रविवार, 11 अगस्त 2019

कारण

बेशक शिकायत वाजिब है
कोई नहीं सुनता किसी की
क्या तुमने कुछ सुनाने की कोशिश की
सिर्फ शिकायत करना कोशिश नहीं ।

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रात के सन्नाटे में
उसकी चींख उभरी
और खामोश हो गई
अब झींगुर बोलने लगे थे।

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कोई कितनी भी कोशिश करे
किसी को समझाने की
बेकार है कोशिश
क्योंकि, समझने के लिए समझ भी ज़रूरी है।

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पहले हँसा
फिर रोया
फिर शून्य में झांकने लगा
दुःख व्यक्त करने के लिए ज़रूरी है यह।

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बेशक
कोई कुछ न करे
आदत है किसी की
लेकिन जब कोई कुछ करता है
सवाल न करे
यह आदत ठीक नहीं।


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मैं समझता रहा
कि सन्नाटा पसरा हुआ है 
सकपका गया मैं

मैं क्यों हूँ सन्नाटे में !


एक सपना


एक रात

वह मेरे ख़्वाब में आया

उसने

मेरे बाल सहलाये

मैंने आँखे खोली

वह मन्द मन्द मुस्कुराया

मैंने आँखें बन्द कर ली

बड़ा प्यारा सपना था

कैसे जाने दूँ

एक पल में आँखों से !

बुधवार, 31 जुलाई 2019

इधर उधर, उधर इधर

बिल्ली आईचूहे भागे,
इधर उधर, उधर इधर
पानी बरसा, बूंदे बिखरी
इधर उधर, उधर इधर।
आंधी आई, पत्ते फैले 
इधर उधर, उधर इधर।
कुत्ता भौंका, पब्लिक भागी
इधर उधर, उधर इधर।

गुरुवार, 25 जुलाई 2019

ग़ज़ल

मैंने कब भूलना चाहा था तुमको, 

तुम थे कि मुझे कभी याद न आये।

... 

चाहता था हमेशा  दोस्ती  करना तुमसे,


तुम दुश्मनी की रस्म निभा के चले गए।







रविवार, 21 जुलाई 2019

मॉं-बाप


जब, मॉं-बाप नहीं रहते

तब समझ पाता है आदमी ।

पिता की जिस लाठी से डरता था,

पिता को बुरा मानता था

आज समझ में आया

कि डराने वाली यही लाठी

सहारा बनती थी

गिरने पर,

लड़खड़ाने पर ।

बीवी के जिस आकर्षण में

मॉं के आँचल से दूर हो गया,

उसी से मॉं

चेहरे पर ठंडी हवा मारती थी,

पसीना पोंछ कर सहलाती थी,

छॉंव में चैन से सोता था ।

आज मॉं-बाप नहीं,

बच्चे है।

और मैं खुद हो गया हूँ-

मॉं-बाप ।

रविवार, 30 जून 2019

गर्मी में बारिश

गर्मी में

हवा के थपड़े

चेहरे पर पड़ते हैं

झन्नाटेदार झापड़ की तरह

तपती धरती पर

बारिश की बूंदे

नथुनों में घुसती हैं

माटी की सुगंध की तरह

चेहरे पर बारिश की बूंदे

लगती है माँ की दुआ की तरह।

निशान

मैं वहाँ जाता हूँ

जहाँ तुम पहली बार मिले थे मैं जानता हूँ

जहाँ तुम मिले थे

वहां होंगे तुम्हारे कदमों के निशान

मैं वहाँ जाता हूँ

यह देखने के लिए कि

तुम होंगे,

कदमों के निशानों के आसपास

अफ़सोस तुम नहीं मिलते

निराश वापस आ जाता हूँ

छोड़ आता हूँ

तुम्हारे निशानों के साथ

अपने कदमों के निशान

इस आस में कि 

शायद कभी वापस आओ

तो जान पाओ कि

मैं वहाँ आया था।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...