रविवार, 20 नवंबर 2011

इंतज़ार

मैंने देखा है
प्रतीक्षा करती आँखों को
जो बार बार
दरवाजे से जा चिपकती थीं।
यह मेरी माँ की आंखे थी
जो पिता जी की
प्रतीक्षा किया करती थीं।
वह हमेशा देर से आते
माँ बिना खाये पिये
उनका इंतज़ार करती
हम लोगों को खिला देतीं
खुद पिता के खाने के बाद खातीं।
पिता आते, खाना खाते
फिर 'थक गया हूँ' कह कर
अपने कमरे में जा सो जाते।
माँ से यह भी न पूछते कि
तुमने खाया या नहीं
यह तक न कहते कि
अब तुम खा लो।
मुझे माँ की यह हालत देख कर
पिता पर
और ज़्यादा माँ पर
क्रोध आता कि वह खा क्यूँ नहीं लेतीं।
क्यूँ प्रतीक्षा करती हैं
उस निष्ठुर आदमी की
जो यह तक नहीं कहता
कि तुम खा लो।
आज कई साल गुज़र गए हैं
माँ नहीं हैं
फिर भी दो जोड़ी आंखे
दरवाजे से चिपकी रहती हैं
अपने पति के इंतज़ार में मेरी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...