सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

पहाड़ दरकता है

पहाड़ के ऊपर
आसमान
पहाड़
तना हुआ
आसमान
झुका हुआ
तभी तो
जब बादल बरसता है
पहाड़ दरकता है .

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

करुणा

बूँद
आसमान से गिरी
या आँख से !
दोनों में संभव है
करुणा
तपती धरती के लिए
भूखे बच्चे के रोने पर
अंतर है
सामर्थ्य का। 
आसमान से गिरी बूँद
बारिश बन कर
धरती तृप्त कर सकती है
पर आँखों से गिरी बूँद
भूख नहीं मिटा सकती।  

मैं चला

जब
रास्ते तुम्हे
अज़नबी लगें
समझ लो
राह भटक गए हो।
२.
जश्न मनाने में
मैं भूल गया
कि,
आतिशबाजियां
जला सकती हैं
किसी का घर . 

३. 
मैं चलना चाहता था
निर्बाध/ चला भी
राह के काँटों ने मुझे रोक लिया
मैं रुका/थोड़ा झुका
कांटे बटोरे
एक किनारे कर दिए
फिर मैं
आगे बढ़ लिया
अब पीछे आने वालों के भी
रास्ता साफ़ था . 

रविवार, 19 अक्टूबर 2014

पांच दीपक और चाँद उदास

१-
आस्था का दीपक
जलेगा
आवश्यकता क्या है
तीली सुलगाने  की
भावनाओं की
२-
माँ जब
दीपक जला चुकी
तब
कुलदीपक के नैनों के
दीप जल उठे
अब फुलझड़ी जलेगी.
३-
पूजा की शीघ्रता
विघ्नहर्ता गणेश को नहीं
लक्ष्मी माता को भी नहीं
मूषक राज को
चढ़ावा कुतरेंगे।
४-
संग संग जलते
इठलाते बतियाते
दीपक
मानों कह रहे हों-
अब ठण्ड पड़ने लगी.
५-
नन्हा
कहीं खो गया क्या !
सबने खोज
इधर उधर
नन्हा मिला
दीपक के पास
पूछ रहा था-
अकेले उदास तो नहीं।  
चाँद उदास
चाँद
उदास था
क्रमशः क्षय को रहा था
शरीर
तारों ने पूछा-
उदास क्यों !
बोला-
मैं देख नहीं पाऊंगा
पृथ्वी पर टिमटिमाते
नन्हे नन्हे दीपों के
अंधकार भगाने के
कौशल को, 
अंधकार के भयभीत चेहरे को
जो प्रतीक्षा करता है
मेरे क्षय की
ताकि,
फैला सके
पूरी दुनिया में
अपना साम्राज्य। 
तब तारों ने कहा-
हाँ, हम सौभाग्यशाली है
देखते हैं
नन्हे दीपों का
अन्धकार से सफल युद्ध
परन्तु, इसे
तुम देख सकते हो
हमारी विजयी झिलमिलाहट में।

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2014

करवा चौथ

बेटा 
तब तक नहीं समझ सका
कि  माँ  क्यों
करवा चौथ में
पूरा दिन व्रत रहती है
चाँद का इंतज़ार करती है
और पिता है कि
आते ही ऑफिस से
खाना खा लेते हैं
जब तक कि
वह करवा चौथ के दिन
ऑफिस से आया
और पत्नी से
खाना परोसवा कर खा  गया।  

सोमवार, 6 अक्टूबर 2014

थकान

कभी तेज़ भागो
इतना तेज़, कि
सब पीछे रह जाएँ
साथी पीछे छूट जाएँ
तब देखना
कैसे थक जाते हो
पीड़ा से भरे पैर
उठने से
इंकार कर देते हैं
तब तुम
पीछे रह जाते हो
अपने साथियों से भी पीछे
ऎसी होती है
भागने से पैदा थकान !

वह आदमी

लोगों की भीड़ के बीच
किसी से छोटा
किसी से लम्बा
किसी से मोटा
किसी से दुबला
एक आदमी
सड़क पर तेज़ भागती
रंग-बिरंगी
छोटी छोटी, बड़ी बड़ी
गाड़ियों से सहमा हुआ
एक आदमी
ऊंची, बहुत ऊंची और कम ऊंची
इमरताओं को
अचरज से देखता हुआ
एक आदमी
खुली आँखों में भी
पाले हुए है
लम्बे कद के 
लोगों के बराबर
होना चाहता है
इनमे से किसी भागती गाडी में
बैठना चाहता है 
सबसे ऊंची इमारत की
सबसे ऊंची मंज़िल में
रहना चाहता है
आदमी। 
एक दिन,
गायब हो जाता है
वह आदमी
कहाँ गया होगा ?
निराश हो कर
गाँव लौट गया होगा,
किसी भागती गाडी के नीचे आकर
पिस  गया होगा, 
या सबसे ऊंची इमारत की
सबसे ऊंची मंज़िल पर
रहने लगा होगा
आदमी !!!
लेकिन,
किसी भी दशा में
सड़क पर
पैदल चलता
नज़र नहीं आएगा
वह आदमी.

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

गांधी …न राम

कल गांधी जयंती थी
क्या देश स्वच्छ हुआ !
आज विजयादशमी है
आज रावण जलेगा
क्या देश राम-मय हो जायेगा !
नहीं,
न देश स्वच्छ हुआ 
न आज के बाद राम-मय होगा
क्योंकि,
हम गांधी नहीं
तो हम में राम कैसे होगा .
इसीलिए 
देश को गन्दा होना चाहिए
हम में रावण को ज़िंदा होना चाहिए .