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संदेश

गरीब

अरे गरीब आदमी ! दूर ऊंचाई से आती संगीत की धुनों को सुनो यह उन अमीर लोगों के घरों से आ रही हैं जो तुम्हें अपने नीचे देख कर भी शर्म खाते हैं मजबूरन ही सही, फिर भी तुम्हें रहने देते हैं तुम एक बदनुमा दाग हो उनकी ऐश्वर्यशाली इमारत के लिए तुम्हारे भूखे  बच्चों का रूदन उन्हे ऊंची आवाज़ में संगीत बजाने को विवश करता है । इसके बावजूद, वह कुछ बासी टुकड़े नीचे फेंक देते हैं ताकि तुम और तुम्हारे बच्चे उठा कर खा लें भूखे न रहे और बिलख कर उनका संगीत बेसुरा न करे। तुम इस संगीत को सुनो फेंके भोजन को चखो यह कर्णप्रिय संगीत महादेव की देन है जिनकी तुम सपरिवार एक दिन व्रत रख कर पूजा करते हो ताकि, इस एक दिन तुम्हारे बच्चे रोटी न मांगे। तुम इसे सुनते भी हो तुम इसे सुनते हुए अपना दुख भी तब  भूल जाते हो जब तुम्हारे बच्चे तेज़ धुन पर, बेतरतीब नाचने लगते हैं खुश हो कर शोर मचाने लगाते हैं तभी यकायक संगीत रुक जाता है एक कर्कश आवाज़ गूँजती है- साले नंगे-भूखे गाना भी नहीं सुनने देते न खुद सुख से रहते हैं, न हमे रहने देते हैं। ऐ गरीब ! ...

ऐ पिता !!!

ऐ पिता ! तेरी बाँहें इतनी मज़बूत क्यों हैं कि जब कोई बच्चा हवा में उछाला जाता है तो वह खिलखिलाता हुआ उन्ही बाँहों में वापस आना चाहता है. तेरी भुजाएं इतनी आरामदेह क्यों होती हैं कि कोई बच्चा इनमे झूलता हुआ सो जाना चाहता है ऐ पिता !! तेरी उंगलियाँ पकड़ कर वह लड़खड़ाता हुआ चलना सीखता है तेरी उंगलियाँ पकड़ कर बड़ा होना चाहता है इतना बड़ा कि तेरे कंधे तक पहुँच सके. मगर ऐ पिता !!! इस बच्चे की बाँहें इतनी कमज़ोर क्यों होती हैं भुजाएं इतनी कष्टप्रद क्यों होती हैं कि कोई पिता इनमें समां नहीं पाता, आराम नहीं पा सकता क्यों बेटे की उंगली यह बताने के लिए नहीं उठ पातीं कि वह मेरे पिता हैं. क्यों ! क्यों !! क्यों !!! ऐ पिता, यह बात तो बेटा उस समय भी समझ नहीं पाता जब वह अपने बेटे को हवा में उछाल रहा होता है भुजाओं में समेटे सुला रहा होता है उंगलिया पकड़ कर चलना सिखा रहा होता है. ऐ पिता ! ऐसा क्यों होता है यह पिता ???

दादी

''माँ तुम तो राजू के लिए कुछ ज्यादा प्रोटेक्टिव हो. वह अब इतना बच्चा भी नहीं रहा कि हर समय देखना पड़े. बच्चा है. खेलेगा तो गिरेगा भी, चोट भी लगेगी. तुम इतना फ़िक्र क्यों करती हो?'' पिताजी दादी से कह रहे थे. मुझे बहुत अच्छा लगा. दादी हर समय टोकती रहती है. यह न करो, वह न करो. तो करो क्या. साथ के बच्चे मज़ाक उड़ाते हैं 'क्या हाल हैं यह न करो बच्चे के'. मैं खिसिया जाता. दादी से मना करता पर  वह कहाँ सुनने वाली थीं. दादी मुझे फूटी आँख न सुहाती. सच कहूँ मुझे उनका झुर्रियों भरा चेहरा बिलकुल अच्छा नहीं लगता. वास्तविकता तो यह थी कि मैं खुद के बुड्ढे हो जाने के ख्याल से घबरा जाता था. शीशे में चेहरा देखता, झुर्रियों की कल्पना करता तो सिहर उठता. क्यों जीते हैं लोग इतना कि चेहरे पर समय की मार नज़र आने लगती है. दादी का चेहरा छोटा था. झुर्रियां होने के कारण मुझे बड़ा अजीब सा लगता. जैसे किसी अख़बार के कागज़ को बुरी तरह से मसल कर फेंक दिया गया हो. इस चिढ का एक बड़ा कारण यह भी था कि दादी हर दम मेरे पीछे लगीं रहती. वैसे वह मेरी पैदायश से मेरा ख्याल रखती रही हैं. माँ नौकरी करती थी...

