सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मन

मेरे मन आँगन में
महकती हैं भावनाएं
खिलते हैं आशाओं के फूल
और
पुलकित हो उठता है शरीर
जैसे कोई नन्ही बच्ची
दौड़ती फिरती है घर आँगन में
किलकारी भरती है माँ के लिए
और
बाहें फैला कर
कूद पड़ती है पिता की गोद में.

यथार्थ
मुझे
यथार्थ बोध हुआ
जब मैंने उसे बालदार कठोर देखा
छुआ तो वह सचमुच कठोर था
और जब तोडा
तो वह मीठा नारियल साबित हुआ.

भय
कभी आप सोचो कि
क्या अतीत इतना भयावना होता है
कि आप उसकी ओर
इतने सदमे में पीठ करते हो कि
वर्तमान भी अतीत बन जाता है.

मुक्ति
मैं तब
खरगोश जैसा दुबक  जाता हूँ.
कबूतर जैसा सहम जाता हूँ
जब मेरे सामने आ जाती है
विपत्तियों की बिल्ली.
जबकि
मेरे सामने ही
भय का चूहा
खरगोश की तरह कुलांचे भर कर
स्वतंत्र होना चाहता है
कबूतर की तरह उड़ जाना चाहता है.
मैं हूँ कि उसे
मन की चूहेदानी में पकड़ कर
बिल्ली से
छुटकारा पाना चाहता हूँ.
यह नहीं सोचता कि
क्या क़ैद हो कर कोई
मुक्ति पा सकता है
बाहर बैठी भय की बिल्ली से.




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तनाव

जब तनाव अधिक होता है न  तब गाता हूँ  रोता नहीं  पड़ोसी बोलते हैं-  गा रहा है  मस्ती में है  तनाव उनको होता है  मुझे तनाव नहीं होता। 

अंततः अश्व: तीन हाइकु

अश्व की शक्ति  मनुष्य का मस्तिष्क  घर मे बंधा।  2  अश्व की गति  मनुष्य से स्पर्द्धा मे   कोसों दूर है । 3  अश्व की निष्ठा  मानव का विश्वास  अश्व विजयी। 

कर्ज़ से छुटकारा

19 जून 2023। यह वह दिन है, जिस दिन मैं एक कर्ज से उबर गया। यह वह कर्ज था, जो मुझ पर जबरन लादा गया था। इस कर्ज को न मैंने माँगा, न कभी स्वीकार किया। फिर भी यह कर्ज 40 साल तक मुझ पर लदा रहा। इसकी वजह से मैं अपमानित किया गया। मुझे नकारा बताया गया। यह केवल इसलिए किया गया ताकि मेरे परिवार पर एहसान लादा जा सके। मेरी पत्नी को 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिख कर दिया गया कि मकान तुम्हारे पति के नाम कर दिया गया है। यह काग़ज़ के टुकड़े से अधिक नहीं था। पर कानूनी दांव पेंच नावाकिफ पत्नी समझती रही कि मकान हमे दे दिया गया। वह बहुत खुश और इत्मीनान से थी। उसने, यदि मुझे काग़ज़ का टुकड़ा दिखा दिया गया होता तो मैं उसे हकीकत बता देता। पर उसे किसी को दिखाना नहीं, ऐसे समझाया गया, जैसे गुप्त दान कर दिया गया हो। सगे रिश्तों का यह छल असहनीय था। इसे नहीं किया जाना चाहिए था। एक मासूम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था।  पर अच्छा है कि यह कर्ज 40 साल बाद ही सही, उतर गया। अब मैं आत्मनिर्भर हो कर, सुख से मर सकता हूँ। पर दुःख है कि भाई- बहन का सगा रिश्ता तार तार हो गया। अफ़सोस, यह नहीं ...