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इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद !


इमरजेंसी ख़त्म होने का ऐलान कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी को उनकी ख़ुफ़िया एजेंसीज ने मशीनी सूचना दी थी कि अगर आज चुनाव हुए तो वह भारी बहुमत से जीतेंगी.
मदांध इंदिरा गाँधी और उनके राष्ट्रवादी बेटे ने आम चुनाव का ऐलान कर दिया. वह यह नहीं भांप पाए कि इमरजेंसी के भय से दुबकी जनता अपने राजनीतिक इरादों का खुला ऐलान इसे कर सकती थी.
उस समय हम लोग, पुराने लखनऊ के याहिया गंज में रहते थे. इंदिरा गाँधी की मामी शीला कौल दूसरी बार सांसद बनने के लिए खडी हुई थी. प्रचार करते हुए भीड़ के साथ वह मोहल्ले की गली से गुजरी. मैं उस समय अपने एक दोस्त की दूकान में बैठा हुआ था. उन्होंने बिलकुल मशीनी ढंग से वोट देने की प्रार्थना की और एक सेकंड खर्च किये बिना आगे बढ़ गई.
मैंने पीछे से तेज़ आवाज़ में पूछा,"आप पांच साल में तो एक बार भी नहीं दिखाई दी थी. आज वोट माँगने आई हैं."
यह सुन कर वह पलटी. बोली क्या कह रहे हो बेटा ! मैंने अपना सवाल दोहरा दिया.
वह बोली, आप जानते हो, सांसद का काम क्या होता है ? वह दिल्ली में कितना व्यस्त होता है?"
मैंने पूछा, "तब आपको वोट देने से क्या फायदा ? आप तो अगली बार भी नहीं आ सकेंगी."
उनके साथ चल रहे एक छुटभैये नेता और उनके चुनाव संचालक ने बात सम्हाली, "बेटा तुम बच्चे हो. बात नहीं समझते."
मैं कुछ कहता कि वह शीला कौल को आगे निकाल ले गए. हमारे घर के नीचे से गुजरे तो माँ और भाई बहन छज्जे से झांक रहे थे. वह छुटभैये नेता शीला कौल से बोले, "यह कांडपाल जी का घर है. इन्ही का बेटा है वह. यह पुराने कांग्रेसी है."
शीला कौल ने माँ को हाथ जोड़ दिए, बिलकुल रोबोट की तरह.
उस चुनाव में शीला कौल क्या जीतती, खुद इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी भी नहीं जीत सके थे. आज के राहुल गाँधी के पप्पा तो उस समय प्लेन उड़ाया करते थे, जिसमे ज़ुबी कोछर उनकी एयर होस्टेस हुआ करती थी. ज़ुबी ने राजीव गाँधी से नज़दीकी का फायदा किस तरह से बजरिये दूरदर्शन उठाया उसकी कहानी प्रणव रॉय की कहानी से कुछ कम नहीं.

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