प्रार्थना

बेटे ने कहा- माँ ! तू मरना मत मैं तेरे बिना कैसे जिऊँगा. माँ बीमार थी डॉक्टर ने जवाब दे दिया था. माँ की जीने की जिजीविषा थी या बेटे का विलाप कि माँ ठीक हो गयी. माँ ने कहा- बेटे की प्रार्थना मुझे लग गयी मैं बच गयी. माँ बेटे का बहुत ख्याल रखती चाहती बेटा ज़ल्दी से बड़ा हो जाये, अपने पैरों पर खड़ा हो जाये ताकि उसे माँ के सहारे की ज़रुरत न पड़े. बेटा नौकरी करने लगा माँ ने शादी कर दी सुन्दर बहु लायी सुशील भी लग रही थी माँ को माँ और खुद को उसकी बेटी मानती थोड़े दिन ऐसे ही गुज़रे फिर बेटी बहु बन गयी यहाँ तक कि बेटा भी बहु का पति बन गया एक दिन माँ और बहु साथ बीमार पड़ीं बेटे को लगा माँ बीमार है पर पत्नी बहुत ज्यादा बीमार है माँ ने कहा भी- बेटा बहुत तकलीफ हो रही है लगता है बचूंगी नहीं बेटे ने कहा- नहीं माँ! ऐसा मत कहो. तुम ठीक हो, मैं अभी तुम्हारी बहु को दिखला कर आता हूँ फिर तुम्हे अस्पताल ले जाता हूँ. बेटा पत्नी को डॉक्टर के पास लेकर चला गया माँ समझ गयी बेटा अब बड़ा हो गया है माँ के बिना रह सकता है. अब माँ को बेटे की प्रार्थना की ज़रुरत नहीं थी.

धूल

धूल पर हम चाहे जितनी नाक भौंह सिकोड़ें यह अजर, अमर और सर्वत्र है इसका अपना महत्व है घमंडी धूल में मिल जाता है शरीर को धूल में ही मिल जाना है यह ज़मीन से उठती है हवा के साथ उड़ कर आसमान छू लेती है हमारे शरीर पर पैर से सर तक लिपट जाती है धूल का घमंड उसे आसमान से ज़मीन पर बिखेर देता है सर- माथे पर जमी धूल को हम सर माथे नहीं लगाते पैर की धूल के साथ नाली में बहा देते हैं.

मैं लड़की

भाई मैं एक लड़की हूँ मैं आपको भाई नहीं कहना चाहती पर मुझे कहना पड़ेगा अन्यथा मेरे सम्बोधन के अनर्थ निकाले जाएंगे आप किसी औरत को किसी नीयत, किसी मक़सद से भाभी कहो कोई अनर्थ नहीं खोजेगा लेकिन मेरा किसी को जीजा कहना कितने ही अनर्थ को जन्म देगा क्यूंकि लड़की यानि औरत  हर मायने में ग़रीब होती है।

बच्चे की सुबह

बच्चा सुबह ज़ल्दी जाग जाता है वह डर जाता है बाहर से अन्दर झाँक रहा है अँधेरा बच्चा कस कर ऑंखें भींच लेता है अपनी मुंदी पलकों के अँधेरे से बाहर के अँधेरे को झुठलाने की कोशिश करता है. ऐसे ही लेटा रहता है देर तक थोड़ी देर में सुबह का उजाला खिडकियों की झिरी से दरवाज़े की सरांध से अन्दर झांकता है फिर बच्चे को देख कर अन्दर पसर जाता है, उसके चारों ओर बाहर चिड़ियाँ दाना चुग रही हैं एक दूसरे को बुला रही हैं चूँ चूँ पुकार करके उनका कलरव, पंखों का फड़फड़ाना बच्चे के कानों में दस्तक देता है बच्चा आँख खोल देता है, आ हा ! सुबह हो गयी ! वह हाथ पाँव फेंकता हुआ मानो माँ को जगा रहा है- उठो माँ, सुबह हो गयी।