गुरुवार, 8 मार्च 2012

खुशियां

मैं खड़ा रहा
लोग आते गए
रंग लगाते गए.
जो लगा जाते
दूर खड़े हो कर
मेरा चेहरा देख कर हंसते-
देखो, कैसा बन्दर बना दिया है.
मैं उनकी इस खुशी पर
दूना खुश हो रहा था.
मैं उन्हें
कैसे बताता कि
मेरे चेहरे पर लगे रंग
वह खुशियाँ हैं,
जो दोनों हाथ
लुटाई गयी हैं.

मंगलवार, 6 मार्च 2012

साली होली

मैंने
पत्नी से कहा-
आओ खेलते हैं होली!
वह इठलाते हुए बोली-
मैं तो आपकी
तीस साल पहले ही
हो ली !!!
2-
लोग
पता नहीं क्यूँ
साली के साथ
खेलते हैं होली?
क्यूँ नहीं खेलते
पत्नी के साथ होली
जो पूरे साल बिखेरती हैं
आँगन में
रंगोली!!!
3-
मैं पत्नी को
कहता हूँ साली।
वह पलट के देती है
मुझे यह गाली-
धत्त, बड़े वो हो जी!!!
4-
क्यूँ होती है साली
आधी घरवाली
क्यूंकि
घर तो पूरा
करती है
घरवाली।
5-
साली जीजा को
जी 'जा'  कह कर भगाती है।
और अपने उनको
ऐ जी कह कर बुलाती है।

रविवार, 4 मार्च 2012

मन

मेरे मन आँगन में
महकती हैं भावनाएं
खिलते हैं आशाओं के फूल
और
पुलकित हो उठता है शरीर
जैसे कोई नन्ही बच्ची
दौड़ती फिरती है घर आँगन में
किलकारी भरती है माँ के लिए
और
बाहें फैला कर
कूद पड़ती है पिता की गोद में.

यथार्थ
मुझे
यथार्थ बोध हुआ
जब मैंने उसे बालदार कठोर देखा
छुआ तो वह सचमुच कठोर था
और जब तोडा
तो वह मीठा नारियल साबित हुआ.

भय
कभी आप सोचो कि
क्या अतीत इतना भयावना होता है
कि आप उसकी ओर
इतने सदमे में पीठ करते हो कि
वर्तमान भी अतीत बन जाता है.

मुक्ति
मैं तब
खरगोश जैसा दुबक  जाता हूँ.
कबूतर जैसा सहम जाता हूँ
जब मेरे सामने आ जाती है
विपत्तियों की बिल्ली.
जबकि
मेरे सामने ही
भय का चूहा
खरगोश की तरह कुलांचे भर कर
स्वतंत्र होना चाहता है
कबूतर की तरह उड़ जाना चाहता है.
मैं हूँ कि उसे
मन की चूहेदानी में पकड़ कर
बिल्ली से
छुटकारा पाना चाहता हूँ.
यह नहीं सोचता कि
क्या क़ैद हो कर कोई
मुक्ति पा सकता है
बाहर बैठी भय की बिल्ली से.




मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

सुख

जानते हो
दुःख की लम्बाई कितनी होती?
तुम्हारे जितनी
तुम्हारे दिल दिमाग में सिमटी हुई
लेकिन सुख
उसे नापना मुश्किल है
वह तुमसे
तुम्हारे परिवार तक
घर बाहर तक
बहुत दूर दूर तक पहुँच जाता है
तुम अपना सुख उछालो
फिर देखो
कितनी दूर दूर तक
फ़ैल जाता है तुम्हारा सुख
तुम नाप नहीं सकते.

