मैं अक्षरों को
तर्क के अखाड़े में उतार देता हूँ
अक्षर लड़ते रहते हैं
एक दूसरे को
जकड़ते और छोड़ते ,
शब्द बनाते और उनसे
वाक्यों के जाल बुनते
मैं इन तर्कों को उछाल देता हूँ
लोगों के बीच।
लोग मेरे बनाए तर्क जाल में उलझते,
निकलने के फेर में और ज़्यादा उलझते हैं
मैं बस दूर से देखता रहता हूँ
तर्क के पहलवानों से लड़ते पिद्दियों को
सुनता हूँ
संतुष्ट लोगों को मुंह से
अपने लिए जय जयकार
मैं खुश होता हूँ
अपने शागिर्दों की विजय पर
मैं तर्क के अखाड़े का उस्ताद जो हूँ ।
तर्क के अखाड़े में उतार देता हूँ
अक्षर लड़ते रहते हैं
एक दूसरे को
जकड़ते और छोड़ते ,
शब्द बनाते और उनसे
वाक्यों के जाल बुनते
मैं इन तर्कों को उछाल देता हूँ
लोगों के बीच।
लोग मेरे बनाए तर्क जाल में उलझते,
निकलने के फेर में और ज़्यादा उलझते हैं
मैं बस दूर से देखता रहता हूँ
तर्क के पहलवानों से लड़ते पिद्दियों को
सुनता हूँ
संतुष्ट लोगों को मुंह से
अपने लिए जय जयकार
मैं खुश होता हूँ
अपने शागिर्दों की विजय पर
मैं तर्क के अखाड़े का उस्ताद जो हूँ ।