सड़क अगर सोचती
कि, मैं
रोजाना ही
हजारों-लाखों राहगीरों को
इधर से उधर
उधर से इधर
लाती ले जाती हूँ।
अव्वल तो थक जाती
आदमी के बोझ से
दब जाती
या फिर
राहगीर चुनती
मैं इसे नहीं, उसे ले जाऊँगी
मगर सड़क
ऐसा नहीं सोचती
इसीलिए उसे
रोजाना रौंदने वाले
प्राणी
बेजान सड़क कहते हैं।
कि, मैं
रोजाना ही
हजारों-लाखों राहगीरों को
इधर से उधर
उधर से इधर
लाती ले जाती हूँ।
अव्वल तो थक जाती
आदमी के बोझ से
दब जाती
या फिर
राहगीर चुनती
मैं इसे नहीं, उसे ले जाऊँगी
मगर सड़क
ऐसा नहीं सोचती
इसीलिए उसे
रोजाना रौंदने वाले
प्राणी
बेजान सड़क कहते हैं।
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