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मई, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

प्रधानमंत्री जी

कल जब प्रधानमंत्री अपना सामान पैक कर रहे होंगे तब उनके साथ प्रतिभा ताई की तरह ट्रकों सामान का बोझ नहीं होगा. निश्चय ही बहुत थोड़ा सामान होगा पर बहुत बड़ा बोझ होगा उस अपमान और असम्मान का जो इस पद पर रहते हुए मिला पर इससे भी ज़्यादा भारी होगा दस साल लम्बी चुप्पियों का बोझ. 

ठंडा चूल्हा पेट की आग

मेरे घर चूल्हा खूब आग उगलता है भदेली गर्म  कर देता है भदेली की खिचडी खदबदाने लगती है इसके साथ ही खदबदाने लगते हैं मुन्नू की आँखों में, सौंधी खिचड़ी के सपने।  थोड़ी देर में मुन्नू के पेट की आग बुझा देती है खिचड़ी फिर बुझा दिया जाता है चुल्हा पर गरीब के घर कभी बुझाया जाता नहीं कभी न जलने वाला चूल्हा कभी नहीं खदबदाती भदेली में खिचड़ी  पर चुन्नू की आँखों में खदबदाते हैँ खिचड़ी के सपने क्यूंकि, पेट की आग नहीं बुझा पाता ठंडा पड़ा चूल्हा ।  

बाढ़ बन जाती है नदी

किनारे कभी नदी को नहीं रोकते अबाध बहने  देते हैं।  किनारे मदमस्त होने से रोकते हैं नदी को सीमा लांघने के प्रयासों को हौले से असफल करे देते  है निस्संदेह, कभी नदी किनारों का नियंत्रण नहीं मानती किनारे बह जाते हैं बिखर जाता है सब कुछ इसके बावजूद नदी को फिर किनारों की शरण में आना पड़ता है नदी सीखती है सबक कि अनियंत्रित हो कर  अपनी पहचान खो बैठती है, बाढ़ बन जाती है नदी।