सोमवार, 13 अगस्त 2012

मुकद्दर

मैंने मुकद्दर से कहा-
मेरी मुकद्दर में जो है
लिख दो मेरी मुकद्दर में ।
मुकद्दर ने
लिख दिया
मुकद्दर को कोसना
मेरी मुकद्दर में ।
 

रविवार, 12 अगस्त 2012

तिरंगा

स्वतंत्रता दिवस पर,
उससे पहले हर साल
गणतंत्र दिवस पर
तिरंगा फहराया जाता है।
तिरंगा,
खुद में फूल लपेटे
रस्सी से बंधा
नेता के द्वारा
नीचे से ऊपर को खींचा जाता है।
जब चोटी पर पहुँच जाता है तिरंगा
लंबे डंडे से जकड़ दिया जाता है तिरंगा
तब नेता
एक जोरदार झटका देता है
तिरंगा
नेता पर फूल बरसाते हुए
हर्षित मन से
प्रफुल्लित तन से
लहराने लगता है
मानो अभिवादन कर रहा हो
नेता का।
क्या यह स्वतंत्रता है
यह गणतंत्र है
जिसमे
रस्सी से जकड़ा तिरंगा
नेता के द्वारा
स्वतंत्र किए जाने पर
फूल बरसाता है,
प्रफुल्लित लहराता है
और बेचारा जन गण
मन ही मन तरसता हुआ
राष्ट्रगान गाता है।


सोमवार, 30 जुलाई 2012

होरी

होरी को रचते समय
प्रेमचंद ने
होरी से कहा था-
मैं ग़रीबी का
ऐसा महाकाव्य रच रहा हूँ
जिसे पढ़ कर
लाखों करोड़ों लोग
डिग्री पा जाएंगे, डॉक्टर बन जाएंगे
प्रकाशक पूंजी बटोर लेंगे
साम्यवादी मुझे अपनी बिरादरी का बताएंगे
किसी गरीब फटेहाल को
कर्ज़ से बिंधे नंगे को
लोग होरी कहेंगे ।
इसके बाद
तू अजर हो जाएगा
किसी गाँव क्या
शहर कस्बे में
गरीबों की बस्ती में ही नहीं
सरकारी ऑफिसों में भी
तू पाया जाएगा,
साहूकारों से घिरे हुए
पास के पैसों को छोड़ देने की गुहार करते हुए
और पैसे छिन जाने के बाद सिसकते हुए।
निश्चित जानिए
उस समय भी
होरी रो रहा होगा
तभी तो प्रेमचंद को
उसका दर्द इतना छू पाया
कि वह अमर हो गया।

रविवार, 22 जुलाई 2012

रात्री

रात के घने अंधेरे में
पशु पक्षी तक सहम जाते हैं
चुपके से दुबक कर सो जाते हैं
अगर किसी आहट से कोई पक्षी
अपने पंख फड़फड़ाता है
तो मन सिहर उठता है
वातावरण की नीरवता
मृत्यु की शांति का एहसास कराती है
क्यूँ कि, जीवन तो
सहम गया हो जैसे
दुबक कर सो गया हो जैसे ।
ऐसे भयावने वातावरण में
झींगुरों की आवाज़े ही
सन्नाटे का सीना चीरती हैं
यह जीवन का द्योतक है
कि कल सवेरा हो जाएगा
जीवन एक बार फिर
चहल पहल करने लगेगा।
फिलहाल तो हमे
सन्नाटे को घायल करना है
जुगनुओं की रोशनी में
भटके हुए मनुष्य को
उसके गंतव्य तक पहुंचाना है।

मंगलवार, 17 जुलाई 2012

राजा हरिश्चंद्र

अगर आज
राजा हरिश्चंद्र होते
सच की झोली लिए
गली गली भटकते रहते
कि कोई परीक्षा ले उनके सच की
लेकिन
यकीन जानिए
उन्हे कोई नहीं मिलता
परीक्षा लेने वाला
जो मिलते
वह सारे
श्मशान के डोम होते
जो उनकी झोली छीन लेते
उनके ज़मीर की
चिता लगवाने से पहले ।

बेकार

तुमने मुझे
बेकार कागज़ की तरह
फेंक दिया था ज़मीन पर।
गर पलट कर देखते
तो पाते कि मैं
बड़ी देर तक हवा के साथ
उड़ता रहा था
तुम्हारे पीछे।
 
कभी हवाओं से पूछो कि क्यूँ देती है आवाज़ पीछे से
बताएगी कि कहीं कुछ रह तो नहीं गया तेरा पीछे।

रविवार, 15 जुलाई 2012

न्याय

ग़रीब  की झोपड़ी में
इतने और ऐसे छेद !
कि उनसे
झाँकने में झिझकती हैं सूरज की किरणें
चाँदनी भी असफल रहती है अपनी चमक फैलाने में
झोपड़ी के अंदर
गर्मी को कम करने अंदर नहीं आ पाती
ठंडी बयार ।
ऐसा क्यूँ होता है
सिर्फ ग़रीब की झोपड़ी के साथ कि
बारिश का पानी चू चू कर
ताल बना देता है टूटी चारपाई के नीचे
सर्द हवाएँ तीर की तरह चुभती हैं
आंधी तूफान में सबसे पहले
झोपड़ी ही ढहती है।
क्यों नहीं करती पृकृति भी
गरीब की झोपड़ी के साथ
न्याय ?

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...