शनिवार, 19 नवंबर 2011

उस्ताद

मैं अक्षरों को
तर्क के अखाड़े में उतार देता हूँ
अक्षर लड़ते रहते हैं
एक दूसरे को
जकड़ते और छोड़ते ,
शब्द बनाते और उनसे
वाक्यों के जाल बुनते
मैं इन  तर्कों को उछाल देता हूँ
लोगों के बीच।
लोग मेरे बनाए तर्क जाल में उलझते,
निकलने के फेर में और ज़्यादा उलझते हैं
मैं बस दूर से देखता रहता हूँ
तर्क के  पहलवानों से लड़ते पिद्दियों को
सुनता हूँ
संतुष्ट लोगों को मुंह से
अपने लिए जय जयकार
मैं खुश होता हूँ
अपने शागिर्दों की विजय पर
मैं  तर्क के अखाड़े का उस्ताद जो हूँ ।

बुधवार, 16 नवंबर 2011

छेद

एक बार मैंने
आसमान में छेद कर दिया
मैंने आसमान से
कुछ गिरने के अंदेशे से
सावधानीवश
अपने सर पर हाथ रख लिया
मगर कुछ न हुआ,
ना आसमान गिरा, न कुछ और.
इससे मैं उत्साहित हुआ
आसमान में छेद करने में सफल होने के उत्साह में
मैंने अपने घर की छत में
छेद कर दिया
थोड़ी देर बाद,
बदल घिर आये
जम कर बरसे
छत पर मेरे बनाये छेद से
बारिश का पानी
धार बन कर
मेरे सर को चोट पहुंचा रहा था.

शनिवार, 12 नवंबर 2011

आदमी घड़ी नहीं

आदमी समय के साथ नहीं बदलते
समय के साथ
मौसम बदलते हैं,
महीने हफ्ते बीतते हैं,
दिन और रात होती हैं
घड़ी की सुइयां सरकते हुए स्थान बदलती है।
मगर आदमी !
ऐसा नहीं करता
वह समय से अनुभव लेता है
इस अनुभव से सीख कर
खुद को मौसम के अनुकूल ढालता है
हफ्ते महीने बीतने के बाद
हर साल जन्मदिन की खुशियां मनाता है
दिन में अपने काम करता है
रात में घर को समय देता है आराम करता है
वह घड़ी की सुई नहीं है
क्यूंकि घड़ी की सुइयां
समय नहीं बताती
बेटरी के इशारे पर चलती है।
आदमी किसी के इशारों का ग़ुलाम नहीं है भाई।

गुरुवार, 10 नवंबर 2011

पाँच बातें

 (1)
छोटे पैर वालों पर
हँसना कैसा !
तीन लोक नापने वाले वामन
ऐसे ही होते हैं।
(2)
हम राम नहीं हो सकते
क्यूंकि,
शबरी ने राम को
जूठा कर वह बेर खिलाये
जो सचमुच मीठे थे।
राम ने इसमे भक्ति देखी
हमने शबरी की
जाति देखी।
(3)
इंसान और फल का फर्क
पेड़ से फल गिरता है
लोग उठा कर खा जाते हैं
लेकिन जब इंसान गिरता है
तो उसे कोई उठाता तक नहीं,
सभी हँसते है।
क्यूंकि,
जहां गिरा फल मीठा होता है
वहीं गिरा इंसान विषैला होता है।

(4)
नन्ही चींटी का रेंगना
सबक है
वह रेंग रेंग कर भी
भोजन मुंह मे दबा कर
घर ही जाती है।

(5)
जीवन कितना है ?
एक सौ साल या हजार साल
अगर सांस लेते रहो
हर सांस के साथ सौ साल तक
अगर कुछ करते रहो
तो हजारों हज़ार साल भी।

(6)
'जाने दो'
'हटाओ'
'फिर देखेंगे'
'हम ही हैं क्या'
दोस्त टालने के लिए
ज़्यादा शब्द ज़रूरी नहीं।

ढाबे के गुलाब

ये वह फूल नहीं हैं
जो चाचा नेहरु की
जैकेट के बटन होल से
टंगा नज़र आता है.
कहाँ
चाचा के दिल से सटा सुर्ख गुलाब
कहाँ
पसीने और गंदगी से बदबूदार
पीले चेहरे और खुरदुरे हाथों वाले
ढाबे पर बर्तन मांजते बच्चे !
उनके चारों ओर
रक्षा करने वाले गुलाब के कांटे नहीं
उन्हें बींध देने वाले
नागफनी काँटों की भरमार है.
ऐसे बच्चे
चाचा के गुलाब कैसे हो सकते हैं?
फिर,
क्या कभी किसी ने देखे हैं
चाचा की नेहरु जैकेट पर सजा
मुरझाया गुलाब?

मंगलवार, 8 नवंबर 2011

अमर जीवन

अगर जीवन
सिर्फ इतना होता कि
मरने के साथ
खत्म हो जाता
तब वह लोग
अमर क्यूँ हुए होते
जो सदियों से
हमारे बीच नहीं हैं
लेकिन हम उन्हे आज भी
उनकी वर्षगांठ या पुण्य तिथि पर
याद करते हैं.

सोमवार, 7 नवंबर 2011

सपने

मैं कई दिन
सोया नहीं
खुली आँख लिए जागता रहा
होता यह था कि मैं
सोते हुए
सपने बहुत देखता था
फिर यकायक
आँख खुल जाती थी
सपने खील खील हो बिखर जाते थे.
मुझे सपनों का टूटना
बड़ा ख़राब लगता था.
ऐसे ही
कई दिन बीत गए,  
मुझे जगे हुए
कि एक दिन
ख्वाब मेरे सामने आ गया
बोला- तुम सो क्यूँ नहीं रहे ?
मैंने पूछा- तुम कौन हो पूछने वाले
यह मेरा निजी मामला है.
ख्वाब बोला-
यही तो कमी है
तुम ख्वाब देखने वालों की कि
आँख खुलते ही
तुम मुझे भूल जाते हो.
अरे, अगर तुम्हे जागने के बाद
मैं याद रहूँगा
तभी तो तुम मुझे साकार कर पाओगे
भाई, सपने जाग कर भूल जाने के लिए
और टूटने पर रोने के लिए
मत देखा करो.

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...