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

गौरैया

एक एक कर बच्चे चले गए थे
अपने अपने काम पर
अपनी अपनी गृहस्थी में रमने
तब मैं अकेला रह गया था.
नितांत अकेला छोड़ कर
पत्नी पहले ही चली गयी थी
शायद वह मुझसे पहले इस यातना को
सहना नहीं चाहती थी.
सूना घर काटने को दौड़ता
मुझे याद आता-
बचपन में मैंने
चिड़िया का एक घोसला तोड़ दिया था.
अंडे निकाल कर जमीन पर पटक दिए थे.
माँ ने बहुत डांटा था-
बेटा यह क्या कर दिया
किसी का घर उजाड़ दिया
चिड़िया अब अकेली रह गयी
उस दिन मुझे चिड़िया की चहचाहट
दुःख भरी लगी
इधर उधर देख रही थी
मानो अपने अंडे खोज रही थी.
चिड़िया के बच्चे नहीं हो पाए थे
मेरे तो बच्चों के बच्चे हो गए
उनके पैदा होने की खबरें आती ज़रूर थीं
लेकिन बुलावा नहीं आया था
पत्र केवल सूचनार्थ प्रेषित थे मुझे
अचानक बाहर चहचाहट हुई
एक चिड़िया इधर उधर कुछ ढूढ़ रही थी
मुझे लगा दाना ढूंढ रही थी
मैंने चावल के कुछ टूटे दाने
दूर दीवाल पर रख दिए
साथ में छोटे बर्तन में पानी भी
चिड़िया पहले सशंकित हुई
संदेह भरी नज़रों से मेरी ओर गर्दन घुमाई
मुझे याद आ गया
बचपन में घोसला तोड़ना
दुबक गया परदे के पीछे.
चिड़िया आश्वस्त हुई
चावल के कुछ दाने चुगे, पानी पिया
फिर कुछ दाने मुंह में भर कर उड़ गयी.
मैं उत्साहित हुआ
दूसरे दिन के लिए भी
कुछ अनाज और पानी रख दिया
दूसरे दिन फिर चिड़िया आयी
उसके बाद बार बार आती रही
एक दिन उसके साथ दूसरी चिड़िया भी थी
यह सिलसिला बढ़ता चला गया
मैं अनाज और पानी की मात्रा बढ़ाता चला गया.
आज मेरे घर में
सुबह से शाम तक पंछियों की चहचाहट बिखरी रहती है
मेरी नींद उनके कलरव से ही खुलती है.
आज मेरे घर मेरे बच्चे और उनके बच्चे नहीं आते
लेकिन चिड़िया
अब अपने बच्चों और उनके बच्चों के साथ आती है.

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

बादशाह

लालकिले की प्राचीर से
एक प्रधानमंत्री
तिरंगा फहराता है और भाषण देता है
लाखों लाख लोग
देखते सुनते हैं टीवी के जरिये
और कुछ हजार कुछ सौ मीटर दूर
नीचे बैठे हुए .
उसके और जनता के बीच
दूरियों की  ही नहीं
बुलेट प्रूफ की बाधा भी होती है
वह जनता का स्पर्श क्या
पसीने की गंध तक महसूस नहीं कर पाता
इसीलिए
विद्युत् तरंगो से होता हुआ उसका सन्देश
जन मानस को मथ नहीं पाता
लेकिन
इसमें प्रधानमंत्री की क्या गलती
गलती पैंसठ साल पहले हुई थी
जब स्वतंत्रता का ध्वज
उस लालकिले की प्राचीर से फहराया गया था
जिसे एक बादशाह ने
हजारों मजदूरों का पसीना सोख कर बनवाया था.
इसके बनाने वाले मजदूर
किसी झोपड़ी में आधे अधूरे सो रहे थे
और बादशाह आराम से था अपने महल में
जनता और बादशाह के बीच की यह दूरी ही तो
आज भी बनी हुई है.

द्रौपदी

महाभारत में पढ़ा था
दुश्शासन ने खींची थी
द्रौपदी की चीर
लाज बचने के लिए चीखती रही थी द्रौपदी
मूक बैठे रहे थे पितामह और पांडव
ध्रतराष्ट्र तो वैसे ही अंधे थे
गांधारी ने नेत्रों पर कपड़ा बाँध लिया था.
तब कृष्ण ने किया था चमत्कार
बढ़ती चली गयी थी द्रौपदी की चीर
नींची होती गयी थी कौरव पांडवों की निगाहें
दुश्शासन थक कर चूर हो गया था.
मगर आज के भारत में
न जाने कितनी द्रौपदियों की चीर खींची जाती है
अब कृष्ण चमत्कार नहीं करते
द्रौपदी की लाज बचाने को .
आजकल वह
अपने सुदर्शन चक्र की जंग उतार रहे हैं।
आधुनिक द्रौपदी की
छः गज से भी कम की फटी साड़ी
पल में ज़मीन पर बिखर जाती है
पार्श्व में शीला की जवानी गीत बजता रहता है
कौरवों के साथ पांडव भी
कनखियों से देखते आनंदित होते हैं
कोई खुल के कुछ नहीं बोलता
क्यूंकि हम्माम में सभी नंगे हैं
इसीलिए दुश्शासन भी कभी थकता नहीं
आज के महान भारत का.

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...