बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

सत्यकाम

आकाश से
अवतार नहीं लेता
सत्य
जीवन में
अनियंत्रित अश्व की तरह
होता है
सत्य
निरंतर
परिश्रम, साधना और संयम से
साधन पड़ता है
सत्य
तब
नियंत्रण में आता है
सत्य
और
मनुष्य बन जाता है
सत्यकाम। 

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

तभी

मन
उल्टा न सोच
हो जायेगा 
नम !
२-
जान
निकल जाती है
तभी हम
कहते हैं-
न जा !
३-
रोते हैं
नयन
ख़ुशी में भी
और दुःख में भी
क्योंकि,
किसी भी दशा में
वह है
नयन !
४-
हम
लाख कहें
झुक ना
हमें कभी
पड़ता है
झुकना।


झुकना

कभी
चढ़ाई पर  चढ़ते हुए
ख्याल  किया है !
आगे झुक जाते है लोग
पार कर ले जाते हैं
पूरी चढ़ाई
बिना ऊंचाई नापे हुए
क्या ही अच्छा हो 
अगर
समतल रास्तों पर भी
ऐसे ही चलो
आराम से ।   

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

प्यार

माँ/ हमेशा कहती
बेटा ! मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ
मैं कंधे उचका देता/ध्यान न देता
एक दिन माँ ने कहा-
बेटा, गला सूना लगता है
पतली सोने की चेन ला दे
माँ विधवा थी
मैंने कह दिया- क्या करोगी पहन कर !
माँ कुछ नहीं बोली
गले में हाथ फेर कर चुप बैठ गयी
अगले दिन
माँ ने फिर कहा-
मैं तुझे प्यार करती हूँ.
मैंने फिर कंधे उचका दिए
कौन नहीं करता अपने बच्चे से प्यार
मैंने बहुत दिनों बाद जाना
कि माँ  मुझे सचमुच बहुत प्यार करती थी
पत्नी ने एक दिन कहा-
इस बर्थडे पर
मुझे सोने का मंगलसूत्र बनवा दो
पत्नी के पास मंगलसूत्र पहले ही थे
फिर भी मैंने उसे आश्वस्त किया
पर हुआ ऐसा कि
तंगी के कारण मैं
मंगलसूत्र नहीं बना सका
पत्नी नाराज़ हो गयी
कई दिन नहीं बोली
बात बात पर उलाहने देती रही
मैंने किसी प्रकार
फण्ड से पैसे उधार ले कर
पत्नी को
मंगलसूत्र ला दिया
पत्नी बेहद खुश हुई
मुझसे लिपट कर बोली
मैं तुम्हे बहुत प्यार करती हूँ
पत्नी के गले में
मंगलसूत्र जगमगा रहा था
मुझे
माँ का सूना गला
याद आ रहा था.

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

साथ मेरे

अँधेरे में
साथ छोड़  जाता था
साया भी मेरा
चलता था
लड़खड़ाता मैं
अँधेरे में
फिर मैंने
थामा साथ
एक दीपक का
आज
साया न सही

हज़ारों चलते हैं
साथ मेरे।  

जान जाते

मुझसे
दुश्मनी कर देखते
जान जाते
कि दूसरा कोई
मुझसे अच्छा
दोस्त नहीं।


मैं भी !

बचपन में
जब घुटनों से उठ कर
लड़खड़ाते कदमों से
चलना शुरू किया था
सीढ़ी पर
तेज़ चढ़ गए पिता की तरह
मैं भी चढ़ना चाहता था
पिता को
सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर
मैं
हाथ फेंकता हुआ कहता-
मैं भी !
पिता हंसते हुए आते
मुझे बाँहों में उठा कर
तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते
मैं
पुलकित हो उठता
खुद के
इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर
अब मैं
अकेला ही चढ़ जाता हूँ
सीढ़ियां
पर  खुश नहीं हो पाता उतना
क्योंकि,
पिता नहीं हैं
मैं खड़ा हूँ अकेला
बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से -
मैं भी !  

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

दिल्ली

दिल्ली
कभी  न बदली
आज भी कहाँ बदली
दिल्ली
आज भी यहाँ 
पांडवों का इंद्रप्रस्थ है
मुगलों का
शाहजहांबाद है
अंग्रेज़ों की जमायी नयी दिल्ली

आज 
देश की राजधानी है
दो सरकार हैं, आप हैं
प्राचीन में जीती हैं
आज भी दिल्ली
तभी तो
गजनवी के योद्धा
आक्रमण करते रहते है
 (नॉर्थ ईस्ट  के छात्रों पर )
और दुस्शासन
खींचते रहते हैं
चीर द्रोपदी की

इज्जत लूटती है
आज भी दिल्ली .

( निदो तानियम की  हत्या  पर )

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...