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संदेश

होली हाइकु

होली के रंग साजन संग गोरी लाल गुलाल। 2- होरिया मन कस्तुरी गंध फैली होली आयी रे। 3- पूर्ण चंद्रमा होली जलाते लोग कल होली है। 4- उनींदा सूर्य सिर चढ़ी भंग है होली है भाई। 5- रंगीन पानी बूढ़ा भया जवान होली मनाएँ।

अंधे की सुंदरी

एक अंधा लड़का आ खड़ा होता रोज ही अपने घर की खिड़की पर महसूस करना चाहता अपनी नाक, कान और त्वचा से प्रकृति को पक्षियों का चहचहाना सुनना ठंडी हवा के झोंकों के साथ सुगंध- दुर्गंध का अनुभव करना चाहता एक दिन, उसके घर की खिड़की के ठीक सामने की खिड़की खुली एक खूबसूरत स्त्री आ खड़ी हुई युवक को स्वर्गिक सुगंध की अनुभूति हुई वह भरता रहा फेफड़ों में  वह स्वार्गिक सुगंध रोज चलता रहा यह सिलसिला एक दिन लड़की की दृष्टि एकटक निहारते लड़के पर पड़ी लड़के की बेशर्मी पर लड़की को थोड़ा क्रोध आया उसने खिड़की बंद कर ली फटाक से लड़का अविचलित रहा खिड़की बंद होने की आवाज़ कहाँ सुनाई दी थी उसे दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ और उसके बाद के दिनों में भी एक दिन लड़की को मालूम हुआ कि लड़का अंधा था अब वह थोड़ा आश्वस्त हो गयी अंधे के सामने वह कुछ हरकतें भी कर सकती थी मसलन बाल सुखाना, कंघी करना, सामने की ओर देख मुस्कराना कभी शरारत से हाथ हिला देना भी। लड़की सोचती अभागा है यह अंधा सामने खड़े अप्रतिम सौन्दर्य को देख नहीं सकता, प्यार नहीं कर सकता मेरी मुस्कराहट का प्रत्युत्तर नहीं दे...

द्रौपदी

आज भी द्रोपदी को कामुक निगाहें घूरती हैं लोग उसको नंगा होते देखना चाहते है। पर अब दुस्साशासन  द्रौपदी की चीर नहीं खींचता इसका यह मतलब नहीं कि, दुस्साशन सुधर गया है बल्कि, अब द्रौपदी साड़ी नहीं, मिनी पहनती है।  

मेघ

काले, घुमड़ते और गरजते मेघ की तरह तुम किसी बच्चे को सहमा सकते हो, डरा भी सकते हो लेकिन, अगर वह विचलित नहीं हुआ तुम्हारी गर्जना से बारिश की आशा से प्रफुल्लित हुआ तो तुम्हें बरसाना ही होगा।

विडंबना

मैं देना चाहता हूँ उन लोगों को जन्मदिन की बधाइयाँ जो अपना जन्मदिन नहीं मना पाते जिन्हे कोई हॅप्पी बर्थड़े नहीं कहता लेकिन क्या करूँ उनके माता पिता तक को याद नहीं कि कब और कैसे पैदा हो गए वह। 2- अगर दरख्त फूल फल न देते तो भी आज की तरह कटते। 3 उन्हे खूबसूरत कह कर मुसीबत मोल ले ली मैंने, अब वह आईने की तरह इस्तेमाल करते हैं मुझे।

समय और समझ

समय और समझ सगे भाई बहन हैं समय बड़ा समझ उसकी छोटी बहन समय की उंगली पकड़ समझ बड़ी होती है समय के साथ मिले अनुभव से समझ परिपक्व होती है समय की हथेली में समझ निवास करती है समय हमेशा समझ की रक्षा करता है तभी तो समय सदा बलवान होता है।

खुश रहो

देना चाहता हूँ शुभकामनायें उन लोगों को, जो, माना नहीं पाते अपना जन्मदिन काट नहीं पाते केक, बाँट नहीं पाते उपहार,  मिठाइयां  और ढेर सारी खुशियां। मगर कैसे दूँ उन्हे खुद याद नहीं अपने जन्म की तारीख वह तो पैदा हो गए थे ऐसे ही पिता मजूरी करके आते माँ बर्तन माँजती, झाड़ू पोछा करती दोनों थके होते सोना चाहते पिता की इच्छा कुलांचे मारती वह माँ को अपनी ओर खींचते माँ कसमसाती पर विरोध नहीं कर पाती समर्पण कर देती खुद को पति को । फिर दोनों सो जाते भूल जाते कोई जीव बन सकता है इस कारण इसीलिए जब यह बच्चे पैदा होते हैं/तो उनके माता पिता तक भूल जाते हैं उनके जन्म की तारीख। इसलिए/देना चाहता हूँ कहना चाहता हूँ- जब पैदा हो ही गए हो तो खुश रहो।