसके मर कर स्वर्ग आने का इंतज़ार करने लगा।  
युद्ध में मारे जाने के बाद कटप्पा स्वर्ग पहुंचा।  बाहुबली ने कहा- आओ मामा कटप्पा ! आओ !! 
बाहुबली के बोलने का लहज़ा काफी कुछ शोले वाले गब्बर जैसा था।  सो कटप्पा सहम गया ! 
बोला- भांजे ! उसके बोलने का लहज़ा सीरियल महाभारत के शकुनि गूफी पेंटल के लहजे जैसा था।  वह बाहुबली से लिपट कर रोने लगा।  बाहुबली मामे को रोता देख कर थोड़ा खुश भी था।  अब यह कठोर दिल पिघल कर सब उगल देगा।  बाहुबली कटप्पा की गंजी टांट सहलाने लगा।  
कटप्पा बोला - भांजे अमरेंद्र बाहुबली ! मुझे माफ़ कर देना कि मैंने तुम्हे मार दिया।  एक मामा हो कर मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए थे।  
बाहुबली बोले - मामाआआआ ! हिंदुस्तान में तुम्हारे जैसे बहुत से मामा है।  इसलिए नाहक आंसू मत बहाओ।  बस मेरे एक सवाल का जवाब दो।  
कटप्पा बोला- पूछ भांजे ! 
बाहुबली - कटप्पा तुमने बाहुबली को यानि मुझे क्यों मारा ?
कटप्पा बोला- फिल्म में बताया तो न ! 
बाहुबली गरजा - मामा ! तुमने मुझे मामा समझा है क्या ! मुझे मामा मत बनाना।  मुझे वह जवाब नहीं असली जवाब चाहिए! मैं तुम्हारा भांजा हूँ,  हिंदुस्तानी दर्शक नहीं कि दो साल से जवाब के लिए चुटकुले, कवितायें और सवाल पे सवाल उछलता रहा हूँ और फ़िल्मी जवाब सुन कर खुश हो जाऊं ।  
कटप्पा मुस्कुराया।  ढाल और तलवार जमीन पर रख दी।  कवच कुण्डल, मुकुट उतार कर जमीन पर दे मारे।  फिर अपनी गंजी टांट पर हाथ फेरता हुआ बोला - सुन बेटा, मैंने तुझे क्यों मारा।  पिछले दो सालों से करोड़ों दर्शक इस सवाल का जवाब पूछ रहे थे।  सोशल साइट्स से लेकर सोशल गैदरिंग में यह सवाल पुछा जाता था।  'कटप्पा ने बाहुबली को क्यो मारा' पर जितने चुटकुले पिछले दो साल में बने, उतने चुटकुले पिछले कई सालों से सरदारों पर भी नहीं बने।  अगर बाहुबली द बेगिनिंग के आखिर में यह सवाल न उछाला जाता कि महाराजा अमरेंद्र बाहुबली को कटप्पा ने क्यों मारा तो दो साल तक हिंदुस्तान सिर्फ एक सवाल पर इतना सेंस ऑफ़ हुमूर रखने वाला कैसे बन पाता ! मैंने तुम्हे मारा, तभी तो इसे  जानने के लिए तमाम दर्शक हर दिन ज़्यादा से ज़्यादा बेकरार हो रहे थे।  तभी तो बाहुबली द कन्क्लूजन की बुकिंग खुलने के एक घंटे के अंदर दस लाख टिकट बिक गए।  मैंने तुम्हे इसी लिए मारा भांजे ताकि बाहुबली पहले दिन का...वीकेंड का....और पूरे हफ्ते का रिकॉर्ड तोड़े।  सबसे कम समय में सौ करोड़ और दो सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म बन जाए।  इसी सवाल का जवाब बाहुबली को दो हजार करोड़ का ग्रॉस करने वाला बना रहा है ।  
अमरेंद्र बाहुबली मान गया - मामे ! तुम सचमुच मामा हो ! इतने सारे हिन्दुस्तानियों को मामा बना दिया।  
जय अमरेंद्र बाहुबली ! जय कटप्पा !! जय सवाल- कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा !!!
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राजेंद्र प्रसाद कांडपाल 
फ्लैट नंबर 804 
अशोका अपार्टमेंट्स 
5 Way  लेन, 
जॉपलिंग रोड, 
हज़रतगंज, 
लखनऊ - 226001 
मोबाइल - 09415560099 

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...