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संदेश

कारण

बेशक शिकायत वाजिब है कोई नहीं सुनता किसी की क्या तुमने कुछ सुनाने की कोशिश की सिर्फ शिकायत करना कोशिश नहीं । ### रात के सन्नाटे में उसकी चींख उभरी और खामोश हो गई अब झींगुर बोलने लगे थे। ### कोई कितनी भी कोशिश करे किसी को समझाने की बेकार है कोशिश क्योंकि , समझने के लिए समझ भी ज़रूरी है। ### पहले हँसा फिर रोया फिर शून्य में झांकने लगा दुःख व्यक्त करने के लिए ज़रूरी है यह। ### बेशक कोई कुछ न करे आदत है किसी की लेकिन जब कोई कुछ करता है सवाल न करे यह आदत ठीक नहीं। ### मैं समझता रहा कि  सन्नाटा  पसरा हुआ है  सकपका गया मैं मैं क्यों हूँ सन्नाटे में !

एक सपना

एक रात वह मेरे ख़्वाब में आया उसने मेरे बाल सहलाये मैंने आँखे खोली वह मन्द मन्द मुस्कुराया मैंने आँखें बन्द कर ली बड़ा प्यारा सपना था कैसे जाने दूँ एक पल में आँखों से !

इधर उधर, उधर इधर

बिल्ली आई ,  चूहे भागे , इधर उधर , उधर इधर पानी बरसा , बूंदे बिखरी इधर उधर , उधर इधर। आंधी आई , पत्ते फैले  इधर उधर , उधर इधर। कुत्ता भौंका , पब्लिक भागी इधर उधर , उधर इधर।

ग़ज़ल

मैंने कब भूलना चाहा था तुमको,  तुम थे कि मुझे कभी याद न आये। ...   चाहता था हमेशा  दोस्ती  करना तुमसे , तुम दुश्मनी की रस्म निभा के चले गए।

मॉं-बाप

जब , मॉं-बाप नहीं रहते तब समझ पाता है आदमी । पिता की जिस लाठी से डरता था , पिता को बुरा मानता था आज समझ में आया कि डराने वाली यही लाठी सहारा बनती थी गिरने पर , लड़खड़ाने पर । बीवी के जिस आकर्षण में मॉं के आँचल से दूर हो गया , उसी से मॉं चेहरे पर ठंडी हवा मारती थी , पसीना पोंछ कर सहलाती थी , छॉंव में चैन से सोता था । आज मॉं-बाप नहीं , बच्चे है। और मैं खुद हो गया हूँ- मॉं-बाप ।

गर्मी में बारिश

गर्मी में हवा के थपड़े चेहरे पर पड़ते हैं झन्नाटेदार झापड़ की तरह तपती धरती पर बारिश की बूंदे नथुनों में घुसती हैं माटी की सुगंध की तरह चेहरे पर बारिश की बूंदे लगती है माँ की दुआ की तरह।

निशान

मैं वहाँ जाता हूँ जहाँ तुम पहली बार मिले थे मैं जानता हूँ जहाँ तुम मिले थे वहां होंगे तुम्हारे कदमों के निशान मैं वहाँ जाता हूँ यह देखने के लिए कि तुम होंगे , कदमों के निशानों के आसपास अफ़सोस तुम नहीं मिलते निराश वापस आ जाता हूँ छोड़ आता हूँ तुम्हारे निशानों के साथ अपने कदमों के निशान इस आस में कि  शायद कभी वापस आओ तो जान पाओ कि मैं वहाँ आया था।