शनिवार, 25 अगस्त 2012

मुर्दे

मुझे पसंद हैं
मुर्दे !
जो
सोचते नहीं
मुंह खोलते नहीं
वह सांस रोके
निर्जीव आँखों से  देखते हैं
ज़िंदा आदमी का फरेब
जो देखता है,
सब कुछ समझता है
इसके बावजूद
जब
मुंह खोलता है
तब
न जाने कितने
ज़िंदा
मुर्दा हो जाते हैं।
शायद इसीलिए
देखते नहीं
मुंह खोलते नहीं
मुर्दे।

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

जो

जो
जो
टाला न जा सके
वह घोटाला ।
जो
उगला न जा सके
वह निवाला।
जो
समझा न जा सके
वह गड़बड़झाला।
जो
सब भूल जाए
वह हिन्द वाला ।
(2)
बाज़ार मे कसाई
जो काट कर बेचे
उसे
नरम गोश्त कहते हैं।
फिल्मों में हीरोइन
जो कपड़ा फाड़ कर बेचे
उसे
गरम गोश्त कहते हैं।
      फर्क
मेरे सामने तुम मुसकुराते नज़र आओ ऐ दोस्त,
मेरे सामने होने का फर्क नज़र आना ही चाहिए।
     (1)
भूखा आदमी
तेज़ भूख लगने पर
अपनी व्यथा
दोनों हाथों से पेट सहला कर
व्यक्त करता है ।
लेकिन
जब भोजन आता है तो
उसे खाता एक ही हाथ से है।
 
तुमने मुझे
बेकार कागज़ की तरह
फेंक दिया था ज़मीन पर।
गर पलट कर देखते
तो पाते कि मैं
बड़ी देर तक हवा के साथ
उड़ता रहा था
तुम्हारे पीछे।
  (2)
मेरे आँगन में शाम बाद होती है
पहले उनके घर अंधेरा उतरता है।
(3)
देखो मैं रास्ते में पड़ा रुपया उठा लाया हूँ।
पर वहाँ एक बच्चा अभी भी पड़ा होगा।
(4)
मेरे आसमान पर चाँद है तारे हैं, पंछी नहीं।
सुना है ज़मीन पर आदमी भी भूखा है।
(5)
दोस्त तुम मुझ पर हँसते हो तो मुझे खुशी होती है
कि चलो कुछ मनहूसों को हँसाया तो मैंने।
 
 

रविवार, 19 अगस्त 2012

शरीर

ईश्वर ने इंसान को
दो हाथ और दो पाँव
दो छिद्रों वाली एक नाक के ठीक ऊपर दो आँखें
बत्तीस दांत
और उनके बीच लचीली जीभ
इसलिए नहीं दी कि
अपने पैरों तले
मानवता को रौंद दे
हाथों से रक्तपात और अशुभ करे ।
बुरा सूंघने और देखने के लिए नहीं हैं
दो आंखे और एक नाक
दूसरों को काटने के लिए नहीं हैं दाँत 
क्योंकि
बोलने की आज़ादी की रक्षा के लिए हैं दाँत
मानवता को बचाने के लिए हैं हाथ
अन्यायी के खिलाफ मजबूती से खड़ा होने के लिए हैं पैर
नाक के दो छेद और आँखें
अच्छा और बुरा समझने बूझने
और देखने के लिए हैं ।
मगर ऐसा क्यों नहीं हो पाता ?
क्योंकि,
हमारे हृदय में नहीं बहता
इंसानियत का खून
नियंत्रण में नहीं होता मस्तिष्क
बल्कि,
नियंत्रित करते हैं दूसरे
जो इंसानियत जैसा नहीं सोंचते ।



सोमवार, 13 अगस्त 2012

मुकद्दर

मैंने मुकद्दर से कहा-
मेरी मुकद्दर में जो है
लिख दो मेरी मुकद्दर में ।
मुकद्दर ने
लिख दिया
मुकद्दर को कोसना
मेरी मुकद्दर में ।
 

रविवार, 12 अगस्त 2012

तिरंगा

स्वतंत्रता दिवस पर,
उससे पहले हर साल
गणतंत्र दिवस पर
तिरंगा फहराया जाता है।
तिरंगा,
खुद में फूल लपेटे
रस्सी से बंधा
नेता के द्वारा
नीचे से ऊपर को खींचा जाता है।
जब चोटी पर पहुँच जाता है तिरंगा
लंबे डंडे से जकड़ दिया जाता है तिरंगा
तब नेता
एक जोरदार झटका देता है
तिरंगा
नेता पर फूल बरसाते हुए
हर्षित मन से
प्रफुल्लित तन से
लहराने लगता है
मानो अभिवादन कर रहा हो
नेता का।
क्या यह स्वतंत्रता है
यह गणतंत्र है
जिसमे
रस्सी से जकड़ा तिरंगा
नेता के द्वारा
स्वतंत्र किए जाने पर
फूल बरसाता है,
प्रफुल्लित लहराता है
और बेचारा जन गण
मन ही मन तरसता हुआ
राष्ट्रगान गाता है।


सोमवार, 30 जुलाई 2012

होरी

होरी को रचते समय
प्रेमचंद ने
होरी से कहा था-
मैं ग़रीबी का
ऐसा महाकाव्य रच रहा हूँ
जिसे पढ़ कर
लाखों करोड़ों लोग
डिग्री पा जाएंगे, डॉक्टर बन जाएंगे
प्रकाशक पूंजी बटोर लेंगे
साम्यवादी मुझे अपनी बिरादरी का बताएंगे
किसी गरीब फटेहाल को
कर्ज़ से बिंधे नंगे को
लोग होरी कहेंगे ।
इसके बाद
तू अजर हो जाएगा
किसी गाँव क्या
शहर कस्बे में
गरीबों की बस्ती में ही नहीं
सरकारी ऑफिसों में भी
तू पाया जाएगा,
साहूकारों से घिरे हुए
पास के पैसों को छोड़ देने की गुहार करते हुए
और पैसे छिन जाने के बाद सिसकते हुए।
निश्चित जानिए
उस समय भी
होरी रो रहा होगा
तभी तो प्रेमचंद को
उसका दर्द इतना छू पाया
कि वह अमर हो गया।

रविवार, 22 जुलाई 2012

रात्री

रात के घने अंधेरे में
पशु पक्षी तक सहम जाते हैं
चुपके से दुबक कर सो जाते हैं
अगर किसी आहट से कोई पक्षी
अपने पंख फड़फड़ाता है
तो मन सिहर उठता है
वातावरण की नीरवता
मृत्यु की शांति का एहसास कराती है
क्यूँ कि, जीवन तो
सहम गया हो जैसे
दुबक कर सो गया हो जैसे ।
ऐसे भयावने वातावरण में
झींगुरों की आवाज़े ही
सन्नाटे का सीना चीरती हैं
यह जीवन का द्योतक है
कि कल सवेरा हो जाएगा
जीवन एक बार फिर
चहल पहल करने लगेगा।
फिलहाल तो हमे
सन्नाटे को घायल करना है
जुगनुओं की रोशनी में
भटके हुए मनुष्य को
उसके गंतव्य तक पहुंचाना है।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...